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कुंभ में कई बार छाया मौत का साया! 1820 से लेकर 2013 तक जानिए भगदड़ और मौत के हादसे की दर्दनाक कहानियां...

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प्रयागराज के संगम तट पर मंगलवार और बुधवार की दरमियानी रात एक दर्दनाक हादसा हो गया। करीब डेढ़ बजे अचानक मची भगदड़ ने हाहाकार मचा दिया, जिसमें 20 से अधिक लोगों की जान चली गई और 50 से ज्यादा घायल हो गए। कुंभ के इतिहास में यह कोई पहली बार नहीं है जब ऐसा हादसा हुआ हो। 1820 में अंग्रेजी हुकूमत के दौर में भी एक भगदड़ में 450 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। आइए कुंभ मेले में भगदड़ से जुड़ी कुछ दिल दहला देने वाली घटनाओं पर एक नजर डालते हैं।

1820 का कुंभ मेला: इतिहास में भी भगदड़ की काली छाया

कुंभ मेला, जो आस्था और श्रद्धा का सबसे बड़ा प्रतीक है, में हादसे दुर्भाग्यवश हमेशा से जुड़े रहे हैं। अंग्रेजों के जमाने में भी कुंभ में भयंकर भगदड़ और हादसों की घटनाएं हुईं। 1820 के हरिद्वार कुंभ में एक ऐसी भगदड़ मची कि 450 से ज्यादा तीर्थयात्रियों की मौत हो गई और 1000 से अधिक लोग घायल हो गए। 1840 में प्रयाग कुंभ में भी भगदड़ ने 50 से ज्यादा लोगों की जान ले ली। 1906 के प्रयाग कुंभ में तो हालात और भी भयावह थे, जहां भगदड़ के कारण 50 से ज्यादा लोग मारे गए। इन घटनाओं ने कुंभ मेले के इतिहास को दर्दनाक रूप से प्रभावित किया।

1954: आज़ाद भारत के पहले कुंभ में भगदड़ का कहर-

साल 1954 में प्रयागराज (तब इलाहाबाद) के पावन संगम पर कुंभ आयोजित हुआ। 3 फरवरी को मौनी अमावस्या थी, और लाखों श्रद्धालु गंगा-यमुना के संगम में डुबकी लगाने पहुंचे थे। बारिश से धरती कीचड़ और फिसलन में बदल चुकी थी। तभी अचानक एक खबर ने मेले में हलचल मचा दी—प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू आ रहे हैं। उन्हें देखने के लिए उमड़ी भीड़ बेकाबू हो गई। अफरा-तफरी मच गई। नागा संन्यासियों ने अपनी सुरक्षा के लिए तलवारें और त्रिशूल उठा लिए। भगदड़ ऐसी मची कि जो गिरा, फिर कभी नहीं उठा। बिजली के खंभों से लटकते लोग और चीख-पुकार की आवाजें माहौल को भयावह बना गईं। सरकारी बयान में कहा गया कि कोई हादसा नहीं हुआ, लेकिन एक साहसी फोटोग्राफर ने चुपके से तस्वीर कैद कर ली। अगले दिन अखबार में वह तस्वीर छपी और राजनीतिक भूचाल आ गया। संसद में नेहरू को सफाई देनी पड़ी। इस घटना की गूंज 65 साल बाद भी सुनाई दी, जब 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके लिए नेहरू को जिम्मेदार ठहराया।

नेहरू ने मानी हादसे में मौजूदगी की सच्चाई

कुछ लोग यह दावा करते हैं कि 1954 के कुंभ हादसे के वक्त प्रधानमंत्री पंडित नेहरू प्रयागराज में मौजूद नहीं थे। BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नरेश मिश्र, जो खुद हादसे के समय वहां मौजूद थे, ने बताया कि नेहरू ने हादसे से एक दिन पहले संगम का दौरा किया था, तैयारियों का जायजा लिया और फिर दिल्ली लौट गए। वहीं, राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद संगम क्षेत्र में ही थे और सुबह के वक्त किले के बुर्ज से दशनामी संन्यासियों का जुलूस देख रहे थे।

हालांकि, कई लेखक, पत्रकार और स्वयं नेहरू ने संसद में यह स्वीकार किया था कि वे हादसे के दौरान कुंभ में मौजूद थे। 15 फरवरी 1954 को संसद में दिए गए अपने बयान में नेहरू ने कहा था, "मैं किले की बालकनी में खड़ा था, वहां से कुंभ मेला देख रहा था। यह अनुमान था कि 40 लाख लोग वहां पहुंचे थे। यह एक दुखद घटना थी कि इतने विशाल समारोह में इस प्रकार का हादसा हुआ और कई जिंदगियां चली गईं।

बिमल रॉय की अधूरी फिल्म: कुंभ हादसे पर आधारित एक गुम हुई ख्वाहिश

बांग्ला उपन्यासकार समरेश बसु के 'अमृत कुंभ की खोज में' उपन्यास पर आधारित एक फिल्म बनाने का सपना मशहूर फिल्मकार बिमल रॉय ने देखा था। 1955 में यह उपन्यास कलकत्ता से प्रकाशित होने वाले बांग्ला अखबार 'आनन्द बाजार' में धारावाहिक रूप में पब्लिश हुआ था। इस उपन्यास में एक ट्रेन से इलाहाबाद जाते श्रद्धालुओं की जिंदगियां कुचलने वाली भगदड़ का वर्णन किया गया है। बिमल रॉय और गीतकार गुलजार इस फिल्म पर काम कर रहे थे, और शूटिंग भी शुरू हो चुकी थी। हालांकि, बिमल रॉय की बीमारी और 1965 में उनके निधन के कारण ये सपना अधूरा रह गया।

 हरिद्वार कुंभ 1986: भगदड़ में 50 की मौत

14 अप्रैल 1986, हरिद्वार कुंभ का अंतिम दिन था। उस समय हरिद्वार उत्तर प्रदेश का हिस्सा था। सुबह का वक्त था और यूपी के मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह, साथ ही कई अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री, हर की पैड़ी पर स्नान करने पहुंचे थे। उनके स्नान के लिए रास्ता सवा तीन घंटे तक बंद रखा गया, और श्रद्धालुओं को संकरे पुल से गुजरने का रास्ता बंद कर दिया गया। इस वजह से तीर्थयात्रियों की भीड़ पुल पर जमा हो गई। जैसे ही रास्ता खोला गया, भगदड़ मच गई। लोग एक-दूसरे के ऊपर गिरने लगे, और कुचलकर 50 लोग मारे गए। इनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे थे, और कुछ की मौत दम घुटने की वजह से हुई।

नासिक कुंभ में चांदी के सिक्कों की लूट ने मचाई भगदड़, 39 की मौत

27 अगस्त 2003, महाराष्ट्र के नासिक में कुंभ मेला अपने पूरे चरम पर था। रामकुंड की ओर जाने वाले तीर्थयात्रियों को बैरिकेड्स लगाकर रोका गया था, और संकरी गलियों में लगभग 30 हजार श्रद्धालु फंसे हुए थे। तभी एक साधु ने चांदी के सिक्के हवा में उछाल दिए। सिक्कों को लूटने की होड़ ने माहौल को खौ़फनाक बना दिया। लोग एक-दूसरे पर चढ़ने लगे और मार-पीट की स्थिति पैदा हो गई। इसका नतीजा एक भीषण भगदड़ के रूप में सामने आया, जिसमें 39 श्रद्धालुओं की जान चली गई और 140 से ज्यादा लोग घायल हो गए।

2013 के कुंभ में अचानक हुआ ट्रेन प्लेटफॉर्म बदलने से भगदड़, 36 की मौत

10 फरवरी 2013, रविवार का दिन। प्रयागराज में कुंभ मेला अपने शबाब पर था और मौनी अमावस्या का पुण्य स्नान लाखों श्रद्धालुओं के लिए खास बन चुका था। संगम के तट पर तीन करोड़ से ज्यादा लोग डुबकी लगा चुके थे, जिनमें महिलाएं, पुरुष, बुजुर्ग और युवा सभी शामिल थे। लेकिन इस धार्मिक और आस्थाओं से भरे माहौल में अचानक एक खौ़फनाक हादसा हुआ। ट्रेन का प्लेटफॉर्म अचानक बदल दिया गया, जिससे भगदड़ मच गई और 36 लोग अपनी जान गंवा बैठे। यह हादसा कुंभ के ऐतिहासिक आयोजन को एक और काले अध्याय में बदल गया।

By Ankit Verma 

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