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जलवायु परिवर्तन से उपजी एक नई और अप्रत्याशित चुनौती ने वैज्ञानिकों की नींद उड़ा दी है। यह खतरा न तो समुद्र की लहरों से जुड़ा है, न ही हीटवेव से—बल्कि पृथ्वी की गहराई में छिपे उस उबाल से है जो सदियों से बर्फ की चादरों के नीचे दबा पड़ा था: ज्वालामुखी।
ग्लेशियरों के पिघलने से ज्वालामुखी फिर से सक्रिय
चिली की एंडीज पर्वतमाला में किए गए एक ताज़ा अध्ययन में यह चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई है कि पिघलते ग्लेशियर उन निष्क्रिय ज्वालामुखियों को फिर से सक्रिय कर सकते हैं, जिन्हें अब तक शांत और निष्क्रिय माना जा रहा था। अध्ययन के अनुसार, जैसे-जैसे ग्लेशियर पीछे हटते हैं, धरती की सतह पर से भारी दबाव हटता है, जिससे ज्वालामुखी ज्यादा विस्फोटक और अनियंत्रित हो जाते हैं।
ज्वालामुखी जाग रहे हैं – और अब पहले से भी ज्यादा खतरनाक हैं
इस शोध में दक्षिणी चिली के छह ज्वालामुखियों पर बर्फ और चट्टानों का बारीकी से विश्लेषण किया गया, जिनमें मोचो-चोशुएन्को नामक निष्क्रिय ज्वालामुखी भी शामिल था। आर्गन डेटिंग और क्रिस्टल विश्लेषण जैसी उन्नत तकनीकों से यह साबित हुआ कि अतीत में हिमयुग के दौरान ज्वालामुखी बर्फ की मोटी परतों से दबे हुए थे। लेकिन हिमयुग खत्म होते ही, जब ग्लेशियर पिघले और दबाव अचानक हट गया, तो अंदर जमा मैग्मा और गैसें तेजी से बाहर निकलने लगीं—नतीजतन भयंकर विस्फोट हुए। इससे यह आशंका बढ़ गई है कि वर्तमान में ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते पिघलते ग्लेशियर भविष्य में ऐसे और विस्फोटों की भूमिका तैयार कर सकते हैं।
खतरा सिर्फ चिली तक सीमित नहीं
यह चिंता सिर्फ एंडीज की पहाड़ियों तक सीमित नहीं है। वैज्ञानिकों का मानना है कि आइसलैंड, अंटार्कटिका, रूस, अमेरिका और न्यूजीलैंड जैसे बर्फीले भूभागों में भी ऐसा ही खतरा मौजूद है। इन इलाकों में कई ऐसे ज्वालामुखी हैं जो अभी शांत हैं लेकिन जलवायु परिवर्तन से उपजे प्रभावों के चलते आने वाले दशकों में सक्रिय हो सकते हैं।
जलवायु संकट का ‘गुप्त विस्फोट’
इस खोज के बड़े नतीजे हो सकते हैं। जहां एक ओर पिघलते ग्लेशियर समुद्र स्तर को बढ़ा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर वे धरती के भीतर छिपे ‘सुपरवोल्केनो’ को भी सतह पर लाने की भूमिका निभा सकते हैं। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि यह एक ‘गुप्त विस्फोट संकट’ बन सकता है, जिसका प्रभाव वैश्विक पर्यावरण, मानव जीवन और जलवायु संतुलन पर पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, 1991 में फिलीपींस में हुए माउंट पिनाटुबो विस्फोट के बाद वैश्विक तापमान 0.5 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया था। यह दर्शाता है कि ऐसे विस्फोट न केवल स्थानीय, बल्कि वैश्विक जलवायु को भी बदल सकते हैं।
क्या है समाधान?
भूवैज्ञानिकों का सुझाव है कि ज्वालामुखीय क्षेत्रों की निगरानी के लिए अत्याधुनिक तकनीक और पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित की जाए। ऐसे क्षेत्रों में सेंसर और सैटेलाइट डेटा के माध्यम से लगातार निगरानी से भविष्य में आपदा की तीव्रता को कम किया जा सकता है।
जब बर्फ की चादरें फटती हैं, तो धरती की आंतरिक आग जाग उठती है
इस शोध ने एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन सिर्फ ऊपर से दिखने वाली घटनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह धरती की गहराइयों में छिपे विनाश के द्वार भी खोल सकता है। यह वक्त है कि हम इस खतरे को नजरअंदाज करने के बजाय इसके लिए तैयार हों—क्योंकि अगला विस्फोट सिर्फ ज्वालामुखी का नहीं, मानवता की लापरवाही का भी हो सकता है।
Baten UP Ki Desk
Published : 12 July, 2025, 1:14 pm
Author Info : Baten UP Ki