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Encounter की वास्तविकता और उससे जुड़े मिथकों को और बेहतर समझने के लिए हमने बात की STF और ATS के संस्थापक सदस्य, रिटायर्ड IPS अधिकारी राजेश पांडेय से। उन्होंने अपने करियर में कई बड़े ऑपरेशन संभाले और 'वर्चस्व' और 'ऑपरेशन बाजुका' जैसी चर्चित किताबें भी लिखी हैं। इस इंटरव्यू में जानिए एनकाउंटर की हकीकत, उसकी ज़रूरत, और इससे जुड़े कानूनी पहलुओं पर उनका क्या कहना है। आइए जानते हैं एनकाउंटर पर एडवोकेट मयूर नांरग की क्या राय है?

फर्जी एनकाउंटर: कानूनी प्रक्रिया या मानवाधिकार का उल्लंघन?

एनकाउंटर का नाम सुनते ही कई बार मन में सवाल उठता है कि यह कानूनी प्रक्रिया के तहत है या मानवाधिकारों का उल्लंघन। खासकर, उत्तर प्रदेश सहित देश के कई हिस्सों में अक्सर एनकाउंटर की घटनाएं सामने आती हैं, जिनमें कई बार यह दावा किया जाता है कि ये फर्जी हैं। आखिरकार, "फर्जी एनकाउंटर" क्या होता है? क्या इसका भारतीय संविधान या किसी कानून में उल्लेख है?

क्या है एनकाउंटर?

भारतीय संविधान में एनकाउंटर का कोई सीधा उल्लेख नहीं है, लेकिन यह तब इस्तेमाल किया जाता है जब पुलिस और अपराधियों के बीच मुठभेड़ में अपराधी मारे जाते हैं। ज्यादातर एनकाउंटर इस दावे के साथ होते हैं कि पुलिस किसी अपराधी को गिरफ्तार करने गई थी, लेकिन आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी।

भारतीय दंड संहिता-

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 96 से 106 और CRPC (अब भारतीय नागरिक संहिता) की धारा 34 से 44 के तहत पुलिस को प्राइवेट डिफेंस (स्वयं की रक्षा) का अधिकार मिला हुआ है। पुलिस इन धाराओं के तहत कार्रवाई करते हुए अपने ऊपर हुए हमले का जवाब दे सकती है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि पुलिस के पास किसी भी स्थिति में हत्या करने का अधिकार है।

फर्जी एनकाउंटर क्या है?

फर्जी एनकाउंटर वह होता है जब पुलिस किसी व्यक्ति को गैरकानूनी ढंग से मार देती है और इसे आत्मरक्षा का नाम दे देती है। यह घटना तब होती है जब अपराधी पुलिस की गिरफ्त से भागने की कोशिश करता है या जब पुलिस पर हमला होता है। हालाँकि, कई बार ये घटनाएं संदेहास्पद होती हैं और इन्हें 'फर्जी' घोषित किया जाता है।

2014 में सुप्रीम कोर्ट ने पीयूसीएल वर्सेस स्टेट ऑफ महाराष्ट्र मामले में एनकाउंटर की घटनाओं पर गाइडलाइंस जारी की थीं। इसमें यह कहा गया था कि एनकाउंटर की हर घटना की जांच होनी चाहिए और जरूरी है कि:

  1. घटना की एफआईआर दर्ज हो।
  2. मुठभेड़ में इस्तेमाल किए गए हथियारों को जब्त किया जाए।
  3. घटना की स्वतंत्र जांच हो।
  4. पोस्टमॉर्टम की वीडियोग्राफी हो।
  5. जांच वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों या स्वतंत्र एजेंसियों (CID या CBI) द्वारा की जाए।

फर्जी एनकाउंटर के उदाहरण-

हाल ही में 5 सितंबर को सुल्तानपुर में मंगेश यादव नामक एक युवक का एनकाउंटर हुआ, जिसे लेकर राजनीतिक पार्टियों और मानवाधिकार संगठनों ने सवाल खड़े किए। कई लोगों ने इसे फर्जी एनकाउंटर करार दिया। ऐसे मामलों में पुलिसकर्मियों पर जांच के दौरान निलंबन और कभी-कभी नौकरी से बर्खास्तगी की भी कार्रवाई होती है। अगर जांच में एनकाउंटर फर्जी पाया जाता है, तो पुलिसकर्मियों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाती है।

फर्जी एनकाउंटर: कानूनी स्थिति-

सुप्रीम कोर्ट और अन्य न्यायालयों ने कई बार अपने फैसलों में स्पष्ट किया है कि फर्जी एनकाउंटर एक जघन्य अपराध है। उदाहरण के तौर पर, ओम प्रकाश वर्सेस स्टेट ऑफ झारखंड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि फर्जी एनकाउंटर 'कोल्ड ब्लडेड मर्डर' होते हैं और जो पुलिसकर्मी इसमें शामिल होते हैं, उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

एनकाउंटर का मानवाधिकार पहलू-

फर्जी एनकाउंटर के मामले में पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े होते हैं। मानवाधिकार आयोग भी इस पर नजर रखता है और कई बार कोर्ट ने पुलिसकर्मियों पर सख्त कार्रवाई के आदेश दिए हैं। एनकाउंटर के दौरान हुई हत्या का पोस्टमॉर्टम विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। पोस्टमॉर्टम से यह पता लगाया जा सकता है कि गोली किस एंगल से चली और क्या यह वास्तव में आत्मरक्षा का मामला था या नहीं।

एनकाउंटर का राजनीतिक प्रभाव-

देश के कई हिस्सों में एनकाउंटर की घटनाएं राजनीतिक विवाद का कारण भी बनती हैं। सुल्तानपुर एनकाउंटर के बाद कई राजनीतिक पार्टियों ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया और आरोप लगाया कि यह एक फर्जी एनकाउंटर था, जिसमें निर्दोष व्यक्ति की जान गई।

एनकाउंटर का सही उद्देश्य-

फर्जी एनकाउंटर एक गंभीर समस्या है, जिसमें न्यायिक प्रणाली और मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है। भारत का संविधान कानून के शासन के सिद्धांत पर आधारित है, जिसमें हर नागरिक को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है। एनकाउंटर का इस्तेमाल आत्मरक्षा के लिए होना चाहिए, न कि किसी निर्दोष व्यक्ति की जान लेने के लिए। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस और मानवाधिकार आयोग की अनुशंसाओं के पालन से ही एनकाउंटर के मामलों में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है।

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