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छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बुद्ध, महावीर और मक्खालिपुत्ता घोषाल जैसे विचारकों का आना उत्तरप्रदेश के इतिहास में ज़बरदस्त क्रांति की तरह रहा। इनमें श्रावस्ती में पैदा होने वाले मक्खालिपुत्ता घोषाल ‘आजीविका सम्प्रदाय’ के जनक थे।दूसरी तरफ़, जैन सम्प्रदाय के 24वे तीर्थकर, महावीर का जन्म भले ही बिहार में हुआ हो, लेकिन उनके अनुयायीयों कि संख्या बिहार की तुलना में उत्तरप्रदेश में कहीं ज़्यादा रही है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि स्थानीय लोगों का मानना है कि महावीर हर वर्ष बरसात के मौसम में दो बार उत्तरप्रदेश आते थे, एक श्रावस्ती में और दूसरा देवरिया। दरअसल, उत्तरप्रदेश में जैन धर्म का प्रभाव महावीर से बहुत पहले ही शुरू हो गया था, जब पार्श्वनाथ, सांभरनाथ, चंद्रप्रभा जैसे लोगों ने राज्य में जन्म लिया और वहीं रहकर ‘कैवल्य’ को भी प्राप्त किया। जैन धर्म का प्रभाव उस काल के बाद आने वाली कई शताब्दियों तक रहा। उत्तर वैदिक काल के बाद युद्धों, प्राकृतिक आपदाओं आदि की वजह से उस समय की वास्तुकलाओं को बहुत नुकसान पहुँचा जिसकी वजह से काफ़ी समय तक राज्य में अलग-अलग धर्मों की उपस्थिति धुंधली ही बनी रही।
जब मथुरा में कन्कली टीले की खुदाई में एक भव्य जैन स्तूप निकला या उसी तरह प्रारंभिक मध्यकालीन जैन मंदिर जो अभी भी देवगढ, चंदेरी जैसी जगहों पर अवशेष के रूप में सरंक्षित अवस्था में हैं, ज़रूर उत्तरप्रदेश के ऐतेहासिक सफ़र की दास्तान में मुख्य पड़ाव साबित हुए हैं, जिन्होंने प्रमाणित किया है कि शुरुआत से ही उत्तरप्रदेश हर क्षेत्र में कितना विविध रहा है।
बुद्ध काल –
बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध का जन्म भी ज़रूर नेपाल के लुंबिनी में हुआ, लेकिन उनकी कर्मस्थली आधुनिक उत्तर भारत ही रही। बुद्ध ने बिहार के बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति के बाद अपना पहला उपदेश यूपी के सारनाथ में दिया और उसके साथ ही बौद्ध धर्म की नींव रखी। सारनाथ को बौद्ध धर्म की त्रिमूर्ति के दो तत्व 'धम्म' और 'संघ' के जन्मस्थान होने के साथ बुद्धा के उपदेश स्थली का गौरव प्राप्त है। सारनाथ के अलावा बुद्ध से जुड़े दो ज़िले और हैं जो उत्तरप्रदेश में आते हैं, एक कुशीनगर और दूसरा श्रावस्ती।
तत्कालीन उत्तर प्रदेश के कई राज्यों के शासक, जहाँ बुद्ध के जीवन का अधिकांश हिस्सा बीता, बुद्ध की शिक्षा से बहुत प्रभावित थे और न सिर्फ़ शासक बल्कि जनता भी तथागत के प्रति उतनी ही समर्पित थी। इस प्रकार उत्तर प्रदेश का वर्णन, इस प्रकार करना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पौराणिक ब्राह्मणवाद के अलावा बौद्ध और जैन धर्म की जड़ें भी एक समय उत्तरप्रदेश में उतनी ही गहरी रही थीं। कहा जाता है कि बुद्ध ने कुछ समय अयोध्या में भी बिताया। बौद्ध के महत्व का अंदाज़ा 5वीं शताब्दी ईस्वी में चीनी बौद्ध भिक्षु फैक्सियन के इस बयान से लगाया जा सकता है कि उस समय वहाँ लगभग सौ बौद्ध मठ थे। बाद के वर्षों में, मौर्य सम्राट अशोक द्वारा स्थापित किए गए स्तूप (मंदिर) सहित कई अन्य स्मारक भी इसी ओर इशारा करते हैं कि उस समय बौद्ध धर्म का उत्तरप्रदेश में क्या स्थान रहा होगा!
इसके अलावा उसी दौर की देवताओं की प्राचीन मूर्तियाँ, कुषाण काल का एक देवी मंदिर का मिलना, ब्राह्मणवाद और ब्राह्मणवादी व्यवस्था की ओर भी संकेत करता है। जो बताता है कि उस समय हिन्दू और बौद्ध धर्म राज्य में एकसाथ आगे बढ़ रहे थे। वास्तव में, यदि वास्तुकला कि दृष्टि से देखें तो वर्तमान उत्तरप्रदेश के मथुरा को भारतीय मूर्तिकला का जन्मस्थान कहा जा सकता है। अलग-अलग काल में बने ये मंदिर मथुरा के अलावा वाराणसी, इलाहाबाद, बलिया, गाजीपुर, झांसी और कानपुर में भी देखने को मिल सकते हैं। बुद्ध अपने जीवनकाल में न सिर्फ़ अयोध्या, प्रयाग, वाराणसी और मथुरा जबकि उसके बाद भी लगातार कई सदियों तक अन्य शहरों की धार्मिक और सांस्कृतिक निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। बौद्ध की ही तरह, उसके सामानांतर जो हिन्दू धर्म फल-फूल रहा था उसका अनुसरण करने वाले कई राजा वैदिक रीतियों-रिवाज़ों के चलते अमर हो गए। उनके द्वारा किए गए अनुष्ठान उस समय की किताबों में सरंक्षित हैं।
अपने शुरूआती इतिहास से ही उत्तरप्रदेश बड़े शासकों, विद्वानों की जन्मस्थली, पनाह-स्थल रहा जिस वजह से यह भूमि आज तक भारत का सांस्कृतिक केंद्र मानी जाती है। हालाँकि, कुछ ही शताब्दियों बाद बौद्ध धर्म भारत में कमज़ोर स्थिति में पहुँच गया लेकिन उत्तर और पूर्वी एशिया में उसने अपनी जड़े इतनी गहरी जमाई कि आज भी वहाँ बौद्ध धर्म देखने को मिलता है। अपने अंतिम समय में, बुद्ध ने कुशीनगर, उत्तरप्रदेश (अब कासिया, पूर्वी उत्तर प्रदेश) में परिनिर्वाण (पूर्ण निर्वाण) प्राप्त किया। लेकिन, इसके बाद भी बौद्ध का प्रभाव लम्बे समय तक उत्तर भारत में बना रहा। मध्यकाल की शुरूआती वर्षों और फिर मध्य अवधि तक बौद्ध धर्म कि उत्तर भारत में उपस्थिति देखी जा सकती है। लेकिन, यह वाक़ई विचारणीय बिंदु है कि बौद्ध की जन्मस्थली होने के बावजूद भी भारत या यूँ कहें कि उत्तर भारत में यह धर्म क्यों कमज़ोर पड़ा जबकि पड़ोसी देशों या पूर्वी अन्य देशों को देखें तो वहाँ आज भी बौद्ध धर्म मजबूत ढंग से खड़ा दिखाई देता है।
Baten UP Ki Desk
Published : 26 December, 2022, 12:38 pm
Author Info : Baten UP Ki