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अल्पसंख्यकों में बढ़ रहा सिविल सेवा का क्रेज!

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देश और समाज की इस तरक्की में आज देश के युवा बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। वहीं आज देश का अल्पसंख्यक भी इस मामले में कतई पीछे नहीं है। पहले आम तौर पर यह धारणा थी कि अल्पसंख्यक, खास तौर पर मुस्लिम वर्ग समाज में आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा था और उनकी देश के महत्वपूर्ण पदों पर मौजूदगी न के बराबर थी। लेकिन हाल के कुछ वर्षों से  इस धारणा में तब्दीली आई है। क्योंकि 16 अप्रैल को जारी हुए संघ लोक सेवा आयोग (UPSC)की सिविल सेवा परीक्षा-2023 में 50 से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवारों ने अपनी जगह बनाई है और इनमें से 5 उम्मीदवार ऐसे हैं जो टॉप-100 में शामिल हैं।

मुस्लिम समुदाय में बढ़ी सिविल सेवाओं के प्रति जागरूकता

किसी समाज या वर्ग के उत्थान में किसी न किसी  प्रेरणा की आवश्यकता होती है जिसकी वजह से वह समाज सफलता के  पथ पर अग्रसर हो जाता है। अब बात आती है अल्पसंख्यक समुदाय के बीच सिविल सेवा परीक्षा के बारे में जागरूकता की, तो जब शाह फैसल ने 14 साल पहले यूपीएससी की परीक्षा में टॉप किया था। इससे न केवल मुसलमानों में गर्व की भावना पैदा हुई, बल्कि सिविल सेवाओं में नए सिरे से रुचि पैदा हुई।  शाह फैसल ने 2010 में IAS टॉप करके कश्मीरियों समेत पूरे देश के मुस्लिम युवाओं को प्रेरणा दी थी। इसके बाद 2015 में कश्मीर के अतहर आमिर ने UPSC में दूसरी रैंक हासिल की थी। वहीं, 2017 में मेवात के अब्दुल जब्बार भी चयनित हुए थे। वे इस क्षेत्र से पहले मुसलमान सिविल सर्वेंट हैं। और अब 2023 में दिल्ली से पढ़ाई करने वालीं नौशीन ने सिविल सेवा परीक्षा में 9वीं रैंक हासिल की है, जो मुस्लिम समुदाय के युवाओं को देश की सर्वोच्च सेवा में सफल होने के लिए राह दिखाएगा।

 इस बार 52 मुस्लिम उम्मीदवारों को मिली सफलता 

सिविल सेवा परीक्षा, 2023 में कुल सफल 1,016 अभ्यर्थियों में से 52 मुस्लिम कैंडिडेट्स ने जगह बनाई है। इनमें से 5 यानी रूहानी, नौशीन, वारदाह खान, जुफिशान हक और फैबी राशिद ने टॉप-100 में जगह बनाने में कामयाब रहे। टॉप-10 में नौशीन को 9वीं रैंक मिली है। मुस्लिम युवाओं का सिविल सेवाओं के प्रति रुझान हाल के वर्षों में बढ़ा है। 2012 में सिविल सेवाओं में सफल मुस्लिम कैंडिडेट 30 थे। वहीं, 2013 में सफल मुस्लिम कैंडिडेट 34, 2014 में 38, जबकि 2015 में 36 थे। उस वक्त भी मुस्लिम युवाओं की सफलता दर तकरीबन 5 फीसदी थी। इससे पहले 2022 की सिविल सेवा परीक्षा में कुल 933 अभ्यर्थी आईएएस-आईपीएस और केंद्रीय सेवाओं के लिए चुने गए थे। इनमें से महज 29 कैंडिडेट्स मुस्लिम कम्युनिटी से थे। जो कुल सफल लोगों में से करीब 3.1 फीसदी रहे। इस बार यानी 2023 की सिविल सेवा परीक्षा में 51 मुस्लिम कैंडिडेट्स सफल रहे, उनका कुल सफल लोगों में प्रतिशत 5 फीसदी से ज्यादा ही रहा है।

किस वर्ग  में कितने अभ्यर्थी हुए सफल ?

इस बार सामान्य वर्ग के 347, ईडब्ल्यूएस के 115, ओबीसी के 303, अनुसूचित जाति के 165 और अनुसूचित जनजाति वर्ग के 86 अभ्यर्थियों सहित कुल 1016 उम्मीदवार हैं। इस बार के परिणाम में एक रोचक और प्रेरणादायक परिवर्तन देखने को मिला है जिसमे अल्पसंख्यक समाज के उम्मीदवारों की सफलता में वृद्धि हुई है। कहा जाता है की यदि मजबूत इरादा, लगन और कड़ी मेहनत से कोई कार्य किया जाये तो कामयाबी जरुर मिलती है।  विगत वर्षों के परीक्षा परिणामों में अल्पसंख्यक समुदाय के अभ्यर्थियों की भागीदारी इस प्रकार है-

  • 2018 और 2019 में क्रमशः 27 और 42 मुस्लिम अभ्यर्थी सफल हुए थे।
     
  • 2020 की सिविल सेवा परीक्षा में कुल 761 सफल उम्मीदवारों में 31 उम्मीदवार अल्पसंख्यक समुदाय से थे।
  • 2021 के सिविल सेवा परीक्षा में मेंस में 1823 उम्मीदवार पास हुए थे अंतिम परिणामों में 685 सफल उम्मीदवारों मे अल्पसंख्यक समाज के 21 अभ्यर्थी सफल हुए थे।
  • 2022 की सिविल सेवा परीक्षा के प्री और मेंस परीक्षा में 2529 अभ्यर्थी सफल हुए थे जिनमे 83 मुस्लिम थे। अंतिम परिणाम में कुल 933 सफल अभ्यर्थियों में से 51 अल्पसंख्यक अभ्यर्थी थे।

सच्चर कमेटी में हुई थी मुस्लिमों की बात 

देश में मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक दशा जानने के लिए यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने साल 2005 में दिल्ली हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजिंदर सच्चर की अध्यक्षता में समिति गठित की थी। समिति द्वारा 403 पेज की रिपोर्ट को 30 नवंबर, 2006 को लोकसभा में पेश किया गया था। तब पहली बार मालूम हुआ कि भारतीय मुसलमानों की स्थिति अनुसूचित जाति-जनजाति से भी खराब है। सच्चर कमेटी में यह भी कहा गया था कि मौजूदा वक्त में 3,209 IPS ऑफिसर हैं, जिनमें से 128 यानी करीब 4 फीसदी ही मुस्लिम हैं। वहीं, जनवरी, 2016 में सेवारत 3,754 IPS ऑफिसरों में से 120 यानी कुल का 3.19 फीसदी ही मुस्लिम ऑफिसर हैं।

क्या थी सच्चर कमेटी की रिपोर्ट?

रिपोर्ट के अनुसार एससी, एसटी और अल्पसंख्यक आबादी वाले गांवों और आवासीय इलाकों में स्कूल, आंगनवाड़ी, स्वास्थ्य केंद्र, सस्ते राशन की दुकान, सड़क और पेयजल जैसी सुविधाओं की काफी कमी है। यहां तक कि मुस्लिम समुदाय की हालत अनुसूचित जाति और जनजाति से भी खराब है। 2006 में प्रशासनिक सेवाओं में मुस्लिमों की भागीदारी काफी कम रही थी। उस वक्त देश में 3 फीसदी आईएएस, 4 फीसदी आईपीएस ही मुसलमान थे। वहीं, पुलिस फोर्स में मुस्लिमों की हिस्सेदारी 7.63 फीसदी, जबकि रेलवे में महज 4.5 प्रतिशत थी। उस वक्त कुल सरकारी नौकरियों में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व महज 4.9 फीसदी था।

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