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उत्तर प्रदेश- जनांकिकी, जनसंख्या एवं जनगणना

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उत्तर प्रदेश भारतीय सभ्यता का उद्गम स्थल रहा है। अति प्राचीन समय से विभिन्न जाति एवं सामाजिक समूह इस क्षेत्र में आये और यहीं बस गये। इस राज्य में भारतवर्ष की जनसंख्या का 16.51 प्रतिशत भाग निवास करता है तथा भौगोलिक दृष्टि से यह राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं आन्ध्र प्रदेश राज्यों के पश्चात पाँचवे स्थान पर है। इसका भौगोलिक क्षेत्र भारत के भौगोलिक क्षेत्र का 7.3 प्रतिशत है। इसका सम्पूर्ण भौगोलिक क्षेत्र 2,40,928 वर्ग किमी0 है।
प्रशासनिक दृष्टि से उत्तर प्रदेश 18 मण्डलों में विभाजित है जिसमें 75 जनपद, 915 नगर एवं नगर क्षेत्र, 17 नगर निगम, 198 नगर पालिका परिषद्, 438 नगर पंचायतें 59019 ग्राम पंचायतें, 821 विकास खण्ड, 97814 आबाद ग्राम, 350 तहसीलें, 17670 डाकघर हैं। 

राजनैतिक दृष्टि से उत्तर प्रदेश लोकसभा में 80 सदस्य, राज्यसभा में 31 सदस्य, विधानसभा में 404 सदस्य तथा विधान परिषद् में 100 सदस्य चुनकर भेजता है। आर्थिक दृष्टि से यह उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में कार्य करने वालों का प्रतिशत 23.7 है जिनमें से 65. 9 प्रतिशत कृषक तथा 5.6 प्रतिशत औद्योगिक क्षेत्र में कार्य करने वाले हैं। उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति राज्य आय ( नवीन श्रृंखला) (बाजार मूल्यों पर) वर्ष 2011-12 के स्थायी भावों पर वर्ष 2016-17 ( त्वरित अनुमान) प्रति व्यक्ति आय रु 38884 है। इस प्रकार औद्योगिक एवं आर्थिक दृष्टि से उत्तर प्रदेश एक पिछड़ा राज्य है तथा क्षेत्रीय असंतुलन से भी ग्रसित है क्योंकि इसका पश्चिमी क्षेत्र कृषि उत्पादन की दृष्टि से अच्छा क्षेत्र है तथा अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक उद्योग एवं शहरी क्षेत्रों से युक्त है जबकि अन्य क्षेत्र विशेषकर बुन्देलखण्ड क्षेत्र कम कृषि उत्पादन, कम संख्या में औद्योगिक इकाइयाँ, औद्योगिक उत्पाद के कम निवल मूल्य इत्यादि समस्याओं से ग्रस्त है। प्रदेश का यह आर्थिक पिछड़ापन इसकी सामाजिक स्थिति पर खराब प्रभाव डालता है।


 

उत्तर प्रदेश जनसंख्या नीति, 2000
प्रदेश में प्रथम जनसंख्या नीति की घोषणा 11 जुलाई, 2000 को की गयी। जिसमें प्रतिबन्धात्मक उपायों की जगह जनसंख्या वृद्धि को गरीबी, स्वास्थ्य एवं विकास की व्यापक समस्या से जोड़कर देखा गया है। इस नीति में सामुदायिक भागीदारी, महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार, निजी क्षेत्र की सहभागिता एवं स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार इत्यादि पर बल दिया गया है। इन सभी लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु निम्न प्रावधान किये गये हैं-

  • जनसंख्या पर खर्च किये जाने वाले कुल बजट का 10% पंचायतों के माध्यम से खर्च।
  • परिवार कल्याण कार्यक्रमों हेतु 'जनसंख्या कोष' की स्थापना।
  • 2016 तक प्रजनन दर 2.1% लाना।
  • वर्ष 2016 तक बालिकाओं के विवाह की वर्तमान उम्र 16.4 वर्ष से बढ़ाकर 19.5 वर्ष तक करना।
  • वार्षिक नसबंदी को बढ़ाकर 2005 तक 10 लाख और 2009 तक 13 लाख करना व गर्भ निरोधक प्रयोग करने वाले व्यक्तियों की दर को 2016 तक 52% तक पहुँचाने का लक्ष्य।
  • राजकीय सेवाओं तथा सरकारी लाइसेन्सों में महिलाओं का 33% आरक्षण।
  • कम उम्र में विवाह करने पर सरकारी नौकरी से वंचित रखना।
  • विवाह का पंचायतों के माध्यम से अनिवार्य पंजीकरण।
  • मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में जनसंख्या एवं विकास आयोग का गठन।

उत्तर प्रदेश जनसंख्या नीति, 2021
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2021-2030 की अवधि के लिए एक 'नई जनसंख्या नीति' की घोषणा की गयी है। 'उत्तर प्रदेश पॉपुलेशन (कंट्रोल, स्टेबलाइजेशन एंड वेलफेयर) बिल 2021 में जनसंख्या नियंत्रण में मदद करने वालों को प्रोत्साहन देने का प्रावधान है। उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार, उत्तर प्रदेश में पारिस्थितिकी और आर्थिक संसाधनों की मौजूदगी सीमित है। सभी नागरिकों को मानव-जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं, जैसे भोजन, साफ पानी, अच्छा घर, गुणवत्ता वाली शिक्षा, जीवन यापन के अवसर और घर में बिजली मिलनी चाहिए। ऐसे में जनसंख्या नियंत्रण करना जरूरी है।

नई जनसंख्या नीति 2021-30 का लक्ष्य

  • नई नीति का लक्ष्य 2026 तक कुल प्रजनन दर को वर्तमान में प्रति हजार आबादी पर 2.7 से घटाकर 2.1 और वर्ष 2030 तक 1.7 करना है। 
  • आधुनिक गर्भनिरोधक प्रचलन दर को वर्तमान में 31.7 से बढ़ाकर वर्ष 2026 तक 45 और वर्ष 2030 तक 52 करना है।
  • पुरुषों द्वारा 3 उपयोग किए जाने वाले गर्भनिरोधक तरीकों को 10.8 से बढ़ाकर वर्ष 2026 तक 15.1 और वर्ष 2030 तक 164 करना है।
  • मातृ मृत्यु दर को 197 से घटाकर 150 से 98 तक और शिशु मृत्यु दर को 43 से घटाकर 32 से 22 तक एवं पांच वर्ष से कम आयु के शिशुओं की मृत्यु दर को 47 से घटाकर 35 से 25 तक कम करना है।

नई जनसंख्या नीति 2021 30 के मुख्य बिन्दु

स्थानीय निकाय के चुनाव : मसौदे में इस बात की सिफारिश की गई है कि 'दो बच्चों की नीति' का उल्लंघन करने वालों को स्थानीय निकाय के चुनाव में हिस्सा लेने की इजाजत नहीं होगी। इसके अतिरिक्त वो सरकारी नौकरियों के लिए योग्य नहीं होंगे और सरकारी सब्सिडी का फायदा भी नहीं उठा पाएंगे।

सरकारी कर्मचारियों को लाभ : मसौदे के अनुसार, दो बच्चों के नियम का पालन करने वाले सरकारी कर्मचारियों को सेवाकाल के दौरान दो अतिरिक्त इनक्रीमेंट ( वेतन वृद्धि) मिलेंगे। माँ या पिता बनने पर पूरे वेतन और भत्तों के साथ 12 महीने की छुट्टी मिलेगी। इसके अतिरिक्त, नेशनल पेंशन स्कीम के तहत नियोक्ता के अंशदान में तीन फीसदी का इजाफा होगा।

आर्थिक मदद : इस ड्राफ्ट में कहा गया है कि अगर कोई दंपत्ति सिर्फ एक बच्चे की नीति अपनाकर नसबंदी करा लेते हैं तो सरकार उन्हें बेटे के लिए एक मुश्त 80,000 रुपये और बेटी के लिए 1,00,000 रुपये की आर्थिक मदद देगी।

पॉपुलेशन फंड का निर्माण: इस अधिनियम का पालन कराने के लिए 'पॉपुलेशन फंड' बनाया जाएगा। इसके मुताबिक, सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर प्रसूति केंद्र बनाये जाएंगे। परिवार नियोजन का प्रचार किया जाएगा और यह तय किया जाएगा कि पूरे राज्य में गर्भधारण करने, जन्म और मृत्यु का पंजीकरण अनिवार्य रूप से हो। इसके अतिरिक्त प्रस्तावित मसौदे में राज्य सरकार के कर्तव्यों का भी जिक्र किया गया है।

जनसंख्या स्थिरीकरण का लक्ष्य : जनसंख्या स्थिरीकरण को लक्षित करते हुए मसौदे में कहा गया है कि राज्य विभिन्न समुदायों के बीच जनसंख्या का संतुलन बनाए रखने का प्रयास करेगा। इसके अतिरिक्त, उन समुदायों, संवर्गों और भौगोलिक क्षेत्रों में जागरूकता और व्यापक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे जिनकी प्रजनन दर अधिक है।

जनसंख्या संबंधी आंकड़े
जनसंख्या के दृष्टिकोण से उत्तर प्रदेश का भारत के राज्यों में प्रथम स्थान है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या 19.98 करोड़ है जो भारत की वर्ष 2011 की कुल जनसंख्या लगभग 121 करोड़ का 16.5 प्रतिशत है।

जनसंख्या घनत्व : उत्तर प्रदेश में वर्ष 1991 में प्रति वर्ग किमी0 पर 548 व्यक्ति थे जो कि 2001 में 690 तथा 2011 में 829 प्रति वर्ग किमी0 हो गये जो कि राष्ट्रीय औसत 382 से अधिक है। इससे स्पष्ट है कि जनसंख्या के घनत्व की दृष्टि से भी व्यक्तियों का भार प्रति किमी0 क्षेत्र के अनुसार बढ़ रहा है।

जनसंख्या वृद्धि : वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार वर्ष 2001-11 की अवधि में कुल जनसंख्या की दशकीय वृद्धि में प्रदेश का भारत के राज्यों में गत दशक की भाँति ग्यारहवाँ स्थान रहा। 2001 - 11 की अवधि में उ.प्र. की कुल जनसंख्या की दशकीय वृद्धि में (20.23 प्रतिशत थी जबकि उक्त अवधि में भारत की दशकीय वृद्धि ( 17.7 प्रतिशत) से अधिक रही। 1991-2001 की अवधि में उक्त वृद्धि (25.8 प्रतिशत) थी जो उक्त अवधि में भी भारत की दशकीय वृद्धि 21.5 प्रतिशत से अधिक थी।

उत्तर प्रदेश के कुछ मदों के आर्थिक क्षेत्रवार आँकड़े
उत्तर प्रदेश को 4 आर्थिक क्षेत्रों यथा- पूर्वी, पश्चिमी, केन्द्रीय एवं बुन्देलखण्ड क्षेत्र में बाँटा गया है। आर्थिक क्षेत्रवार कुछ मदों के आँकड़े निम्न तालिका में दृष्टिगत हैं-

 
उक्त तालिका से ज्ञात होता है कि पूर्वी क्षेत्र की जनसंख्या 400 प्रतिशत है तथा जनसंख्या की दृष्टि से यह सबसे बड़ा क्षेत्र है, इसके बाद क्रमशः पश्चिमी क्षेत्र (37.2 प्रतिशत) व केन्द्रीय क्षेत्र ( 18.0 प्रतिशत) तथा सबसे बाद बुन्देलखण्ड क्षेत्र (4.8 प्रतिशत) आता है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भी प्रदेश के क्षेत्रफल का 35.6 प्रतिशत भाग पूर्वी क्षेत्र में है, जो प्रथम स्थान पर तथा इसके बाद क्रमशः पश्चिमी क्षेत्र (33.2 प्रतिशत) केन्द्रीय क्षेत्र ( 19.0 प्रतिशत) तथा बुन्देलखण्ड क्षेत्र ( 12.2 प्रतिशत) क्षेत्रफल का स्थान है।

लिंगानुपात : स्त्री-पुरुष अनुपात से तात्पर्य प्रति हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या से है। वर्ष 1901 से 2011 की अवधि में स्त्री-पुरुष अनुपात के आँकड़े तालिका में दर्शाये गये हैं-


 

उक्त तालिका से स्पष्ट है कि प्रदेश में प्रति हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या वर्ष 1901 की जनगणनानुसार 938 थी इसके पश्चात् वर्ष 1991 तक इसमें कमी एवं मिश्रित प्रवृत्ति रही। वर्ष 2001 से इसमें पुनः वृद्धि आरम्भ हुई और यह बढ़ते हुए वर्ष 2001 एवं 2011 में क्रमश: 898 एवं 912 हो गयी। भारत में वर्ष 2011 में यह संख्या 943 है जब कि वर्ष 2001 में यह 933 ही थी । शिशु लिंगानुपात में निरन्तर गिरावट की प्रवृत्ति चिन्तनीय है।

साक्षरता : वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में साक्षरों की संख्या 1144 लाख है जिनमें 682 लाख पुरुष तथा 462 लाख महिला साक्षर हैं तथा प्रदेश का साक्षरता प्रतिशत 677 है जो भारत के संगम अवधि के साक्षरता प्रतिशत 73.0 से कम है जबकि वर्ष 2001 में यह प्रतिशत 56.3 था जो भारत के संगत अवधि में साक्षरता प्रतिशत 64.8 से कम था।

उत्तर प्रदेश में दिव्यांग (विकलांग) : वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश में 4157514 कुल विकलांग व्यक्ति हैं जिसमें 763988 दृष्टिहीनता, 266586 मूक, 1027835 बहरापन, 677713 गति, 76603 मानसिक, 181342 मानसिक मंदता, 946436 अन्य एवं 217011 बहु विकलांगता की श्रेणी में आते है। प्रदेश में विकलांग व्यक्तियों का कुल जनसंख्या से प्रतिशत 2.08 है।

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या (1998.12 लाख) में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या क्रमशः 413.58 लाख एवं 11.34 लाख थी जो कुल जनसंख्या की क्रमशः 20.7 प्रतिशत तथा 0.6 प्रतिशत थी जबकि इसी अवधि में भारत में यह प्रतिशत क्रमश: 16.6 एवं 8.6 था।

जन्म दर, मृत्यु दर एवं शिशु मृत्यु दरः
एम. आर. एस. बुलेटिन भारत सरकार के अनुसार प्रदेश में वर्ष 2000 में जन्म दर मृत्यु दर तथा शिशु मृत्यु दर क्रमशः 32.8 10.3, 83 थी जो निरंतर गिरते हुए वर्ष 2013 में क्रमश: 27.2, 7.7, एवं 50 हो गयी है एवं पुनः गिरते हुए वर्ष 2015 में क्रमश: 26.7, 7.2 एवं 46.0 हो गयी है एवं पुनः गिरते हुए वर्ष 2016 में क्रमश: 26.2, 69 एवं 43.0 हो गयी है। राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2013 में उक्त संख्या क्रमशः 21.4, 7.0, 40 एवं वर्ष 2015 में उक्त संख्या क्रमश: 20.8, 6.5 एवं 37.0 है एवं 2016 में उक्त संख्या क्रमश: 20.4, 6.4 एवं 34.0 है। प्रदेश में जन्म दर, मृत्यु दर तथा शिशु मृत्यु दर सम्बन्धी आँकड़े (प्रति हजार )


 

उत्तर प्रदेश में प्रमुख धर्मानुसार जनसंख्या: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश में 1593.1 लाख ( 79.8 प्रतिशत) हिन्दू, 384.8 लाख (19.3 प्रतिशत) मुस्लिम, 3.6 लाख ( 0.2 प्रतिशत ) ईसाई, 64 लाख (0.3 प्रतिशत) सिक्ख, 21 लाख ( 0.1 प्रतिशत) बौद्ध, लाख (0.1 प्रतिशत) जैन एवं 60 लाख (0.3 प्रतिशत) अन्य एवं अवर्णित धर्म के व्यक्ति निवास करते हैं। 


 
 
 
 

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1. उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में जनसंख्या संबंधी आंकड़ों में पर्याप्त भिन्नता है। विवेचना कीजिए।
प्रश्न 2. उत्तर प्रदेश की जनसंख्या नीति 2021 का वर्णन कीजिए।

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