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क्यों विश्व प्रसिद्ध है लखनऊ की चिकनकारी, कैसे हुआ इसका आविष्कार?

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नवाब, कबाब, कोठिया झरोखों के लिए मशहूर, एक शहर नहीं मिजाज है, जहां के लोग तहजीब, और रवायत के लिए ही नहीं बल्कि चिकनकारी के लिए भी दुनियाभर में जाने जाते हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं नवाबों के शहर लखनऊ की। जब आप में से कोई बाहर से लखनऊ घूमने आता है तब वो चिकनकारी कपड़ों की खरीदारी जरूर करता है। लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा की ये दुनियाभर में क्यों इतना मशहूर है। तो चलिए जानते हैं चिकनकारी के बारे में सब कुछ 

चिकनकारी“ नाम का आविष्कार कैसे हुआ?

दरअसल ’चिकन’ शब्द तुर्किश शब्द 'चिक' से बना हुआ है।  हिंदी में इसका अर्थ छोटे-छोटे छेद करना होता है। आपको बता दें कि मुर्रे, जाली, बखिया, टेप्‍ची, टप्‍पा आदि चिकनकारी के 37 प्रकारों में से कुछ प्रमुख नाम हैं। 

चिकनकारी का इतिहास- 

वैसे तो किवदंतियों के अनुसार 17वीं शताब्दी में मुग़ल बादशाह जहांगीर की बेगम नूरजहां तुर्क कशीदाकारी से बहुत प्रभावित थीं और तभी से भारत में चिकनकारी कला का आरंभ हुआ। लेकिन सबसे पहले चिकनकारी का काम ईरान में शुरू हुआ था। ऐसा कहा जाता है ईरान के इलाके में झीलें बहुत हैं और उसमें स्‍वान भी हैं। स्वान की लचीली गर्दन से टांके का कांसेप्ट आया और चिकनकारी के काम की शुरुआत हुई। ईरान से यह कला हिंदुस्तान पहुंची। दिल्‍ली से मुर्शिदाबाद और मुर्शिदाबाद से ढाका यानी बांग्लादेश की राजधानी, जो पहले भारत का ही हिस्सा थी। फिर इस कला ने अवध यानि लखनऊ में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी।

 चिकनकारी करने का तरीका-

आपको बता दें कढ़ाई का काम आज भी महिलाएं ज्यादातर लखनऊ के आस पास के 50 से अधिक गावों में करती हैं। चिकनकारी के लिए सबसे पहले धुले  हुए कपड़ों को 40 डिग्री तापमान पर सुखाया जाता है। फिर इन कपड़ों पर सुई और धागा के माध्यम से हाथ से कढ़ाई होती है। चिकनकारी में सुई धागे के अलावा जालियों का एक विस्तृत जटिल काम होता है। वहीं 40 प्रकार के टांके और जालिया चिकनकारी के काम में प्रयोग में लाए जाती हैं,  जिनमें मुर्री, फंदा, कांटा, तेपची, पंखड़ी, लौंग जंजीरा, राहत, बांग्ला जाली, मुद्रा जाजी, सिद्धौर जाली, बुलबुल चश्म जाली, बखिया। इसमें सबसे मुश्किल कारीगरी और कीमती टाका है नुकीली मुर्री। चिकन वस्तुओं को तैयार करने में रंगरेज का कम योगदान नहीं होता है क्योंकि पक्के रंग चढ़ाना उसी की जिम्मेदारी होती है। 

सबसे अच्छा और सस्ता चिकनकारी वाला कपड़ा-

लखनऊ में आप सबसे सस्‍ता और अच्‍छा चिकनकारी कपडा चौक बाजार में मिल सकता है। यहां आपको 400 रुपए से लेकर 5000 रुपए तक की अच्छी चिकनकारी की वस्तुएं मिल जाएंगी। इससे भी कीमती चिकनकारी के नमूने देखने को मिल जाएंगे। इसके अलावा आप लखनऊ की सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय मार्केट अमीनाबाद और आलमबाग से भी चिकनकारी किए गए कपड़े खरीद सकते हैं। हालांकि, यह दोनों ही मार्केट चौक बाजार की तुलना में थोड़ी महंगी हैं। वैसे जनपथ मार्केट, कपूरथला मार्केट और हजरतगंज मार्केट में भी आपको डिजाइनर चिकनकारी किए हुए आउटफिट्स मिल जाएंगे।

(News written by juhi singh and Edited by vivek bajpai)

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