राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ पर विपक्षी दलों ने गंभीर आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया है। विपक्ष का कहना है कि धनखड़ का रवैया सदन में पक्षपातपूर्ण रहा है, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया बाधित हो रही है। इस प्रस्ताव को लेकर संसद में सियासी हलचल तेज हो गई है।
क्यों उठी अविश्वास प्रस्ताव की मांग?
विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए का आरोप है कि सभापति धनखड़ सदन में सत्ता पक्ष का पक्ष लेते हुए विपक्ष को अपनी बात रखने से रोकते हैं।
- नेता प्रतिपक्ष का माइक बंद करना: विपक्षी नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने आरोप लगाया कि उन्हें बार-बार अपनी बात रखने से रोका गया।
- विपक्षी मुद्दों को दबाने का आरोप: विपक्षी सांसदों का दावा है कि सभापति विपक्ष द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण मुद्दों को चर्चा में शामिल नहीं करते और कई बार विपक्षी वक्तव्यों को सदन की कार्यवाही से हटा दिया जाता है।
- संसदीय परंपराओं का उल्लंघन: कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने इसे संसदीय मर्यादा और लोकतांत्रिक मूल्यों पर आघात बताया।
कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह का तीखा बयान-
कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि उनका रवैया लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर कर रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष की सदन चलाने की मांग को नजरअंदाज कर, सभापति सत्ता पक्ष को गतिरोध बढ़ाने का मौका दे रहे हैं। राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी धनखड़ पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया।
अनुच्छेद 67(बी) का सहारा लेंगे विपक्षी सांसद
संविधान के अनुच्छेद 67(बी) का सहारा लेते हुए विपक्षी सांसद राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी में हैं। विपक्ष का दावा है कि प्रस्ताव पर पहले ही कई सांसदों के हस्ताक्षर हो चुके हैं, जिससे यह कदम संसद में एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम बनने की ओर अग्रसर है।.
क्या कहता है संविधान का अनुच्छेद 67(बी)?
अविश्वास प्रस्ताव के लिए संविधान का अनुच्छेद 67(बी) लागू होता है।
- शर्तें: उपराष्ट्रपति (जो राज्यसभा के पदेन सभापति भी होते हैं) को हटाने के लिए राज्यसभा में प्रस्ताव पेश किया जाता है। इसे सदन के बहुमत से पारित करना आवश्यक है, और इसके बाद लोकसभा की सहमति भी जरूरी होती है।
- 14 दिन का नोटिस: प्रस्ताव पेश करने से पहले कम से कम 14 दिनों का नोटिस देना अनिवार्य है।
- संविधान यह भी स्पष्ट करता है कि उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पांच साल का होता है, लेकिन वे राष्ट्रपति को इस्तीफा देकर अपना पद त्याग सकते हैं।
सत्ता-पक्ष और विपक्ष: संख्या बल का गणित
राज्यसभा में विपक्ष ने दावा किया है कि अविश्वास प्रस्ताव के लिए 70 सांसदों के हस्ताक्षर जुटाए जा चुके हैं। इसमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा), और आम आदमी पार्टी (आप) समेत कई दल शामिल हैं। हालांकि, राज्यसभा में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के पास बहुमत है, जिससे यह प्रस्ताव पारित होना मुश्किल नजर आता है।
विपक्ष के आरोपों का सारांश
- धनखड़ पर पक्षपात का आरोप: विपक्ष का कहना है कि धनखड़ सदन को सत्ता पक्ष के लिए एक मंच बना रहे हैं।
- लोकतांत्रिक मूल्यों पर चोट: दिग्विजय सिंह ने कहा कि सभापति का रवैया लोकतंत्र विरोधी है।
- संसद की गरिमा पर सवाल: तृणमूल कांग्रेस ने इसे "लोकतंत्र की हत्या" करार दिया।
भविष्य की रणनीति और संभावनाएं
- विपक्ष 14 दिनों के नोटिस के बाद प्रस्ताव पेश कर सकता है।
- यदि प्रस्ताव पर बहस होती है, तो यह संसद में सरकार और विपक्ष के बीच तीखी बहस का कारण बन सकता है।
- भले ही प्रस्ताव पारित होना मुश्किल हो, विपक्ष इसे लोकतंत्र और संसदीय प्रक्रियाओं की रक्षा के लिए एक नैतिक कदम के रूप में देख रहा है।
सभापति का जवाब और सरकार की रणनीति
इन आरोपों के बीच, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को फ्लोर लीडर्स की बैठक बुलाई है। यह बैठक सदन में जारी गतिरोध को खत्म करने के उद्देश्य से है। वहीं, भाजपा ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए इसे राजनीतिक नौटंकी करार दिया है।
कौन होता है राज्यसभा का पदेन सभापति?
उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। राज्यसभा के पदेन सभापति के रूप में उपराष्ट्रपति की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है। उपराष्ट्रपति इस पद पर रहते हुए किसी भी अन्य लाभ के पद पर कार्य नहीं करते। जब उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते हैं या उनके कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं, तो इस दौरान वे राज्यसभा के सभापति की जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं। ऐसे समय में, उन्हें सभापति के रूप में वेतन या भत्ते का भी अधिकार नहीं होता। यह प्रावधान न केवल उनके कर्तव्यों को परिभाषित करता है, बल्कि संवैधानिक संतुलन बनाए रखने में भी सहायक है।
क्या यह प्रस्ताव सफल हो सकेगा?
राज्यसभा में वर्तमान में सत्तारूढ़ भाजपा और उसके सहयोगियों का बहुमत है। ऐसे में प्रस्ताव के पारित होने की संभावना बेहद कम है। मानसून सत्र के दौरान भी विपक्ष ने इस तरह का प्रस्ताव लाने की तैयारी की थी, लेकिन इसे पेश नहीं किया गया। हालांकि, यह प्रस्ताव विपक्ष के लिए एक प्रतीकात्मक कदम है। इससे विपक्षी दल अपने मतभेदों को एकजुट कर सत्तापक्ष पर दबाव डालने की रणनीति अपना रहे हैं।
By Ankit Verma