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5 लाख किसानों के चंदे से बनाई फिल्म...और फिर आखिरी फिल्म पर हो गया विवाद

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भारतीय सिनेमा के एक युगपुरुष, श्याम बेनेगल, जिन्होंने अपने अनमोल योगदान से सिनेमा की दुनिया में न केवल कला की एक नई परिभाषा दी, बल्कि समाज की वास्तविकताओं को पर्दे पर जीवंत किया, अब हमारे बीच नहीं रहे। 23 दिसंबर को मुंबई के वोकहार्ट अस्पताल में 90 वर्ष की आयु में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी आत्मा का अंतिम संस्कार आज शिवाजी पार्क इलेक्ट्रिक क्रिमेटोरियम में किया गया। श्याम बेनेगल, जिनकी फिल्मों ने भारतीय सिनेमा को नई दिशा दी और आर्ट सिनेमा को सम्मान दिलवाया, अब सिनेमा के इतिहास में अमर हो गए हैं।

भारत की पहली फिल्म जो किसानों की मेहनत और चंदे से बनी

श्याम बेनेगल की "मंथन" (1976) भारतीय सिनेमा की एक अद्वितीय कृति है, जो न केवल कला के क्षेत्र में बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी एक मील का पत्थर मानी जाती है। यह फिल्म श्वेत क्रांति (दुग्ध क्रांति) पर आधारित थी, जिसने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बनाया। बेनेगल ने इस फिल्म के लिए चंदा जुटाने का अनोखा तरीका अपनाया, जो भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक मिसाल बन गया। सह-लेखक डॉक्टर वर्गीज कुरियन ने जब देखा कि कोई प्रोड्यूसर इस फिल्म में निवेश करने को तैयार नहीं है, तो उन्होंने गांव-गांव से मदद मांगी। करीब 5 लाख किसानों ने हर एक ने 2 रुपए का चंदा दिया, जिससे कुल 10 लाख रुपए का फंड इकट्ठा हुआ। इस धनराशि से मंथन को बनाया गया, और यह बनी भारत की पहली फिल्म जिसे किसानों के योगदान से फिल्माया गया। "मंथन" ने 1977 में बेस्ट नेशनल फिल्म का अवॉर्ड जीता और ऑस्कर के लिए भी नॉमिनेट हुई। यह फिल्म न केवल श्वेत क्रांति के महत्व को उजागर करती है, बल्कि यह भारतीय सिनेमा में सामूहिकता और समाज के योगदान की अनूठी मिसाल भी प्रस्तुत करती है।

8 नेशनल अवॉर्ड और कई प्रतिष्ठित सम्मान-

श्याम बेनेगल को भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हें 8 नेशनल अवॉर्ड प्राप्त हैं, और यह रिकॉर्ड आज भी कायम है। इसके अलावा, 1976 में उन्हें पद्मश्री और 1991 में पद्मभूषण जैसे प्रमुख पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 2005 में उन्हें भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड भी मिला।

फोटोग्राफी से सिनेमा तक का सफर-

श्याम बेनेगल का जन्म 14 दिसंबर 1934 को हैदराबाद में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने अर्थशास्त्र में अपनी पढ़ाई की और बाद में फोटोग्राफी में रुचि ली। उनके पिता, श्रीधर बी. बेनेगल, एक फोटोग्राफर थे, और श्याम ने उनके कैमरे से अपनी पहली फिल्म बनाई थी। श्याम बेनेगल के परिवार में उनकी पत्नी नीरा बेनेगल और बेटी पिया बेनेगल हैं।

कलाकारों को पहचानने में माहिर-

श्याम बेनेगल ने कई महान कलाकारों को सिनेमा से परिचित कराया, जिनमें नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, स्मिता पाटिल, शबाना आजमी, और अमरीश पुरी शामिल हैं। उनकी फिल्मों ने भारतीय सिनेमा को नई दिशा दी। श्याम ने 24 फिल्में, 45 डॉक्यूमेंट्री, और 15 एड फिल्में बनाई। उनकी फिल्मों में 'मंथन', 'मंडी', 'आरोहन', 'जुबैदा', और 'नेताजी सुभाष चंद्र बोस: द फॉरगॉटेन हीरो' जैसी फिल्में शामिल हैं।

पैरेलल सिनेमा के जनक-

श्याम बेनेगल को भारतीय 'पैरेलल सिनेमा' का जनक माना जाता है। 1974 में अपनी पहली फिल्म 'अंकुर' के साथ उन्होंने भारतीय सिनेमा में एक नई दिशा दिखाई। उनकी फिल्म 'मंथन' (1976) को लेकर खासतौर से चर्चा होती है, जिसे 5 लाख किसानों ने चंदा देकर फंड किया था। यह भारत की पहली फिल्म थी, जिसे क्राउडफंडिंग के जरिए बनाया गया था।

शाह, और अमरीश पुरी के साथ बेनेगल का कनेक्शन

बेनेगल की फिल्मों ने न केवल महत्वपूर्ण कहानियां प्रस्तुत कीं, बल्कि उन्होंने नए और प्रतिभाशाली कलाकारों को भी मौका दिया। स्मिता पाटिल और नसीरुद्दीन शाह जैसे कलाकारों के करियर की शुरुआत श्याम बेनेगल के साथ हुई। अमरीश पुरी, जो पहले इंश्योरेंस एजेंट थे, बेनेगल के निर्देशन में विलेन बने और हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े खलनायक में से एक बन गए।

मंथन से मुजीब तक का सफर-

'मंथन' और 'अंकुर' जैसी फिल्में जहां भारतीय समाज की सच्चाई को दर्शाती हैं, वहीं उनकी आखिरी फिल्म 'मुजीब – द मेकिंग ऑफ ए नेशन' (2023) बांग्लादेश के नेता मुजीबुर्रहमान के जीवन पर आधारित थी। यह फिल्म दो देशों के संयुक्त प्रयास से बनी और श्याम बेनेगल की कड़ी मेहनत और समर्पण का उदाहरण प्रस्तुत करती है।

दो देशों की साझा यात्रा और विवादों का सामना

श्याम बेनेगल, जिनकी फिल्मों ने भारतीय सिनेमा को न केवल नवजागरण दिया, बल्कि राजनीति, समाज और संस्कृति को पर्दे पर जीवंत किया, की आखिरी फिल्म "मुजीब: द मेकिंग ऑफ ए नेशन" एक ऐतिहासिक परियोजना के रूप में सामने आई। यह फिल्म बांग्लादेश के राष्ट्रीय नायक शेख मुजीबुर्रहमान के जीवन पर आधारित थी, और इसे भारत और बांग्लादेश दोनों देशों की सरकारों ने मिलकर प्रोड्यूस किया।

यह फिल्म सिर्फ इसलिए नहीं याद रखी जाएगी क्योंकि यह बेनेगल की आखिरी कृति थी, बल्कि इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी भी छिपी है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों चाहते थे कि इस महत्वपूर्ण फिल्म का निर्देशन श्याम बेनेगल करें। हालांकि फिल्म को लेकर विवादों की बयार भी चली, लेकिन यह किसी भी अन्य फिल्म से अलग थी क्योंकि यह दो देशों के सहयोग से बनी थी।

कोरोना काल और लॉकडाउन के दौरान बनी इस फिल्म ने न सिर्फ श्याम बेनेगल की अद्वितीय निर्देशन क्षमता को उजागर किया, बल्कि यह भी प्रमाणित किया कि उनकी कला समय और सीमाओं से परे थी।

बेनेगल का अविस्मरणीय योगदान और यादें

श्याम बेनेगल का जीवन भारतीय सिनेमा में एक अविस्मरणीय धरोहर के रूप में रहेगा। उनका योगदान न केवल फिल्मों तक सीमित था, बल्कि उन्होंने भारत की सांस्कृतिक धारा को एक नई दिशा दी। उनका सिनेमा, जो कला और समाज का मेल था, हमेशा भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमिट रहेगा।

सिनेमा के इस महानायक को अंतिम श्रद्धांजलि

श्याम बेनेगल का योगदान न केवल भारतीय सिनेमा के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा। उनके निधन पर फिल्म जगत के कई कलाकारों और हस्तियों ने शोक व्यक्त किया है, और उनके योगदान को याद किया है।

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