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रासलीला
रासलीला की उत्पत्ति बृज क्षेत्र से हुई और इसका संबंध कृष्ण के जीवन से होता है। इसमें श्री कृष्ण राधा रानी और गोपियों के प्रसंगों को नाटक के माध्यम से दिखाया जाता है । रासलीला में मुख्य रूप से बृज भाषा का प्रयोग होता है और इसे जन्माष्टमी के अवसर पर किया जाता है। रासलीला लोकनाट्य का प्रमुख तत्व है- कि इसमें राधा-कृष्ण की प्रेम-क्रीड़ाओं का प्रदर्शन होता था, जिनमें आध्यात्मिकता की प्रधानता रहती थी। इनका मूलाधार सूरदास तथा अष्टछाप के कवियों के पद और भजन होते थे। उनमें संगीत और काव्य का रस तथा आनंद, दोनों रहता था। लीलाओं में जनता धर्मोपदेश तथा मनोरंजन साथ-साथ होते थे । इनके पात्रों- कृष्ण, राधा, गोपियों के संवादों में गंभीरता का अभाव और प्रेमालाप का अधिक्य रहता था। इन लीलाओं में रंगमंच भी होता था, किंतु वह स्थिर और साधारण कोटि का होता था। प्रायः रासलीला करने वाले इसे किसी मंदिर में अथवा किसी पवित्र स्थान या ऊँचे चबूतरे पर शुरू कर सकते थे। रास करने वालों की मण्डलियाँ भी होती थीं, जो पुणे, पंजाब और पूर्वी बंगाल तक घूमा करती थीं।
नौटंकी
इसी कड़ी में अगला नाम आता है नौटंकी का। नौटंकी उत्तरप्रदेश का एक बहुत लोकप्रिय नृत्य है। नौटंकी दरअसल स्वांग की ही एक शाखा है जिसका वर्णन आईन ए अकबरी में भी मिलता है। नौटंकी में सामाजिक और लोक कथाओं को नाट्य रूप में रूपांतरित करके कलाकारों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इसमें संवाद का स्वरूप काव्यात्मक होता है। नौटंकी में नगाड़े और हारमोनियम का प्रयोग किया जाता है। नौटंकी की मुख्य रूप से दो शैलियां उत्तर प्रदेश में हैं। एक है-कानपुरी शैली और दूसरी-हाथरसी शैली। हाथरसी शैली जहां प्राचीन स्वरूप पे जोर देती हैं और काव्यात्मक होती है तो वही कनपुरिया शैली थोड़ी नई है और इसमें अभिनय पर ज्यादा जोर दिया जाता है।
Baten UP Ki Desk
Published : 3 June, 2023, 4:31 pm
Author Info : Baten UP Ki