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उत्तर हूँ मैं...

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उत्तर प्रदेश का इतिहास काफी प्राचीन है। उत्तर प्रदेश को वैदिक काल में ब्रह्मर्षि देश या मध्य देश के नाम से भी जाना जाता था। यह धरती गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती जैसी ऐतिहासिक नदियों का दोआब क्षेत्र है और यहां पौराणिक कहानियों का ज़िक्र सतयुग से ही शुरू हो जाता है और आगे द्वापर और त्रेता युग में भी जारी रहता है। 

उत्तर प्रदेश को राम की अयोध्या, कृष्ण की मथुरा और शिव की काशी के रूप में जाना जाता है। उत्तर प्रदेश में ही महाभारत और रामायण सरीखे कई महाकाव्य लिखे गए हैं। उत्तर प्रदेश जो वैदिक काल के कई महान ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहा जिनमें भारद्वाज, गौतम, वशिष्ठ, विश्वामित्र और वाल्मीकि जैसे ऋषि-मुनि शामिल रहे।

आर्यों ने जब उत्तर की इस धरती पर कदम रखा तो यहीं से वैदिक सभ्यता की शुरुआत हुई। सिंधुनदी और सतलुज के मैदानी भागों से आर्यों का फैलाव गंगा और यमुना के मैदानी क्षेत्रों में हुआ और इन्हीं आर्यों के नाम पर भारत देश का नाम आर्यवर्त और भारतवर्ष पड़ा ।

ईसा पूर्व छठी शताब्दी में उत्तर प्रदेश का जुड़ाव जैन और बौद्ध जैसे धर्मों से हुआ। वो उत्तर प्रदेश ही था जो भगवान बुद्ध के अवतार और उनके द्वारा किए गए बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का साक्षी बना। सारनाथ के क़रीब धमेक स्तूप में जब भगवान बुद्ध ने अपना पहला प्रवचन दियाए तो उस दौर में उत्तर प्रदेश पर मगध शासन हुआ करता था। यहां का चौखंडी स्तूप ही वो जगह है जहां भगवान बुद्ध अपने शिष्यों से पहली बार मिले थे और
शायद इसी कारण उत्तर प्रदेश को बौद्ध धर्म का पालना भी कहा जाता है।

अगर ऐतिहासिक साक्ष्यों और पुरातात्विक स्रोतों की माने तो उत्तर प्रदेश आरंभिक मानव के साक्ष्यों से भी जुड़ा हुआ है। इसे इलाहबाद की बेलन घाटी में पुरापाषाण काल से जुड़े पाषाणिक औजारोंए लोहदा नाला की अस्थि निर्मित मातृदेवी की मूर्तिए और सरायनाहर रॉय चौपानी माण्डो के गर्तावास जैसे उदाहरणों के ज़रिए समझा जा सकता है। यहां आरंभिक कृषि के भी साक्ष्य कोलडीवा में मिलते हैं। हड़प्पा की खुदाई तो आज भी कई स्थलों से की
जा रही है और नए - नए साक्ष्य मिल रहे हैं। इसके अलावा उपनिषद में भी काशी की चर्चा की गई है और 16 महाजनपदों में से 8 महाजनपद (कुरु, पांचाल, काशी, कोशल, शूरसेन, चेदि, वत्स और मल्ल) आधुनिक उत्तर प्रदेश का हिस्सा हैं। 

वो उत्तर प्रदेश की ही धरती थी जो चन्द्रगुप्त प्रथम, मौर्य सम्राट अशोक, समुद्रगुप्त, विक्रमादित्य और हर्षवर्धन जैसे महान शासकों की कर्मभूमि बनी। यही वो दौर था जब हिन्दू और बौद्ध संस्कृति का विकास हुआ। अशोक के शासन काल में जहां बौद्ध कला के स्थापत्य और वास्तुशिल्प प्रतीकों का बोलबाला रहा तो वहीं गुप्त काल के दौरान हिन्दू कला का भी खूब विकास हुआ।

मध्य काल में जब उत्तर प्रदेश मुस्लिम शासकों के अधीन हुआ तो इस कारण हिंदू और इस्लाम धर्म में नज़दीकी बढ़ी और एक नई मिली-जुली संस्कृति का जन्म हुआ। उत्तर प्रदेश की ही वो धरती थी जहां मुग़ल वंश का महानतम काल अकबर से लेकर औरंगजेब और फिर आगे आलमगीर तक बना रहा। इसी दौरान आगरा के पास नई शाही राजधानी फतेहपुर सीकरी का भी निर्माण हुआ। 

आगे अकबर के पोते शाहजहां ने अपनी बेगम की याद में आगरा में ताजमहल का निर्माण करवाया जो महानतम वास्तुशिल्प की एक मिसाल है। इसी दौर में तुलसीदास, सूरदास, रविदास, रामानंद, और उनके मुस्लिम शिष्य कबीर और कई अन्य संतों ने हिंदी साहित्य और अन्य भाषाओं के विकास के साथ भक्तिआंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

बात चाहे सल्तनकाल की रही हो या फिर चाहे मुग़ल काल की हर समय में उत्तर प्रदेश प्रसांगिक रहा। अकबर ने तो उत्तर प्रदेश की माटी को ही अपना सबकुछ मान लिया था। अकबर ने बिना किसी भेदभाव के वास्तुशिल्पए साहित्यए चित्रकला और संगीत के जानकारों को अपने दरबार में जगह दी । अकबर ने इलाहाबाद और फतेहपुर सीकरी में जो किले बनवाए उन्हीं की नींव पर मुगल वंश सैकड़ों सालों तक मजबूत बना रहा। इसके अलावा भी सल्तनकाल में संभल हो या कड़ा जौनपुर हो या आगरा सभी में उत्तर प्रदेश ने अपना वर्चस्व बनाए रखा।  इक्ता व्यवस्था का प्रशासन रहा हो या फिर चाहे सल्तनत काल की आर्थिक शक्ति। सभी जगह उत्तर प्रदेश की चर्चा मिलती है। इसके अलावा लोधी काल से लेकर आगे मुग़ल काल में भी आगरा का राजनीतिक वर्चस्व बना रहा।

जब उत्तर प्रदेश आधुनिक भारत के पड़ाव पर पहुंचा तो वहां पर अवध और रुहेल ये दो ऐसे क्षेत्र बन गएए जिन्होंने शक्ति के संघर्ष को और शक्ति के सत्ता के हस्तानांतरण को मुग़लों से अलग हट कर देखा। उत्तर प्रदेश ने अपनी बौद्धिक श्रेष्ठता को ब्रिटिश शासनकाल में भी बनाए रखा। 1857 में उत्तर भारत के लोगोंए ज़मीदारों और राजाओं ने ब्रटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ एक महान विद्रोह कियाए जिसे भारत के पहले स्वाधीनता संग्राम की संज्ञा दी गई । अवध जो लखनऊ के आस - पास का क्षेत्र था उसने 1857 में हज़रत बेग़म के साहस को देखा तो वहीं कानपुर में नाना साहब के चिराग़ को भी। 1857 की क्रांति उत्तरप्रदेश के मेरठ से ही मंगल पांडेय की अगुवाई में शुरू की गई थीए जो आगे झांसीए कानपुरए इलाहबाद और बरेली जैसे उत्तर प्रदेश के सभी इलाकों में पर फ़ैल गई ।

आधुनिक भारत में उत्तर प्रदेश का महत्व बस यहीं नहीं थमा। आगे मोतीलाल नेहरू से लेकर जवाहर लाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय,मौलना आज़ाद, गोविन्द वल्लभ पंत, सरोजनी नायडू के अलावा चंद्रशेखर आज़ाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां जैसे क्रांतिकारियों की भी उत्तर प्रदेश की धरती गवाह बनी। इन सब के अलावा भी स्वतंत्रता आंदोलन में उत्तर प्रदेश ने कई और तरीकों से भी सहयोग किया। 1922 में शुरू हुआ असहयोग आंदोलन भी पूरे संयुक्त प्रान्त यानी उत्तर प्रदेश में फ़ैला हुआ था। हालाँकि गोरखपुर के चौरी चौरा में हुई हिंसा के कारण अस्थायी रूप से इस आंदोलन को रोकना पड़ा।

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