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वेदों ने कैसे बदल दी संगीत की दुनिया?

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आज एक ऐसी अद्भुत यात्रा पर चलेंगे, जहाँ से भारतीय संगीत की जड़ें फूटीं। क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे भारतीय संगीत की शुरुआत कहाँ से हुई? कैसे राग, सुर और ताल का जन्म हुआ? ये सब कुछ जुड़ा है हमारे प्राचीन वेदों से। चलिए, हम आपको बताते हैं कि कैसे वेदों ने हमारी संगीत की नींव रखी।

कैसे वेदों ने संगीत की रखी नींव?

सबसे पहले हम बात करेंगे सामवेद की, जिसे भारतीय संगीत का आधार माना जाता है। अगर आप सोच रहे हैं कि सामवेद में क्या खास था, तो आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह वेद संगीत से भरा हुआ है। सामवेद में जो ऋचाएं (हिम्न) लिखी गईं थीं, उन्हें गाया जाता था। यह साधारण बोलने के बजाय गाने के रूप में प्रस्तुत किए जाते थे। इसने भारतीय संगीत में लय, ताल, और सुर का बीज बोया। इन ऋचाओं को गाने का एक खास तरीका था जिसे ‘ सामगान ’ कहा जाता है।

सामवेद में निहित संगीत के बीज और उनका महत्व-

वेदों में सिर्फ शब्द नहीं थे, बल्कि उनके साथ गेयता (melody) भी थी, जो एक तरह से सुरों का प्रारंभिक रूप था। सामवेद की ऋचाएं जब गाई जाती थीं, तो उसमें एक खास धुन होती थी। यह धुन सीधे आपके दिल को छू जाती थी, जैसे आज के गाने होते हैं। इसी गेयता ने भारतीय संगीत की नींव रखी।

सप्तक की उत्पत्ति: सामवेद से सात सुरों की यात्रा-

यहीं से निकला है अपने संगीत का ‘ सप्तक ’ यानी वे सात सुर की, जिन्हें हम आज भी गाते हैं— स रे ग म प ध नी । आप जानकर हैरान होंगे कि ये सात सुर भी सामवेद से ही निकले हैं। सामवेद में ऋचाओं को गाने के लिए अलग-अलग स्वरों का उपयोग होता था, जिनसे बाद में संगीत के सात सुर विकसित हुए। ये सुर ही भारतीय शास्त्रीय संगीत की आत्मा हैं। हमारे हर गीत, हर राग, हर धुन में इन सात सुरों की प्रमुख भूमिका होती है। चाहे आप कोई भी राग गाएं, ये सात सुर ही उसके आधार बनते हैं। सामवेद ने इन सुरों को व्यवस्थित किया और इन्हें एक खास रूप दिया, जिससे संगीत में एक नया आयाम जुड़ गया।

गांधर्व वेद: संगीत का एक आध्यात्मिक स्वरूप-

अब हम आते हैं गांधर्व वेद पर, जो संगीत का एक अलग और अद्भुत आयाम है। गंधर्व वेद सामवेद का उपवेद है, जो विस्तृत विवरण देता है कि कैसे विभिन्न ध्वनियाँ और लय, जिन्हें ' राग ' भी कहा जाता है, इस सृष्टि के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी हुई हैं और उन्हें प्रभावित करती हैं। गांधर्व वेद में संगीत की गहन जानकारी दी गई है। यह वेद हमें बताता है कि कैसे संगीत को एक कला के रूप में देखा जा सकता है और कैसे इसे हमारे जीवन का हिस्सा बनाया जा सकता है।

गांधर्व वेद के माध्यम से संगीत का आध्यात्मिक महत्व-

गांधर्व वेद ने संगीत को एक आध्यात्मिक साधना का रूप दिया। इसका मतलब था कि संगीत सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह आत्मा को शांति और आनंद देने का माध्यम भी है। जब ऋषि-मुनि वेदों की ऋचाओं का गायन करते थे, तो वे इसे साधना के रूप में करते थे। उनका मानना था कि संगीत के माध्यम से हम अपने भीतर की शांति को पा सकते हैं और ईश्वर से जुड़ सकते हैं। यह विचार आज भी हमारे भारतीय संगीत में बना हुआ है। चाहे शास्त्रीय संगीत हो या भक्ति संगीत, उसमें यह भावना गहराई से जुड़ी हुई है कि संगीत आत्मा की अभिव्यक्ति है।

शांति और आनंद का माध्यम: वेदों में संगीत की भूमिका-

वेदों से शुरू हुआ यह संगीत धीरे-धीरे हमारे शास्त्रीय संगीत का आधार बन गया। भारत में दो प्रमुख शास्त्रीय संगीत की परंपराएं हैं-हिंदुस्तानी संगीत और कर्नाटकी संगीत । दोनों की जड़ें वेदों में हैं। खासकर सामवेद ने इन परंपराओं को बहुत प्रभावित किया है। आज हम जो राग-रागिनी गाते हैं, वे भी कहीं न कहीं वेदों की ऋचाओं से प्रेरित हैं।

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