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भारतीय इतिहास और साहित्य में रानी पद्मावती का नाम सदियों से चर्चाओं का केंद्र रहा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या रानी पद्मावती वास्तव में थीं या वह सिर्फ एक साहित्यिक कल्पना थीं? इस सवाल का जवाब हमें प्रसिद्ध कवि मलिक मोहम्मद जायसी की रचना ‘पद्मावत’ में मिलता है।
जायसी की अद्भुत रचना – पद्मावत
उत्तर प्रदेश के रायबरेली ज़िले के जायस कस्बे में जन्मे मलिक मोहम्मद जायसी (1492-1542) की काव्य रचना ‘पद्मावत’ को अद्भुत साहित्यिक धरोहर माना जाता है। यह महाकाव्य न केवल भारतीय साहित्य में अपना स्थान रखता है, बल्कि ऐतिहासिक संदर्भों को भी अपने भीतर समेटे हुए है। हालाँकि, इतिहासकारों का मानना है कि यह किसी ऐतिहासिक घटना का प्रमाणिक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि कल्पना और जनश्रुतियों पर आधारित एक साहित्यिक दृष्टान्त है। जायसी ने ‘पद्मावत’ को पूरा करने में दस साल लगाए, लेकिन इसमें वर्णित अलाउद्दीन ख़िलज़ी की कहानी करीब 250 साल पहले की थी। ऐसे में यह सवाल और भी अहम हो जाता है कि यह काव्य ऐतिहासिक सच्चाई को दर्शाता है या केवल एक साहित्यिक कल्पना मात्र है।
इतिहास बनाम कल्पना
‘इम्पीरियल गज़ट ऑफ इंडिया’ (1909) और स्वयं जायसी की लिखी पंक्तियाँ इस तथ्य को उजागर करती हैं कि ‘पद्मावत’ पूरी तरह से एक काल्पनिक कथा है। इसके बावजूद, यह रचना भारतीय इतिहास, साहित्य और कला पर गहरी छाप छोड़ने में सफल रही है। इतिहासकारों की मानें तो जायसी के जन्म से पहले और बाद में भी चित्तौड़ की रानी पद्मावती का चरित्र लोककथाओं का अहम हिस्सा रहा है। कालांतर में इसे हिन्दू अस्मिता के प्रतीक के रूप में स्थापित किया गया।
राजनीति और पद्मावती की गाथा
इतिहासकारों का कहना है कि जब भी राजनीतिक या धार्मिक रूप से माहौल को गरमाने की जरूरत पड़ी, तब-तब मलिक मोहम्मद जायसी की ‘पद्मावत’ को ऐतिहासिक प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया गया। यह प्रवृत्ति इतनी प्रभावी रही कि लोगों ने पेशेवर इतिहासकारों द्वारा दिए गए प्रमाणों को भी नकार दिया, जो यह साबित करते हैं कि रानी पद्मावती वास्तव में कभी थीं ही नहीं।
जायसी की विरासत और उपेक्षा
मलिक मोहम्मद जायसी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतीय साहित्य को समृद्ध किया। ‘पद्मावत’ के अलावा उन्होंने ‘आखिरी कलाम’ और ‘चित्रलेखा’ जैसी अमर रचनाएँ लिखीं। वे केवल एक कवि ही नहीं, बल्कि राजा रणंजय सिंह के दरबारी कवि भी थे। वे राजा को सलाह देने के साथ-साथ राजमहल में साहित्यिक समृद्धि लाने में भी सहायक रहे। दुर्भाग्यवश, जायसी की स्मृतियाँ अब गुमनामी के अंधकार में खो चुकी हैं। उनके सम्मान में बना स्मारक उपेक्षा का शिकार हो गया है और अब खंडहर बन चुका है। यह विडंबना ही है कि जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से इतिहास में अमरता पाई, उनकी खुद की यादें मिटने के कगार पर हैं।
क्या पद्मावत केवल एक कल्पना थी?
रानी पद्मावती के अस्तित्व को लेकर विवाद अब भी जारी है। हालांकि, ऐतिहासिक साक्ष्यों के अभाव में यह स्पष्ट है कि ‘पद्मावत’ एक साहित्यिक कल्पना थी। फिर भी, इस कथा ने भारतीय समाज में अपनी गहरी छाप छोड़ी है और आने वाले वर्षों में भी यह चर्चा का विषय बनी रहेगी।
Baten UP Ki Desk
Published : 23 March, 2025, 12:00 pm
Author Info : Baten UP Ki