ऑस्कर रेस में 'लापता लेडीज' का नाम कटने के बावजूद, ‘वीर सावरकर’ और ‘कंगुवा’ का सफर जारी क्यों?
भारत की ऑस्कर एंट्री 'लापता लेडीज' को झटका लगा है, क्योंकि यह फिल्म अब ऑस्कर की दौड़ से बाहर हो चुकी है। वहीं, 'वीर सावरकर' और 'कंगुवा' जैसी फिल्मों की किस्मत अभी भी कायम है, जो बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई हैं और आलोचकों की नज़र में विवादास्पद भी मानी जाती हैं। अब तक 232 फिल्में एलिजिबल पाई गई हैं, जिनमें से भारत की 6 फिल्में इस रेस में शुमार हैं। 17 जनवरी को फाइनल नॉमिनेशन लिस्ट आएगी।
ऑस्कर की नॉमिनेशन प्रक्रिया पर उठे सवाल-
लेकिन सवाल ये उठता है कि ऐसी फिल्में, जो खुद बॉक्स ऑफिस पर असफल रही हैं, वो ऑस्कर रेस में क्यों बनी हुई हैं? क्या ऑस्कर की नॉमिनेशन प्रक्रिया केवल कला के मानदंडों पर आधारित है या इसमें राजनीति और विवाद भी बड़ा रोल निभाते हैं? चलिए, इसे समझने की कोशिश करते हैं।
ऑस्कर 2025 के लिए भारत से कौन-सी फिल्में हैं रेस में?
भारत से इस साल ऑस्कर 2025 के लिए कुल 29 फिल्में भेजी गई थीं, जिनमें 12 हिंदी, 6 तमिल और 4 मलयालम फिल्में शामिल थीं। अब अमेरिकन अकादमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज (AMPAS) ने 232 फिल्मों की योग्य लिस्ट जारी की है, जिनमें से 207 फिल्में 'बेस्ट पिक्चर' कैटेगरी में शुमार हैं। इस लिस्ट में भारत की 6 फिल्में अब भी ऑस्कर के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रही हैं, जबकि 'लापता लेडीज' जैसे फिल्में इस दौड़ से बाहर हो चुकी हैं।
कौन-सी फिल्में हैं जो अब भी रेस में हैं:
- कंगुवा (तमिल)
- आदुजीविथम (द गोट लाइफ) (हिंदी)
- स्वातंत्र्य वीर सावरकर (हिंदी)
- पुतुल (बंगाली)
- ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट (मलयालम-हिंदी)
- गर्ल्स विल बी गर्ल्स (हिंदी-अंग्रेजी)
ऑस्कर के इस दिलचस्प सफर में भारत की ये फिल्में अब भी अपनी जगह बनाए हुए हैं।
350 करोड़ की ‘कंगुवा’ और राजनीतिक विवादों से घिरी ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’
पिछले साल भारतीय सिनेमा में कुछ बड़ी फिल्में दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन ऑस्कर की रेस में शामिल होने का सपना कुछ ही फिल्मों का सच हुआ। 350 करोड़ रुपए के बड़े बजट में बनी ‘कंगुवा’ बॉक्स ऑफिस पर लगभग 100 करोड़ रुपए ही कमा पाई। वहीं, रणदीप हुड्डा की स्टारर फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ 22 मार्च 2024 को रिलीज हुई थी, और उसे राजनीतिक विवादों ने घेर लिया था।
ऑस्कर की रेस में असफल, फिर भी सिनेमा की नई ऊँचाइयाँ छूने वाली फिल्में
इन फिल्मों के अलावा ‘हनु-मान’, ‘कल्कि 2898 AD’, ‘एनिमल’, ‘चंदू चैंपियन’, ‘सैम बहादुर’, ‘गुड लक’, ‘घरत गणपति’, ‘मैदान’, ‘जोरम’, ‘कोट्टुकाली’, ‘जामा’, ‘आर्टिकल 370’, और ‘अट्टम’ जैसी फिल्में भी ऑस्कर नॉमिनेशन के लिए भेजी गई थीं। ये फिल्में अपनी क्रिएटिविटी, बेहतरीन कहानी और अच्छी कमाई के बावजूद ऑस्कर की रेस से बाहर हो गईं।
ब्रिटेन की ओर से ऑस्कर के लिए भेजी गई एक भारतीय फिल्म-
लेकिन इस सब के बीच, एक फिल्म जिसने सबका ध्यान खींचा है, वो है ‘संतोष’। ब्रिटिश-भारतीय फिल्म निर्माता संध्या सूरी द्वारा निर्देशित इस फिल्म में भारतीय अभिनेत्रियाँ शाहना गोस्वामी और सुनीता राजवार मुख्य भूमिका में हैं। हालांकि यह फिल्म ब्रिटेन की तरफ से ऑस्कर के लिए भेजी गई है, लेकिन उसकी क्राफ्ट और कंटेंट ने इसे एक नई पहचान दिलाई है।
‘लापता लेडीज’ क्यों ऑस्कर की रेस से बाहर हुई? जानिए, बेस्ट पिक्चर नॉमिनेशन के क्राइटेरिया!
किरण राव द्वारा निर्देशित फिल्म ‘लापता लेडीज’ को इस साल ऑस्कर के इंटरनेशनल फीचर फिल्म श्रेणी में शामिल किया गया था, जो पहले ‘बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म’ के नाम से जानी जाती थी। 18 दिसंबर को AMPAS (Academy of Motion Picture Arts and Sciences) ने ऐलान किया कि इस फिल्म को बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म के 15 नामांकित विकल्पों में जगह नहीं मिली है।
तो सवाल उठता है – क्यों? असल में, इस श्रेणी में फाइनल 5 फिल्मों में जगह बनाने के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा होती है, और लापता लेडीज इस बार इसका हिस्सा नहीं बन पाई।
अब, जब बात बेस्ट पिक्चर नॉमिनेशन की हो, तो इसके लिए खास नियम हैं।
ऑस्कर में बेस्ट पिक्चर नॉमिनेशन के 2024 के नए क्राइटेरिया:
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थिएट्रिकल क्राइटेरिया: फिल्म को अमेरिका के 6 प्रमुख महानगरीय क्षेत्रों में से किसी एक में कम से कम 7 दिन तक थिएटर में दिखाया जाना चाहिए। इन 6 क्षेत्रों में शामिल हैं – लॉस एंजिलिस, न्यूयॉर्क, बे एरिया, शिकागो, डलास-फोर्ट वर्थ और अटलांटा।
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RAISE स्टैंडर्ड: 2024 में, बेस्ट पिक्चर के लिए एक नई नीति लागू की गई है – ‘अकादमी रिप्रजेंटेशन एंड इन्क्लूजन स्टैंडर्ड्स’ (RAISE), जो फिल्म की सामाजिक विविधता पर जोर देती है। इसके तहत फिल्म को 4 महत्वपूर्ण बेंचमार्क्स में से कम से कम 2 पर खरी उतरनी चाहिए, जैसे:
- पिछड़े वर्ग से कोई प्रमुख कलाकार, या फिल्म क्रू में विविधता।
- फिल्म में महिलाओं, LGBTQ+ समुदाय या विकलांगों का प्रतिनिधित्व।
- सामाजिक हाशिए पर खड़े वर्गों को रोजगार या इंटर्नशिप अवसर।
- इंक्लूसिव मार्केटिंग और पब्लिसिटी, जिसमें सभी वर्गों को समान अवसर दिया गया हो।
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थिएटर रिलीज: बेस्ट पिक्चर के लिए, फिल्म को अमेरिका के 50 प्रमुख बाजारों में से 10 बाजारों में कम से कम 10 दिन तक थिएटर में दिखाया जाना चाहिए।
हालांकि, लापता लेडीज को नॉमिनेशन की लिस्ट से बाहर करने के बारे में AMPAS ने आधिकारिक तौर पर कोई वजह नहीं बताई है, लेकिन यह स्पष्ट है कि फिल्म को इन कड़े नियमों से मुकाबला करना पड़ा।
इस बार ऑस्कर रेस में स्थान बनाने के लिए, बेस्ट पिक्चर के उम्मीदवारों को न सिर्फ कला और क्रिएटिविटी में उत्कृष्टता दिखानी होती है, बल्कि वे सामाजिक जागरूकता और विविधता के मानकों पर भी खरा उतरने की कोशिश करते हैं।
क्या 2025 के RAISE नियम सही हैं? फिल्ममेकर्स क्यों उठा रहे हैं सवाल?
2025 में RAISE (Representation and Inclusion Standards) के नियम दूसरी बार लागू किए गए हैं, और इसके बाद से फिल्म इंडस्ट्री में चर्चा और विवाद का दौर जारी है। कई फिल्ममेकर्स का मानना है कि ये नए नियम अत्यधिक सख्त हैं, जिसके कारण कई बेहतरीन इंटरनेशनल फिल्में और डॉक्यूमेंट्रीज ऑस्कर की दौड़ में ही शामिल नहीं हो पातीं। ऑस्कर नॉमिनेशन के नियमों की आलोचना करने वाले दो प्रमुख तर्क सामने आते हैं:
- कम बजट वाली फिल्मों के लिए ये शर्तें क्यों बन गईं मुश्किल?
‘कम बजट वाली फिल्में’ जो स्मॉल-टाउन या छोटे स्तर पर बनती हैं, उन्हें इन नियमों के चलते ऑस्कर की रेस से बाहर होना पड़ता है। ये फिल्में क्रिएटिविटी के मामले में जितनी भी बेहतरीन हों, उन्हें अपनी थिएट्रिकल रिलीज के लिए बड़े नगरीय इलाकों में दिखाना बहुत मुश्किल हो जाता है। कम बजट के चलते, इन फिल्मों को सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व का मानक पूरा करना भी एक चुनौती बन जाता है। परिणामस्वरूप, कई विविधता से भरी और सामाजिक संदेश देने वाली फिल्मों को नॉमिनेशन के योग्य मानकर भी ‘बेस्ट पिक्चर’ की रेस से बाहर कर दिया जाता है।
इसके उदाहरण के तौर पर ‘रिमार्केबल लाइफ ऑफ इबेलिन’, ‘द गर्ल विद द नीडल’, ‘डाहोमी’, ‘फ्रिडा’, ‘आर्मंड’, और ‘यूनिवर्सल लैंग्वेज’ जैसी फिल्मों का नाम लिया जा सकता है। ये फिल्में दर्शकों द्वारा काफी सराही गईं और कई अन्य श्रेणियों में नॉमिनेशन के लिए योग्य थीं, लेकिन बेस्ट फिल्म की श्रेणी में इनका चयन नहीं हुआ।
- फिल्मों के चयन में पक्षपाती दृष्टिकोण?
एक और बड़ा विवाद ‘लापता लेडीज’ के ऑस्कर की रेस से बाहर होने के बाद सामने आया। कंगना रनोट, जो खुद एक मशहूर एक्टर और बीजेपी सांसद हैं, ने AMPAS (Academy of Motion Picture Arts and Sciences) पर पक्षपाती होने का आरोप लगाया। उनका कहना है कि अकादमी अक्सर भारत की फिल्में उन्हीं को चुनती है जो भारत को नकारात्मक रूप में पेश करती हैं या फिर एंटी इंडिया होते हैं। कंगना का यह आरोप, फिल्म इंडस्ट्री में पहले से ही चल रही एक चर्चा को और हवा देता है कि अकादमी विविधता और समावेशन के नाम पर कभी-कभी अत्यधिक राजनीतिक दृष्टिकोण अपनाती है। ऐसे में, कई फिल्म निर्माता और कलाकार इन नियमों और चयन प्रक्रिया की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं।
इन दोनों तर्कों से यह साफ है कि RAISE नियम सिर्फ सामाजिक विविधता और इंक्लूसिविटी के आधार पर फिल्में चुनने की कोशिश करते हैं, लेकिन इनका असर कई कम बजट और स्थानीय फिल्मों पर पड़ता है। इस पर और भी संजीदा चर्चाएं हो रही हैं कि क्या इन नियमों को समझदारी से लागू किया जाना चाहिए या फिर इनसे कुछ संपर्क तोड़ा जाए। इंडस्ट्री के भीतर यह असंतोष साफ तौर पर दिखता है, और शायद अकादमी को इन बदलावों पर पुनर्विचार करना पड़े।
भारत ने 'लापता लेडीज' को ऑफिशियल एंट्री क्यों चुना? क्या था चयन प्रक्रिया?
हर साल भारत की ऑस्कर की इंटरनेशनल फीचर फिल्म कैटेगरी के लिए एक फिल्म को ही ऑफिशियल एंट्री बनाया जाता है, और यह चयन प्रक्रिया एक बहुत ही संगठित और जटिल प्रक्रिया है। फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया (FFI) इस चुनाव को अंजाम देता है। सितंबर के महीने में इस प्रक्रिया की शुरुआत होती है, और पूरे साल भर यह चुने जाने वाली फिल्म के लिए जद्दो-जेहद चलती रहती है।
चयन प्रक्रिया क्या है?
हर साल, FFI भारत के सभी प्रमुख फिल्म एसोसिएशनों को एक इनविटेशन भेजता है। इसके बाद, एसोसिएशन अपने-अपने सदस्य देशों की बेहतरीन फिल्मों को ऑस्कर के लिए अप्लाई करने के लिए FFI के पास भेजती हैं। FFI के पास एक सिलेक्शन कमेटी होती है, जो इन फिल्मों में से एक को चुने और उसे भारत की ऑफिशियल एंट्री के रूप में नामांकित करती है। इस ज्यूरी की 13 सदस्य टीम में सारे सदस्य पुरुष होते हैं, और वर्तमान में इस कमेटी के चेयरमैन असम के मशहूर फिल्म निर्माता जाहनु बरुआ हैं।
लापता लेडीज को क्यों चुना गया?
23 सितंबर को, FFI की ज्यूरी ने ‘लापता लेडीज’ को भारत की ऑफिशियल एंट्री के रूप में चुना। यह फिल्म किरण राव द्वारा निर्देशित है और इसमें भारतीय समाज में महिलाओं के अदृश्य पहलुओं को हास्यपूर्ण और प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया गया है। ज्यूरी के मुताबिक, यह फिल्म महिलाओं की समर्पण और प्रभुत्व को दर्शाते हुए यह दिखाती है कि महिलाएं न सिर्फ घरेलू काम में माहिर हो सकती हैं, बल्कि विद्रोही और उद्यमी भी बन सकती हैं। FFI की ज्यूरी ने अपनी साइटेशन में लिखा, "लापता लेडीज के कैरेक्टर भारतीय महिलाओं के विविध रूपों को मजाकिया अंदाज में प्रदर्शित करते हैं। यह फिल्म समाज में बदलाव लाने वाली कहानी के रूप में जानी जा सकती है।"
सामाजिक मीडिया पर विरोध और आलोचना
हालांकि, इस साइटेशन और चयन प्रक्रिया को लेकर सोशल मीडिया पर विरोध भी हुआ। कुछ लोगों ने कहा कि फिल्म में जो संदेश देने की कोशिश की गई है, वह पूरी तरह से उल्टा पड़ता है। इसके साथ ही, पायल कपाड़िया की ‘ऑल वी इमेजिन एज लाइट’ को भारत की ऑफिशियल एंट्री के रूप में न भेजे जाने पर भी आलोचनाओं का सामना FFI को करना पड़ा। यह फिल्म गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड्स में बेस्ट नॉन-इंग्लिश फिल्म के लिए नॉमिनेट हो चुकी थी और कांस फिल्म फेस्टिवल में भी सम्मानित हुई थी। इसके प्रशंसकों का कहना था कि ‘लापता लेडीज’ की जगह इस फिल्म को भेजा जाना चाहिए था, क्योंकि यह फिल्म वैश्विक स्तर पर बड़ी सराहना प्राप्त कर चुकी थी।
क्या यह प्रक्रिया निष्पक्ष है?
लापता लेडीज को चुने जाने के बाद से FFI की चयन प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। कई लोग मानते हैं कि इसमें लापरवाही हो सकती है और इस प्रक्रिया में सभी प्रकार की फिल्में और निर्देशकों को समान रूप से सम्मान दिया जाना चाहिए। इस पूरे चयन प्रक्रिया पर चल रही बहस ने भारत में ऑस्कर के लिए चुनी जाने वाली फिल्मों की दिशा और चयन पर नए सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्या ऑस्कर अवॉर्ड में कभी पक्षपात किया जाता है?
ऑस्कर अवॉर्ड्स को लेकर हमेशा से यह सवाल उठता रहा है कि क्या इन प्रतिष्ठित अवॉर्ड्स के चयन में किसी तरह का पक्षपात या राजनीतिक दबाव होता है? वास्तव में, ऑस्कर अवॉर्ड्स का निर्णय केवल कलात्मकता और फिल्म की गुणवत्ता पर नहीं, बल्कि कई बार राजनीतिक और कूटनीतिक दबावों के आधार पर भी लिया जाता है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि किसी भी एशियाई देश की फिल्म को ऑस्कर से नवाजने के पीछे कभी न कभी अमेरिका की विदेश नीति और राजनीतिक इच्छाओं का हाथ रहा है।
अमेरिका और राजनीति का प्रभाव-
1952 से लेकर 2023 तक के ऑस्कर अवॉर्ड्स में जब भी किसी एशियाई देश की फिल्म को पुरस्कार मिला, तो इसके पीछे अमेरिकी सरकार की राजनीतिक सोच एक अहम भूमिका निभाती नजर आई। उदाहरण के तौर पर, एशियाई देशों की फिल्मों को सम्मान देना उस समय की अमेरिका की कूटनीति को मजबूती प्रदान करने के लिए किया गया। कभी-कभी तो यह देखा गया है कि अवॉर्ड देने का निर्णय न सिर्फ फिल्म के कलात्मक मूल्य के आधार पर, बल्कि उस फिल्म के राजनीतिक संदेश और अमेरिका के हितों से मेल खाने पर भी निर्भर करता है।
फिल्मों और राजनीति का यह जाल
उदाहरण के लिए, जब ‘द किवि’ जैसी फिल्म को ऑस्कर मिला, तो यह अमेरिकी सरकार द्वारा दक्षिण एशिया में अपनी सशक्त उपस्थिति को बढ़ाने के प्रयासों से जुड़ा हुआ था। इसी तरह, अमेरिका की कूटनीतिक प्राथमिकताएं कई बार इस बात को प्रभावित करती हैं कि किस फिल्म को सम्मानित किया जाए। इस सब से यह साफ है कि ऑस्कर अवॉर्ड्स का चयन कभी-कभी राजनीतिक और कूटनीतिक संदर्भों से प्रभावित हो सकता है, जो इसके पूरी तरह से निष्पक्ष और स्वतंत्र होने पर सवाल उठाता है। ऑस्कर में यह पक्षपाती रवैया, फिलहाल, विवादों का हिस्सा बना हुआ है और कई फिल्मकारों को लगता है कि यह प्रक्रिया जितनी कलात्मक होनी चाहिए, उतनी नहीं हो पाती।
भारत की फिल्में और ऑस्कर की रेस: क्या होगा उनका भविष्य?
ऑस्कर अवॉर्ड्स की प्रक्रिया न केवल सिनेमा प्रेमियों के लिए एक उत्सव है, बल्कि फिल्म उद्योग के लिए भी एक महत्वपूर्ण माइलस्टोन है। AMPAS (Academy of Motion Picture Arts and Sciences) की 18 शाखाओं में लगभग 10,000 सदस्य होते हैं, जो फिल्म निर्माण के विभिन्न पहलुओं से जुड़े होते हैं। इन सभी मेंबर्स का वोट एक बड़े प्रभावी और निर्णायक हिस्से का रूप लेता है, खासकर बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म जैसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड के लिए।
कैसे काम करता है वोटिंग सिस्टम?
ऑस्कर की फिल्म नॉमिनेशन प्रक्रिया काफी जटिल है। हर कैटेगरी के लिए वही मेंबर वोटिंग करते हैं जो उस विशेष क्षेत्र से जुड़े होते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई सदस्य फिल्म डायरेक्टर है, तो वह सिर्फ डायरेक्टिंग की कैटेगरी के अवॉर्ड्स के लिए वोट करेगा।
भारत की फिल्में और उनकी स्थिति-
भारत की 6 फिल्मों में से कुछ इस समय बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म की रेस में शामिल हैं। इस साल के ऑस्कर नॉमिनेशन के लिए 8 जनवरी से 12 जनवरी तक वोटिंग प्रक्रिया चली। इसमें 232 फिल्मों के बीच भारत की 6 फिल्में भी शामिल थीं। अब तक की वोटिंग के आधार पर, फिल्में फाइनल नॉमिनेशन के लिए चुनी जाएंगी
वोटिंग के 3 स्टेप्स:
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प्रारंभिक वोटिंग (Preliminary Voting):
इस चरण में अकादमी के सदस्य फिल्मों को देखते हैं और सीक्रेट बैलट के जरिए 15 फिल्मों को अपनी पसंद के क्रम में वोट करते हैं। इस प्रक्रिया को प्रिलिमिनरी कमेटी कहते हैं।
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शॉर्टलिस्टिंग (Shortlisting):
इसके बाद, मेंबर्स शॉर्टलिस्ट की गई 15 फिल्मों को फिर से देखते हैं। इस चरण में वे 5 फिल्मों को अपनी पसंद के अनुसार वोट करते हैं। यह वोटिंग नॉमिनेटिंग कमेटी द्वारा की जाती है।
- फाइनल वोटिंग (Final Voting):
अब जो 5 फिल्में सबसे ज्यादा वोट प्राप्त करती हैं, उनके लिए फाइनल वोटिंग होती है। ये वोटिंग तभी हो सकती है जब सभी मेंबर्स इन 5 फिल्मों को देख चुके हों। अंत में, सबसे ज्यादा वोट पाने वाली फिल्म को ऑस्कर विजेता घोषित किया जाएगा।
आगे क्या होगा?
भारत की फिल्मों के लिए रेस अभी जारी है। 15 फिल्में शॉर्टलिस्ट होने के बाद, इनकी जद्दोजहद अगले दौर में और तेज हो जाएगी। इन फिल्मों को हर दौर में मेंबर्स का समर्थन और प्रशंसा प्राप्त करने के लिए लगातार अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, और कलात्मक प्रभाव को बढ़ाना होगा।
अब देखना यह होगा कि भारत की फिल्मों में से कौन-सी अपनी सशक्त पहचान बनाती है और ऑस्कर की दुनिया में अपनी जगह पाती है।
By Ankit Verma