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आज़ादी की लड़ाई की पहली चिंगारी

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तारीख-29 मार्च, 1857 
दिन-रविवार
जगह-कलकत्ता से 16 मील दूर बैरकपुर सैनिक छावनी
समय-शाम लगभग सवा पांच बजे

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम करने वाला एक भारतीय सैनिक शेर की तरह दहाड़ उठता है। कहासुनी शुरू होती है तब तक देखते-देखते भारतीय शेर अंग्रेज अफसर के ऊपर गोली दाग देता है। 1857 के विद्रोह की यह पहली गोली थी और यह भारतीय शेर कोई और नहीं बल्कि मंगल पांडे था। यह कहानी है मंगल पांडे और 1857 के विद्रोह की

जीवन-विवरण
अमर शहीद मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा में हुआ था। पिता का नाम दिवाकर पांडे और माता का नाम अभय रानी था। 22 वर्ष की आयु में मंगल पांडे 1849 में ईस्ट इंडिया कंपनी बंगाल की सेना में शामिल हुए थे। 

ब्रिटिश अत्याचार का निंदनीय इतिहास
यह वह दौर था जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का अत्याचार अपने चरम पर था। कंपनी किसानों और जमीन के मालिकों से मनमाना टैक्स वसूल रही थी जिसके कारण किसान गरीबी और कर्ज के जाल में फंसते जा रहे थे। भेदभाव पूर्ण कानून, डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स जैसी हड़प नीतियां, भारतीयों को ऊंचे सरकारी पदों से बाहर रखा जाना और सेना में काम कर रहे भारतीय सैनिकों से निम्न दर्जे का व्यवहार किया जाना …. यह सभी राजनीतिक अत्याचार जमके चल रहा था। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारतीयों के सामाजिक व्यवस्था और उनके धार्मिक ताने-बाने का रत्ती भर सम्मान नहीं कर रही थी। यानी भारतीयों के मन में असंतोष का कोई एक कारण नहीं था, बल्कि आर्थिक शोषण, राजनीतिक अत्याचार, सामाजिक और धार्मिक कारण, सैन्य कारण और तत्कालीन भारतीय नेताओं द्वारा जन जागरूकता जैसे कई कारण थे। 

1857 की क्रांति कैसे भड़की ?
आग बहुत पहले से सुलग रही थी, लेकिन उसी समय एक और चिंगारी भड़क गई। दरअसल उसी समय भारत में सिपाहियों को पैटर्न 1853 एनफ़ील्ड बंदूक दी गईं, जो 0.577 कैलीबर की बंदूक थी। इस नई एनफ़ील्ड बंदूक में बारूद भरने के लिए कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था। कारतूस के बाहरी आवरण में चर्बी होती थी, जो कि उसे नमी और पानी की सीलन से बचाती थी। सैनिकों को यह बात पता चली कि ये चर्बी गाय और सुअर की थी। इससे हिंदू और मुस्लिम दोनों सैनिकों की धार्मिक भावनाएं आहत होने लगी, क्योंकि गाय हिंदुओं के लिए पूजनीय मानी जाती है और सुअर मुसलमानों के लिए निषेध।

29 मार्च 1857 को नये कारतूस सैनिकों को दिए गए। मंगल पांडेय समेत बैरकपुर छावनी के कई सैनिकों ने इस कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया। धोखे से धर्म भ्रष्ट करने की कोशिश के लिए मंगल पांडे अंग्रेज अफसरों को भला बुरा कहने लगे। इस पर अंग्रेज अफसर ने सेना को हुकुम दिया कि उसे गिरफ्तार किया जाए। इस तरह 1857 के विद्रोह की शुरुआत पश्चिम बंगाल के बैरकपुर से 29 मार्च को ही हुई। मंगल पांडे ने उस अंग्रेज अफसर पर गोली चला दी। बदले में मंगल को गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि चंद्रशेखर आजाद की तरह मंगल ने भी खुद को गोली मारने की कोशिश की थी और उन्हें गोली लग भी गई थी, लेकिन उनका निधन नहीं हुआ था। अंग्रेज मंगल पांडे के साहस और उनके प्रभाव से इतना डर गए थे कि उन्हें तुरंत ही फांसी देने का फैसला ले लिया। कोर्ट मार्शल की औपचारिकता के बाद उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फांसी देना तय किया, लेकिन विद्रोह के डर से उन्हें 10 दिन पहले ही यानी 8 अप्रैल को ही फांसी दे दी गई। 

इस घटना के बाद से उत्तर भारत में अंग्रेजो के खिलाफ भयानक विद्रोह भड़क उठा। विद्रोह पटना से लेकर राजस्थान की सीमाओं तक फैला हुआ था। कानपुर, लखनऊ, बरेली, झाँसी, ग्वालियर और बिहार के आरा ज़िले … यह सब ऐसे जगह थे जहां अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंक देने की आंधी आ गई थी। 10 मई 1857 को विद्रोह शुरू हो गया। हालांकि चंद ही दिनों बाद अंग्रेज इस विद्रोह को दबाने में सफल रहे, लेकिन यह घटना भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई।

विद्रोह का प्रभाव

इसने कंपनी शासन का अंत कर दिया और ब्रिटिश राज का प्रत्यक्ष शासन शुरू कर दिया। अंग्रेज़ों ने धार्मिक सहिष्णुता को स्वीकार किया और प्रशासनिक एवं सैन्य पुनर्गठन पर काफी ध्यान दिया। इस विद्रोह के कारण भारतीय समाज के कई वर्ग एकजुट हुए और इसने भारतीय राष्ट्रवाद की शुरुआत कर दी थी। 

 

लेखक-केशरी पाण्डेय 

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