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1857 स्वतंत्रता संग्राम की मर्दानी अजीजन बाई

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भारतीय इतिहास के सभी गौरवपूर्ण अध्याय के निर्माण में जितना सहयोग स्त्री शक्ति ने दिया उतना शायद किसी और ने नहीं दिया होगा। यूं तो अंग्रेजी शासन के विरुद्ध भारतीय स्वतंत्रता संग्राम कई दौर से गुजरा, लेकिन विश्व के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य के सामने भारतीय महिलाएं डटकर खड़ी रहीं। स्वतंत्रता संग्राम में कुछ नाम ऐसे हैं जिनके योगदान से शायद हम अब तक वाकिफ ही नहीं हैं.. ऐसा ही एक नाम है अजीजन बाई का.. वैसे तो अजीजन बाई पेशे से एक नर्तिका थी, लेकिन स्वतंत्रता के इस संग्राम में उन्होंने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। इतिहासकार बताते हैं कि उनका जन्म मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र के राजगढ़ में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे रानी लक्ष्मीबाई से काफी प्रेरित थी और बचपन से ही खुद को उनकी वेशभूषा में रखना पसंद करती थी। वे पुरुषों के लिबास पहनती, अपने पास हमेशा बंदूक रखती और सैनिकों के घोड़े की सवारी भी किया करती थी। जब 1857 की क्रांति पूरे देश में फ़ैल रही थी उस वक्त भी अजीजन बाई ने आज़ादी के आंदोलन में अपनी भागीदारी सुनिश्चित की। उन्होंने तवायाफखानों की औरतों का एक संगठन तैयार किया जिसका नाम मस्तानी टोली रखा गया। यह संगठन अंग्रेजों की छावनी से गुप्त सूचनाएं हासिल करता और इसे स्वतंत्रता सेनानियों तक पहुंचाता था। लेकिन कुछ समय बाद यह संगठन अंग्रेज सैनिकों के शक के दायरे में आ गया और अग्रेजों ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया। हालांकि इस बीच अजीजन कई बार अंग्रेजों के चंगुल से भागने में सफल रहीं, लेकिन पहले स्वतंत्रता संग्राम में संघर्ष के दौरान अंग्रेज सैनिकों ने अजीजन को गिरफ्तार कर लिया। अंग्रेज अधिकारियों ने उन्हें मार डालने का फरमान दे दिया और देखते ही देखते अजीजन के शरीर को गोलियों से छलनी कर दिया गया। 
आज इन बातों का ज़िक्र करने के पीछे की वजह है आज की तारिख.. 10 मई.. आज ही के दिन साल 1857 में अंग्रेजी शासन की दमनकारी नीतियों के खिलाफ मेरठ की धरती से पहले स्वतंत्रता संग्राम का आगाज हुआ था। यह संघर्ष भारत की आजादी के लिए बेहद ज़रूरी मानक बन गया जिसका नेतृत्व मंगल पांडे द्वारा किया गया। यह स्वतंत्रता संग्राम आगे चलकर बिटिश हुकूमत के खिलाफ जनव्यापी विद्रोह के रूप में परिवर्तित हुआ। 
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में काम करने वाले भारतीयों सैनिकों द्वारा शुरू हुआ यह संग्राम मेरठ से शुरू होकर दिल्ली, आगरा, कानपुर और लखनऊ तक फ़ैल गया। विद्रोह की यह चिंगारी सबसे पहले मेरठ के सदर बाजार से भड़की, जो पूरे देश में आग की तरह फ़ैल गई। जब देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ जनता में गुस्सा भरा हुआ था उस वक्त अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए रणनीति तैयार की गई। पूरे देश में एक साथ अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत होनी थी लेकिन मेरठ में तय समय से पहले ही अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा फूट पड़ा। सदर बाजार में अंग्रेजी फ़ौज पर लोगों की भीड़ ने हमला बोल दिया। सबसे पहले काली सेना के जवानों ने क्रांति की शुरुआत की और उनके पीछे-पीछे भीड़ सेना के परेड ग्राउंड तक पहुंच गई। अब सदर बाजार से लेकर परेड ग्राउंड तक विद्रोह शुरू हो चुका था। इस विद्रोह की एक खास बात यह भी थी की इस जंग में हिंदू-मुस्लिम एक जुट होकर मैदान में कूद पड़े। अमूमन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के लिए लोग सैनिकों की समस्याओं को एकमात्र कारण मानते हैं। हालांकि कई अन्य कारण भी रहें जिन्हें इस विद्रोह के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाता है। 
इस विद्रोह का एक महत्वपूर्ण कारण नई एनफील्ड रायफल की शुरुआत भी थी। इस रायफल को लेकर सिपाहियों में एक अफवाह फ़ैल गई थी कि इसे लोड करने के लिए कारतूसों का इस्तेमाल किया जाता है, इन्हें चिकना करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला तेल सूअर और गायों की चर्बी का मिश्रण था। इसके लिए मांस से संपर्क में आना उस वक्त हिंदू और मुस्लिमों दोनों का अपमान था। 
इसके अलावा यह भी बताया जाता है अंग्रेजी सेना में भारतीय सैनिक भेदभाव का शिकार थे। जिन्हें सेना में अंग्रेजी हुकूमत द्वारा कम वेतन दिया जाता था और उन्हें मालिकों से लगातार शोषण का सामना करन पड़ रहा था। शोषण की हदें तब पार हो गई जब लोगों को माथे पर जाती निशान लगाने, दाड़ी रखने और पगड़ी पहनने से रोका गया। अंग्रेजों ने भारतीयों को उनके ही देश में महत्वपूर्ण और उच्च पदों से वंचित कर दिया था। ब्रिटिश गतिविधियों के महत्वपूर्ण स्थानों के बाहर साइन बोर्ड में ‘डॉग्स एंड इंडियन्स आर नॉट अलाउड’ जैसे अपमानित वाक्यों को लिखा गया। 
ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजी शिक्षा और ईसाई धर्म का खूब प्रचार किया गया। जिसका सभी धर्मों के लोगों ने खूब विरोध किया था।

 

 

 

 

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