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यूपी के लोक नृत्य - भाग 1

लोक नृत्य पारंपरिक नृत्यों को संदर्भित करता है जो आमतौर पर एक विशेष संस्कृति, क्षेत्र या जातीय समूह से जुड़े होते हैं। ये नृत्य पीढ़ियों से चले आ रहे हैं और अक्सर उस समुदाय के इतिहास, रीति-रिवाजों और मूल्यों को दर्शाते हैं जिससे वे उत्पन्न हुए हैं। लोक नृत्य विभिन्न कारणों से किए जाते हैं, जिनमें पारिवारिक समारोह, सामाजिक समारोह, धार्मिक समारोह जैसे कई सुखद पल शामिल होते हैं। लोक नृत्यों की विशेषताएं सांस्कृतिक और भौगोलिक आधार पर अलग-अलग हो सकती हैं। लोक नृत्यों के साथ संगीत आमतौर पर पारंपरिक होता है और पारंपरिक वाद्ययंत्रों पर बजाया जाता है, जैसे- ड्रम, बांसुरी, तार वाले वाद्य यंत्र या अकॉर्डियन। यूपी के बृज क्षेत्र के लोक नृत्यों की बात करें तो इसमें कई प्रसिद्द नृत्य हैं। 

चरकुला नृत्य
चरकुला नृत्य को घड़ा नृत्य भी कहते हैं क्योंकि इस नृत्य में सिर के ऊपर एक रख का पहिया या चक्र रख कर उस के ऊपर कई सारे घड़े रखे जाते हैं और फिर नृत्य किया जाता है। यह नृत्य होली की दूज के अवसर पर किया है क्योंकि ऐसा माना जाता है की इसी दिन राधारानी का जन्म हुआ था और इसी अवसर पर इस नृत्य की उत्पत्ति हुई थी। इस नृत्य में सिर के ऊपर रखे घड़ों में 108 जलते हुए दिए रखे जाते हैं। यह नृत्य वाकई में इतना कठोर होता है की कभी-कभी सिर पर रखे घड़ों का वजन 50 किलो से भी ज्यादा पहुंच जाता है।

मयूर नृत्य
मयूर नृत्य में मोर के पंखों से बना एक विशेष प्रकार का पोषक पहना जाता है और इस नृत्य की भी थीम राधा कृष्ण के प्रेम प्रसंग की ही होती है। 

झूला नृत्य
बृज क्षेत्र के अन्य प्रमुख नृत्यों में झूला नृत्य का भी नाम आता है । इस नृत्य को सावन के महीनों में किया जाता है। इस नृत्य में बालक और बालिकाएं दोनो भाग लेती हैं और इस नृत्य को मंदिरों में झूले डालकर भी किया जाता है।

रासलीला
बृज क्षेत्रों के अन्य नृत्यों में रासलीला में किया जाने वाला नृत्य और होली से पूर्व किया जाने वाला लट्ठमार होली का नृत्य भी शामिल है। लट्ठमार होली के नृत्य बृज क्षेत्र के बरसाना, वृंदावन आदि क्षेत्रों की खास पहचान बन चुका है।

 

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