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इन दोनों शख्स ने रखी थी AI की नीव! कुछ ऐसा है विज्ञान और कंप्यूटर साइंस का संगम...

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इस साल के Nobel Prize में विज्ञान और तकनीक के संगम ने एक नया इतिहास रचा है। 2024 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार उन दो वैज्ञानिकों को दिया गया है, जिनकी खोजों ने आज की आधुनिक तकनीकी दुनिया की नींव रखी है – जॉन जे. हॉपफील्ड और जेफ्री ई. हिंटन। इन दोनों वैज्ञानिकों ने Artificial Intelligence (AI) के क्षेत्र में ऐसा योगदान दिया है, जिसकी वजह से मशीनें आज इंसानों जैसी सोचने और सीखने की क्षमता रखती हैं।

Artificial Intelligence: पुरानी तकनीक, नई ऊंचाइयां-

AI एक ऐसी तकनीक है जो हमें आज की रोजमर्रा की जिंदगी में हर जगह दिखाई देती है – चाहे वो फोन में तस्वीरें एडिट करना हो, बड़ी मात्रा में डेटा को समझना हो, या फिर सेल्फ-ड्राइविंग कारों को निर्देशित करना। लेकिन AI के पीछे की तकनीक इतनी नई नहीं है जितनी हमें दिखाई देती है। दशकों पहले, इन दो वैज्ञानिकों ने ऐसी खोजें कीं, जिनसे AI की नींव रखी गई।

जॉन जे. हॉपफील्ड: न्यूरोसाइंस से प्रेरित क्रांतिकारी सोच-

जॉन हॉपफील्ड ने 1980 के दशक में एक खास कंप्यूटर नेटवर्क विकसित किया जिसे हम "Artificial Neural Network" के नाम से जानते हैं। यह नेटवर्क इंसान के दिमाग के नर्व सेल्स की तरह काम करता है, जिससे कंप्यूटर सिर्फ कैलकुलेशन तक सीमित नहीं रहा बल्कि उसमें सोचने और सीखने की क्षमता विकसित हुई। उदाहरण के लिए, अगर आप कंप्यूटर को एक अधूरी तस्वीर दिखाते हैं, तो वह उस तस्वीर के बाकी हिस्सों की पहचान कर सकता है और उसे फिर से पूरा कर देता है। यही तकनीक आज के फेस रिकॉग्निशन और इमेज एडिटिंग टूल्स में इस्तेमाल होती है।

जेफ्री हिंटन: डीप लर्निंग का विकास-

जेफ्री ई. हिंटन ने हॉपफील्ड के काम को आगे बढ़ाते हुए, AI को एक नई दिशा दी। हिंटन ने "Backpropagation" नामक तकनीक विकसित की, जिससे कंप्यूटर अपनी गलतियों से सीख सकता है और खुद को बेहतर बना सकता है। इस तकनीक के आधार पर, आज की मशीनें "Deep Learning" का उपयोग कर बड़े-बड़े डेटा सेट्स से सीखने में सक्षम हो गई हैं। Deep Learning का उपयोग आज हर जगह हो रहा है, चाहे वह वॉयस असिस्टेंट हो, ट्रांसलेशन ऐप्स हों, या फिर सेल्फ-ड्राइविंग कारें।

AlexNet: AI की दुनिया में क्रांति का नाम-

साल 2012 में, Geoffrey Hinton और उनके छात्रों ने एक इमेज रिकॉग्निशन एल्गोरिद्म विकसित किया जिसका नाम AlexNet था। इस एल्गोरिद्म ने ImageNet प्रतियोगिता में बेहतरीन प्रदर्शन किया और यह साबित कर दिया कि AI की क्षमताएं अनंत हैं। AlexNet ने दुनियाभर के वैज्ञानिकों और टेक्नोलॉजी जगत को दिखाया कि AI का भविष्य कितना उज्ज्वल है।

AI की यात्रा: विज्ञान और कंप्यूटर साइंस का संगम-

जॉन हॉपफील्ड का काम जहां न्यूरोसाइंस और भौतिक विज्ञान से प्रेरित था, वहीं जेफ्री हिंटन का योगदान कंप्यूटर साइंस में AI को एक नई ऊंचाई तक ले गया। इन दोनों वैज्ञानिकों की खोजों ने AI को एक नई दिशा दी, जिससे मशीनें बड़ी मात्रा में डेटा को समझने और जटिल समस्याओं का समाधान करने में सक्षम हो गईं। AI के क्षेत्र में इन दोनों के योगदान के लिए ही उन्हें इस साल भौतिकी का Nobel Prize दिया गया। उनकी रिसर्च ने आज की AI तकनीकों की बुनियाद रखी, जिनका उपयोग हम रोजमर्रा के जीवन में कर रहे हैं।

विज्ञान और तकनीक का तालमेल: मानव जीवन में बदलाव-

2024 में Nobel Prize से सम्मानित हॉपफील्ड और हिंटन की खोजें विज्ञान और तकनीक के संगम का प्रतीक हैं। ये दिखाता है कि कैसे तकनीक और विज्ञान के साथ इंसानी जीवन को बेहतर बनाने की संभावनाएं अनंत हैं। AI की यह यात्रा यहीं खत्म नहीं होगी। आने वाले समय में, हम और भी चमत्कारी आविष्कारों का साक्षी बनेंगे, जो मानव सभ्यता को एक नई दिशा देंगे।

भविष्य की ओर एक कदम-

इस साल का Nobel Prize यह साबित करता है कि विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में निरंतर विकास और खोजें मानव जीवन के हर क्षेत्र को छू रही हैं। Artificial Intelligence का विकास अभी केवल शुरुआत है और आने वाले समय में हम AI के और भी जादुई परिणाम देखेंगे।

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