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1960 की संधि पर बड़ा बदलाव, क्या अब भारत-पाकिस्तान संबंधों में आएगा नया मोड़?

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केंद्र सरकार ने एक बड़ा और रणनीतिक फैसला लेते हुए सिंधु जल संधि को स्थगित करने का निर्णय लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लिए गए इस फैसले का असर न केवल भारत-पाकिस्तान संबंधों पर पड़ेगा, बल्कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डाल सकता है।

क्या है यह फैसला?

इस फैसले के बाद अब भारत पर यह बाध्यता नहीं रह गई है कि वह पाकिस्तान को सिंधु नदी का पानी सुनिश्चित रूप से उपलब्ध कराए। हालांकि तत्काल प्रभाव में पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति रुकने वाली नहीं है, लेकिन भारत अब भविष्य में सिंधु नदी पर बांध बनाकर पानी रोकने या उसके प्रवाह को मोड़ने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र होगा।

कितना बड़ा झटका पाकिस्तान को?

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कृषि पर काफी हद तक निर्भर है, और उसमें भी सिंधु नदी बेसिन का पानी जीवनरेखा जैसा है। सिंधु और उसकी पश्चिमी सहायक नदियां – झेलम और चिनाब – पाकिस्तान के कृषि क्षेत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यदि भारत इन नदियों पर जल नियंत्रण करता है या पानी रोकता है, तो पाकिस्तान के बड़े हिस्से में सूखे जैसे हालात बन सकते हैं। इससे गेहूं, चावल, गन्ना और कपास जैसी फसलों की पैदावार बुरी तरह प्रभावित होगी, जो पाकिस्तान की खाद्य सुरक्षा और निर्यात अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

क्या है सिंधु जल संधि?

साल 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से एक ऐतिहासिक समझौता हुआ था, जिसे सिंधु जल संधि के नाम से जाना जाता है। इस संधि के तहत सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों को दो भागों में बांटा गया। पूर्वी नदियां – ब्यास, रावी और सतलुज – भारत को आवंटित की गईं, जबकि पश्चिमी नदियां – सिंधु, झेलम और चिनाब – का जल पाकिस्तान को दिया गया।

अब आगे क्या?

विशेषज्ञों के अनुसार, यदि भारत इस दिशा में आगे बढ़ता है और पश्चिमी नदियों पर जल परियोजनाएं शुरू करता है, तो पाकिस्तान को कूटनीतिक और पर्यावरणीय दोनों ही मोर्चों पर कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। वहीं भारत के लिए यह एक रणनीतिक विकल्प हो सकता है, जिससे वह आतंकवाद और सीमा पार से होने वाले हमलों के संदर्भ में दबाव की रणनीति अपना सकता है। भारत का यह कदम एक निर्णायक मोड़ की ओर संकेत करता है, जहां जल को सिर्फ संसाधन नहीं बल्कि कूटनीतिक हथियार के तौर पर देखा जा रहा है। आने वाले समय में इसका असर भारत-पाकिस्तान संबंधों पर किस तरह पड़ता है, यह देखना दिलचस्प होगा।

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