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रेडियो जो पुराने जमाने में मनोरंजन का एक मात्र साधन हुआ करता था... गांवों में तकरीबन हर घर तक इसकी पहुंच थी। लोग घंटों रेडियों पर अपने मनपसंद कार्यक्रम सुनते रहते थे। कुछ लोग तो पत्र लिखकर अपने मनपसंद गानों की फरमाइश भी करते थे। लेकिन आज के संचार क्रांति के इस युग में शायद रेडियों कहीं खो सा गया है। आज की पीढ़ी भले ही उन भारी-भरकम रेडियो से परिचित न हों लेकिन आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो हमारी पीढ़ी को उस जमाने के रेडियों से परिचित कराने के लिए अपने पास ही रेडियो म्यूजियम बना रखा है ऐसे ही एक शक्शियत है अपने यूपी की जिनके पास 1900 के दशक का रेडियो उपलब्ध है, और इनके मुताबिक यह देश का सबसे बड़ा रेडियो म्यूजियम भी है। इस संग्रहालय में 8-10 नहीं, बल्कि 1500 से भी अधिक पुराने रेडियो के कलेक्शन मौजूद हैं..
यूपी में कहां है रेडियो संग्रहालय-
यूपी के अमरोहा जिले के नाईपुरा मोहोल्ला निवासी राम सिंह अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि 1960 में जब वे अपने पुराने घर यानी मुरादाबाद के मोहम्मदपुर में रहा करते थे तब उनके गांव के प्रधान ने पूरे गांव को आकाशवाणी का प्रसारण सुनने के लिए आमंत्रित किया था। जिसे पहली बार सुनते हुए सभी बेहद खुश हुए, लेकिन 11 वर्षीय राम सिंह पर इसका कुछ अलग ही असर हुआ। रेडियो की अहमियत को समझते हुए उन्होंने 1977 में अपना पहला रेडियो खरीदा, जिसके लिए उन्होंने अपने पूरे महीने के वेतन यानी 350 रुपए खर्च कर दिए। वे कहते हैं कि ‘इतिहास का छात्र होने के नाते मैं पूरे संग्रहालय का दौरा करता था। इस बीच मैंने महसूस किया कि जिस रेडियो को हम सुनते हुए बड़े हुए हैं उसके लिए एक भी संग्रहालय नहीं है.’ वे इस बात से परेशान थे कि आने वाली पीढ़ी रेडियो के महत्त्व और इसके विकास को कभी नहीं जान पाएंगी, इसके बाद उन्होंने अपना संग्रहालय बनाने का फैसला किया।
67 वर्षीय राम सिंह ने बनाया रेडियो संग्रहालय-
वेयरहाउस कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया के पर्यवेक्षक के पद से रिटायर हुए 67 वर्षीय राम सिंह बौद्ध अपना अधिकांश समय इन रेडियो के बेशकीमती संग्रह के साथ बिताते हैं. उनका यह संग्रहालय अमरोहा जिले के नेशनल हाईवे-9 स्थित मोहल्ला नाईपुरा के सिद्धार्थ इंटर कॉलेज की ऊपरी मंजिल पर स्थित है. जहां टेबल रेडियो से लेकर पॉकेट और बॉल रेडियो आदि मौजूद है. राम सिंह ने इसे मेरठ, दिल्ली और अन्य शहरों के कबाड़ बाजार से जमा किया है. जहां टेबल रेडियो से लेकर पॉकेट और बॉल रेडियो आदि मौजूद है. ‘मार्कोनीफोन 7200 इंग्लैंड’ लेबल वाले रेडियो, जिसे 1920 में बनाया गया था, उनके कलेक्शन में यह सबसे पुराना रेडियो है, और इसके लिए वह अपना नाम ‘गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में दर्ज कराना चाहते हैं. इसे बनाने वाली कंपनी की स्थापना रेडियो अग्रणी और नोबेल पुरस्कार विजेता गुग्लिल्मो मार्कोनी ने की थी। इसके अलावा एक जर्मन कंपनी द्वारा बनाया गया रेडियो, जिसे ग्रुडिंग कहा जाता है, यह 1936 मॉडल है और इसे केवल बड़े व संपन्न लोगों के घरों में देखा जा सकता है. उस समय इसकी कीमत 15,000 रूपए थी, यानी उस वक्त में एक ट्रैक्टर की राशि में इसे खरीदा जा सकता था।
एम. प्रकाश नाम के एक अन्य भारतीय ने जुलाई 2005 में 625 तरह के अलग-अलग रेडियो के अपने संग्रह के साथ रिकॉर्ड बनाया था। जानकारी के लिए बता दें कि एम. प्रकाश ने इन रेडियो को 1970 के दशक से इकठ्ठा किया था। उनके संग्रह में सबसे छोटा रेडियो बोतल के ढक्कन के आकार का है और केवल 4 सेमी (1.57 इंच) चौड़ा है।
रेडियो का इतिहास-
अब अगर रेडियो के इतिहास पर गौर करें तो जुलाई 1923 में जब भारत पर ब्रिटिश का राज था उसी समय भारत में रेडियो प्रसारण की बात शुरू हुई, जो 23 जुलाई 1927 को बंबई (आज का मुंबई) में इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी के नाम से शुरू किया गया, 26 अगस्त 1927 को कलकत्ता से भी रेडियो प्रसारण शुरू हो गए. 8 जून 1936 को रेडियो को एक नया नाम मिल गया जो कि ‘ऑल इंडिया रेडियो’ था, जिसे आज हम ‘आकाशवाणी’ के नाम से भी जानते हैं। खैर, जैसे-जैसे समय बदला, समय के साथ रेडियो की तकनीक भी बदली, और राम सिंह इन सभी बदलावों से वाकिफ हैं। साल 1950 से 60 के बीच में रेडियो की कीमत काफी अधिक थी। 1940 के दशक में सेमीकंडक्टर के आविष्कार के साथ, छोटे, सस्ते और गुणवत्ता के मामले में अधिक टिकाऊ उपकरणों का उत्पादन भी शुरू हुआ। हालांकि, 1960 के दशक तक रेडियो की कीमत कुछ कम हुई। आज भले ही देश तेज 5G के युग में प्रवेश कर चुका है, लेकिन राम सिंह बौद्ध के संग्रह के माध्यम से रेडियो की दिलचस्प यात्रा हमेशा पिछले दौर की याद दिलाती रहेगी।
Baten UP Ki Desk
Published : 23 October, 2023, 3:44 pm
Author Info : Baten UP Ki