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उत्तर प्रदेश के उत्सव: भाग 2

कुंभ-मेला

आज के आधुनिक इलाहाबाद में स्थित प्रयाग तीर्थ के रूप में हिन्दुओं में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। तीर्थ वह स्थान है जहाँ एक भक्त इस नश्वर संसार से मुक्ति प्राप्त करता है। परंपरागत रूप से नदियों के मिलन को बहुत पवित्र माना जाता है, लेकिन संगम का मिलन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यहां गंगा, यमुना और सरस्वती का अद्भुत मिलन होता है।  इन तीर्थों में भी संगम को तीर्थराज के नाम से जाना जाता है। संगम में हर बारह साल में कुंभ का आयोजन होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु अमृत से भरा एक कुंभ (बर्तन) ले जा रहे थे, जब अमृत की चार बूंदें असुरों के साथ हाथापाई में गिर गईं। ये बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन जैसे तीर्थ स्थानों में गिरीं। ऐसे में जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरीं, वहां बारी-बारी से तीन साल के अंतराल पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। कुंभ भारत का ही नही विश्व का सबसे बड़ा मेला है। प्रयाग में हर बारह वर्षों में त्रिवेणी संगम में कुंभ मेले का आयोजन होता है और हर 6 साल में अर्ध कुंभ होता है और 144 वर्षों में आयोजित होने वाले कुंभ मेले को महाकुंभ कहते हैं। इस मेले के दौरान कुंभ में लाखों श्रद्धालु और मठों के संत डुबकी लगाने आते हैं। कुंभ का मेला लगभग एक महीने तक चलता है । कुंभ के मेले को 2017 में यूनेस्को की अमूर्त विरासत घोषित किया गया था ।

बटेश्वर मेला
कुंभ मेले के अलावा एक और मेला जो उत्तर प्रदेश में प्रसिद्ध है वो है बटेश्वर मेला । बटेश्वर मेला आगरा शहर के पास लगने वाला उत्तर भारत का सबसे बड़ा पशु मेला है । यह राजस्थान के पुष्कर मेले के समान होता है । इसका आयोजन दीपावली के तीन सप्ताह पूर्व जानवरों की प्रदर्शनी के साथ होता है और बटेश्वर मंदिर परिसर में धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं।


ददरी मेला
इसी पशु मेले की तरह ही बलिया जिले के ददरी में भी एक मेला आयोजित किया जाता है जिसे ददरी पशु मेला कहते हैं । यह मेला भी लगभग एक महीने तक चलता है ।

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