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केरल एक बार फिर से एक रहस्यमयी और खतरनाक बीमारी की चपेट में आ गया है। हाल ही में राज्य में नेग्लेरिया फाउलेरी यानी दिमाग खाने वाले अमीबा के तीन मामले सामने आए हैं। इनमें से नौ साल की एक बच्ची की मौत हो गई है। डॉक्टरों को आशंका है कि बच्ची को यह संक्रमण कुएं का पानी पीने से हुआ, क्योंकि जांच में पानी में अमीबा की मौजूदगी पाई गई।
क्या है यह खतरनाक अमीबा?
नेग्लेरिया फाउलेरी एक बेहद सूक्ष्म एककोशिकीय जीव है, जो आमतौर पर गर्म और मीठे पानी में पाया जाता है। यह अमीबा इंसान के शरीर में नाक के जरिए प्रवेश करता है और सीधे दिमाग तक पहुंच जाता है। वहां जाकर यह मस्तिष्क की कोशिकाओं को नष्ट कर देता है, जिससे सूजन और गंभीर संक्रमण हो जाता है। इसी बीमारी को प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएंसेफलाइटिस (PAM) कहा जाता है।
लक्षण जिन्हें पहचानना मुश्किल
बीमारी की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि शुरुआती लक्षण आम बीमारियों जैसे लगते हैं। सिरदर्द, बुखार, मितली और उल्टी से शुरुआत होती है। लेकिन धीरे-धीरे मरीज की गर्दन अकड़ने लगती है, दौरे पड़ सकते हैं और मतिभ्रम की स्थिति भी आ सकती है। अगर समय रहते इलाज न मिले, तो यह कुछ ही दिनों में जानलेवा हो सकती है।
केरल और दुनिया की स्थिति
भारत में इस बीमारी का पहला मामला 1971 में सामने आया था, जबकि केरल में यह 2016 में रिपोर्ट किया गया। पिछले साल ही राज्य में 36 मामले मिले थे और इनमें से 9 लोगों की मौत हो गई थी। हालांकि, ताजा मामलों में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि कोझिकोड जिले के अलग-अलग गांवों से संक्रमण के केस आए हैं। यानी इनका कोई सीधा कनेक्शन नहीं दिख रहा।
97% मौत की दर, लेकिन केरल में सिर्फ 25%
वैश्विक स्तर पर इस बीमारी से मौत की दर लगभग 97% है। यानी 100 मरीजों में से सिर्फ 3 ही बच पाते हैं। लेकिन राहत की बात यह है कि केरल में यह दर 25% तक सीमित है। हाल ही में कोझिकोड का 14 साल का एक बच्चा इस बीमारी से बचा है। वह न सिर्फ भारत का पहला मरीज है जो ठीक हुआ, बल्कि दुनिया में भी अब तक सिर्फ 11 लोग ही इस जानलेवा संक्रमण से बच पाए हैं।
इलाज की अब भी तलाश जारी
अब तक इसका कोई पक्का इलाज खोजा नहीं जा सका है। फिलहाल डॉक्टर इसका इलाज कुछ खास दवाओं जैसे एम्फोटेरिसिन-बी, एजिथ्रोमाइसिन, फ्लुकोनाजोल, रिफैम्पिन, मिल्टेफोसिन और डेक्सामेथासोन से करने की कोशिश करते हैं। हालांकि, ये दवाएं हमेशा प्रभावी साबित नहीं होतीं। यही वजह है कि बीमारी का जल्दी पता लगना ही मरीज की जान बचाने का सबसे बड़ा उपाय है।
कैसे फैलता है संक्रमण?
यह अमीबा इंसान से इंसान में नहीं फैलता। यह सिर्फ तब शरीर में प्रवेश करता है, जब कोई दूषित पानी से तैराकी या स्नान करता है और पानी नाक के जरिए दिमाग तक पहुंच जाता है। इसलिए डॉक्टर सलाह दे रहे हैं कि लोग कुएं या संदिग्ध स्रोतों के पानी से बचें और व्यक्तिगत स्वच्छता पर ज्यादा ध्यान दें।
केरल में एक बार फिर से दिमाग खाने वाले अमीबा के मामले सामने आने से स्वास्थ्य विभाग सतर्क हो गया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि समय रहते जागरूकता और सतर्कता ही इसका सबसे बड़ा बचाव है। क्योंकि अभी तक इस बीमारी का कोई पुख्ता इलाज मौजूद नहीं है, और यह कुछ ही दिनों में मरीज की जान ले सकती है।
Baten UP Ki Desk
Published : 20 August, 2025, 12:36 pm
Author Info : Baten UP Ki