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Army को मिला अपना Apache Guardian! क्या अब बदल जाएगी LAC की गेम?

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भारतीय थलसेना (Army Aviation Corps) को 22 जुलाई 2025 को अमेरिका से AH-64E Apache Guardian Attack Helicopters की पहली खेप मिली। यह घटना केवल एक नया हेलीकॉप्टर आने की खबर नहीं, बल्कि भारत की सैन्य रणनीति और आत्मनिर्भरता की असली कसौटी भी है।

क्यों अहम है Apache?

अपाचे गार्जियन दुनिया के सबसे उन्नत और युद्ध-प्रमाणित अटैक हेलीकॉप्टरों में से है।

  • लॉन्गबो रडार: एक साथ 256 टारगेट्स पकड़ और प्राथमिकता तय कर सकता है।

  • स्पीड और रेंज: 293 किमी/घंटा की रफ्तार और 480 किमी से ज़्यादा ऑपरेशनल रेंज।

  • सर्वाइवेबिलिटी: आधुनिक सेंसर और काउंटर-मेज़र्स से लैस।

  • हर Terrain में सक्षम: रेगिस्तान, मैदान या लद्दाख जैसे हाई-एल्टीट्यूड इलाकों में भी।

  • मल्टी-रोल: Close Air Support से लेकर दुश्मन की Air Defence को दबाने तक।

यही वजह है कि अफगानिस्तान और इराक जैसे कठिन युद्धक्षेत्रों में Apache ने खुद को साबित किया है।

भारत की खरीद और संदर्भ

  • 2020: थलसेना के लिए 6 Apache का ₹5,691 करोड़ का सौदा

  • 2015: IAF के लिए 22 Apache और 15 Chinook का $2.5 बिलियन का डील

  • अभी: IAF के पास 22 Apache हैं, Army को 3 मिल चुके हैं और बाकी 3 नवंबर 2025 तक आ जाएंगे।

ये induction ऐसे समय पर हुआ है जब भारत की पश्चिमी और उत्तरी सीमाओं पर तनाव है।

  • पाकिस्तान ने Chinese Z-10ME induct किए।

  • चीन ने LAC पर Z-10, Z-19 और Z-20 तैनात किए।

यानी, Apache केवल firepower नहीं, बल्कि deterrence और capability gap भरने वाला हथियार भी है।

सोच में बदलाव: Army को मिला अपना Attack Helicopter

पहले Attack Helicopters Air Force के कंट्रोल में होते थे। लेकिन Army का मानना था कि frontline battles के लिए उसकी खुद की ज़रूरतें हैं। Apache का Army में आना दिखाता है कि भारत Integrated Battle Groups (IBGs) और Theatre Command की ओर बढ़ रहा है—जहां mobility और precision दोनों निर्णायक होंगे।

स्वदेशी विकल्प: उम्मीदें और चुनौतियाँ

भारत ने अपने Combat Helicopters बनाए हैं:

  • Rudra – ध्रुव का weaponised version।

  • LCH Prachand – खासतौर पर high-altitude combat के लिए डिज़ाइन।

लेकिन समस्याएं अब भी हैं:

  • Imported engines पर dependency।

  • Project delays।

  • Combat-proven history की कमी।

इसलिए analysts मानते हैं:
“Apache आज की ज़रूरत है, Prachand भविष्य की guarantee।”

बजट और रणनीति की खींचतान

2025–26 का Defence Budget ₹6.81 trillion है, जिसमें acquisitions के लिए ₹1.49 trillion रखा गया है।
लेकिन demands कई हैं—

  • Infantry का modernization,

  • Navy की submarine deals,

  • Air Force का pending fighter jet deal (MRFA)।

ऐसे में Apache जैसे imports short-term capability तो देते हैं, लेकिन budget पर दबाव भी डालते हैं। SIPRI (2024) के मुताबिक, India अब भी दुनिया का सबसे बड़ा arms importer है।
सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक imports को acquisitions का 30% से नीचे लाया जाए।

भारत के सामने क्या-क्या हैं चुनौतियां?

भारत के सामने दोहरी चुनौती है—

  • आज की जरूरतों को Apache जैसे imports से पूरा करना।

  • कल की आत्मनिर्भरता को Prachand और Rudra जैसे indigenous platforms से सुरक्षित करना।

इस दिशा में ज़रूरी कदम:

  1. Indigenous Helicopter Engines पर काम तेज़ करना।

  2. Defence R&D और procurement process में reforms।

  3. Joint Ventures और PPP से local production बढ़ाना।

  4. Prachand को combat roles में extensively prove करना।

Apache Guardian का induction भारत को short-term combat edge देता है और regional balance में मजबूती लाता है। लेकिन साथ ही यह दिखाता है कि Atmanirbhar Bharat की राह अभी लंबी है। भारत को present readiness और future self-reliance के बीच नाजुक संतुलन बनाना होगा। यानी फिलहाल “स्मार्ट imports” और आने वाले समय में “स्वदेशी आत्मनिर्भरता”—यही भारत की असली रणनीति होगी।

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