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उत्तर प्रदेश में सिंचाई

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सिंचाई मृदा को कृत्रिम रूप से पानी देकर उसमें उपलब्ध जल की मात्रा में वृद्धि करने की क्रिया है और आमतौर पर इसका प्रयोग फसल उगाने के दौरान, शुष्क क्षेत्रों या पर्याप्त वर्षा ना होने की स्थिति में पौधों की जल आवश्यकता पूरी करने के लिए किया जाता है। सिंचाई किसी कृषि प्रधान क्षेत्र की अनिवार्य आवश्यकता है। कृषि की सफलता विभिन्न फसलों के लिए जल उपलब्धता पर निर्भर करती है। इसके अतिरिक्त सिंचाई का प्रयोग मृदा को सूखकर कठोर बनने से रोकने, फसल को पाले के प्रकोप से बचाने एवं खरपतवार की वृद्धि पर लगाम लगाने आदि के लिए किया जाता है।

20वीं शताब्दी के प्रारंभ तथा स्वतंत्रता के पश्चात् उत्तर प्रदेश में सिंचाई सुविधाओं का विकास तेजी से हुआ। प्रदेश में सिंचाई के प्रमुख साधन नलकूप, नहर, तालाब, झील, पोखर, कुँआ आदि द्वारा किया जाता है। स्वतंत्रता से पूर्व सिंचाई सुविधाओं के विकास के लिए प्रदेश के सहारनपुर जिलें में 1828 ई. में पहला सिंचाई कार्यालय खोला गया। इसके पश्चात् आने वाले वर्षों में प्रदेश में नहर सिंचाई की विभिन्न परियोजनाएं शुरू की गई। जो विशेष कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश को लाभ पहुँचाने वाली रहीं।

प्रदेश की कृषि का मानसून पर निर्भरता और उसकी अनियमितता ने स्वतंत्रता के पश्चात् प्रदेश में सिंचाई सुविधाओं का तीव्र गति से विकास को मजबूर किया। वर्ष 2017-18 में उ.प्र. में शुद्ध बुआई क्षेत्र से शुद्ध सिंचित क्षेत्र का प्रतिशत (Percentage of net irrigated area to net area sown) 86.85 प्रतिशत था। नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों (2016-17) के अनुसार उ.प्र. का सकल सिंचित क्षेत्र 216 लाख हेक्टेयर है। 

नलकूप द्वारा सिंचाई : नलकूप 20वीं शताब्दी में प्रदेश में सिंचाई का प्रमुख साधन बनकर उभरा प्रदेश में सर्वाधिक सिंचाई नलकूपों द्वारा की जाती है। नलकूप द्वारा सिंचाई के मामलें में प्रदेश का प्रथम स्थान है। यह प्रदेश के कुल सिंचित क्षेत्र का लगभग 75 प्रतिशत है। नलकूपों द्वारा सिंचाई को लघु सिंचाई के अंतर्गत रखा जाता है। प्रदेश में सर्वप्रथम इसका प्रयोग 1960 में मेरठ जिले से प्रारंभ हुआ। यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सिंचाई का एक लोकप्रिय साधन है। प्रदेश के मेरठ, फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, सहारनपुर, बुलंदशहर, अलीगढ़, मुजफ्फरनगर आदि जनपदों में नलकूपों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई की जाती है। प्रदेश के किसान निजी और सरकारी दोनों प्रकार के नलकूपों का प्रयोग करते हैं। जिनमें निजी नलकूपों की संख्या अधिक है। गिरता भूमिगत जलस्तर प्रदेश में नलकूप सिंचाई के लिए एक चिंता का विषय है जिसे अटल भूजल योजना तथा अन्य जल संचयन विधियों द्वारा बढ़ाये जाने की जरूरत है जिससे प्रदेश में नलकूप सिंचाई एवं कृषि को संवहनीय (sustainable) बनाया जा सके।

नहरों द्वारा सिंचाई : उत्तर प्रदेश में गंगा एवं उसकी सहायक नदियों का विस्तृत जाल पाया जाता है। यह नदियाँ हिमालयी तथा मानसून जल प्राप्त करने के कारण सततवाहनी है। प्रदेश में इन पर नहरों का विकास कर सिंचाई की उचित व्यवस्था की गयी है। उ.प्र. में 75063 किमी. लंबी नहरों का विस्तार है। नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र में उ.प्र. का प्रथम स्थान है।

उत्तर प्रदेश की कुछ प्रमुख नहरें:

ऊपरी गंगा नहर का निर्माण कार्य 1840 1854 के मध्य किया गया। इसे हरिद्वार के समीप गंगा के दाहिने किनारे से निकाला गया है। इसके मुख्य नहर की लंबाई 340 किमी. है। वर्ष 2006 से इसका आधुनिकीकरण किया गया। इस नहर से सहारनपुर, मेरठ, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, अलीगढ़, मथुरा, मैनपुरी, इटावा कानपुर, फर्रुखाबाद की लगभग 7 लाख हे भूमि की सिंचाई की जाती है। 

मध्य गंगा नहर परियोजना के अंतर्गत बिजनौर जनपद के समीप गंगा नदी पर बैराज बनाकर लगभग 115 किमी. लंबी नहर निकाली गई है। इस नहर को ऊपरी गंगा नहर में मिला दिया गया है इस नहर से गाजियाबाद, हाथरस, फिरोजाबाद, मथुरा, अलीगढ़, बुलंदशहर आदि जिलों में सिंचाई की जाती है। निचली गंगा नहर इस नहर का निर्माण 1878 ई. में किया गया। इस नहर को बुलंदशहर के नरोरा नामक स्थान से निकाला गया है। इस नहर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लगभग सभी जिलों में सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध करायी गयी हैं। जिसमें प्रदेश के लगभग 7 लाख हे. भूमि की सिंचाई की जाती है। इस नहर की कुल लंबाई 8,800 किमी. है।

शारदा नहर का निर्माण 1928 ई. में किया गया। इस नहर को शारदा या काली नदी या महाकाली नदी से निकाला गया है जो उत्तर प्रदेश नेपाल सीमा से निकलती है। यह प्रदेश की सबसे लंबी नहर प्रणाली है जिसकी कुल लंबाई 12,368 किमी. है। शारदा नहर से प्रदेश के प्रयागराज, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, रायबरेली, उन्नाव, लखनऊ, बाराबंकी, सीतापुर, हरदोई, लखीमपुर, पीलीभीत, बरेली, शाजहाँपुर जिले लाभान्वित होते हैं।

आगरा नहर को यमुना नदी के दायें किनारे से निकाला गया है। जो आगरा के ओखला से निकलती है इसका निर्माण 1874 ई. में किया गया। इस नहर की कुल लंबाई 1600 किमी. है इस नहर से प्रदेश के आगरा, मथुरा जिलों में सिंचाई सुविधाएं पहुँचायी गयी हैं।

पूर्वी यमुना नहर यह प्रदेश की सबसे प्राचीन नहर है इसकी कुल लंबाई 1440 किमी. है यह प्रदेश के सहारनपुर जिले से यमुना नदी के बायें किनारे से निकाली गयी है। इस नहर से प्रदेश के सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, गाजियाबाद, मेरठ आदि हापुड़, जिलों में सिंचाई की जाती है।
 
कुँओं द्वारा सिंचाई का सबसे पारंपरिक एवं प्राचीन स्रोत रहा है। प्रदेश के पठारी तथा पर्वतीय क्षेत्रों को छोड़कर राज्य के लगभग सभी भागों में कुँओं द्वारा सिंचाई की जाती है। गंगा के मैदानी भाग तथा गंढक नदी के मध्यवर्ती क्षेत्रों में कुँए का सर्वाधिक प्रचलन है क्योंकि इन क्षेत्रों में उच्च भूमिगत जलस्तर तथा मुलायम शैलें हैं। कुँओं द्वारा सिंचाई के लिए रहट, ढैकली, बलदेव बाल्टी, चरसा, चैनपम्म, हैंडपम्प, मायादास लिफ्ट आदि विधियों का प्रयोग किया जाता है। इससे प्रदेश के गोण्डा, बस्ती, बहराइच, फैजाबाद, सुल्तानपुर, बलिया, मउ आदि जिलों में सिंचाई की जाती है।

तालाब द्वारा सिंचाई, सिंचाई का एक सतत् तथा वहनीय स्रोत है इसके द्वारा प्रायः उन क्षेत्रों में सिंचाई की जाती है जहाँ की भूमि पठारी है इसके अंतर्गत बेड़ी, ढैकची आदि विधियों का प्रयोग किया जाता है इससे प्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र के जिलों में सिंचाई की जाती झील द्वारा सिंचाई का प्रदेश में पर्याप्त प्रचलन नहीं है इसका कारण प्रदेश में झीलों का अभाव पाया जाना है। प्रदेश की कुछ प्रमुख झीलें बखीरा, शुक्रताल फूल्हर, गोविन्द सागर आदि हैं।

(मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न)
प्रश्न 1. उत्तर प्रदेश में सिंचाई के प्रमुख साधनों का उल्लेख करें।
प्रश्न 2. उत्तर प्रदेश के क्षेत्रवार सिंचाई साधनों का विवरण दें।

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