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एक शानदार मौके का अधूरा इस्तेमाल! संभाजी महाराज की वीरता को पर्दे पर उतारने में चूक गए लक्ष्मण उतेकर?

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कुछ हफ्ते पहले जब 'छावा' का ट्रेलर देखा तो लगा कि यह विक्की कौशल के करियर की अब तक की सबसे बड़ी हिट साबित होगी। दमदार विजुअल्स, शानदार एक्शन और ऐतिहासिक भव्यता ने उम्मीदें बढ़ा दी थीं। लेकिन जब थिएटर से बाहर निकला, तो एहसास हुआ कि ट्रेलर ने जो वादा किया था, फिल्म उसे निभा नहीं पाई। ऐसा लगा जैसे तीन मिनट की जबरदस्त झलक दिखाकर ढाई घंटे तक एक असंगठित और बेतरतीब कहानी में उलझा दिया गया हो। ट्रेलर के आधार पर यह फिल्म विक्की कौशल के करियर की सबसे बड़ी हिट मानी जा रही थी, लेकिन थिएटर से बाहर निकलते ही यह उम्मीद धरी की धरी रह जाती है। अब सवाल उठता है—क्या 'छावा' ने पीरियड ड्रामा फिल्मों का वो जादू दोहराया जो 'बाजीराव मस्तानी' या 'तान्हाजी' जैसी फिल्मों में दिखा था?

कहानी और पटकथा: शक्ति और कमजोरी का द्वंद्व

संभाजी महाराज और औरंगजेब के नौ सालों तक चले संघर्ष की कहानी ऐतिहासिक रूप से बेहद रोमांचक हो सकती थी, लेकिन फिल्म इसकी गहराई में जाने के बजाय तेज-तर्रार घटनाओं को जल्दी-जल्दी दिखाने की गलती कर बैठती है। जहां फिल्म एक्शन में बेहतर है, वहीं यह इमोशनल कनेक्शन बनाने में विफल रहती है।

निर्देशन: अनुभवहीनता या जल्दबाजी?

लक्ष्मण उतेकर, जो इससे पहले 'लुका छुपी' और 'ज़रा हटके ज़रा बचके' जैसी हल्की-फुल्की फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं, उन्हें शायद पीरियड ड्रामा की जटिलता को संभालने का अनुभव नहीं था।

  • सेट, कॉस्ट्यूम, और वीएफएक्स में शानदार निवेश हुआ है, लेकिन निर्देशन में संयोजन और संतुलन की कमी दिखती है।
  • फिल्म इतनी तेजी से भागती है कि दर्शक को जीत और हार का अनुभव करने का भी मौका नहीं मिलता।
  • फ्लैशबैक का अनियंत्रित इस्तेमाल और बैकग्राउंड म्यूजिक की मिसमैचिंग अनुभव को प्रभावित करते हैं।

अभिनय: विक्की का शानदार प्रदर्शन, लेकिन…

  • विक्की कौशल ने अपनी तरफ से फिल्म को बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन एडिटिंग और पटकथा ने उनकी मेहनत के प्रभाव को कम कर दिया।
  • रश्मिका मंदाना की हिंदी सुधार की कोशिश सराहनीय है, लेकिन उनके किरदार को गहराई नहीं दी गई।
  • आशुतोष राणा, दिव्या दत्ता और विनीत कुमार सिंह जैसे कलाकारों का स्क्रीन टाइम बेहद सीमित है, बावजूद इसके वे अपनी छाप छोड़ते हैं।
  • अक्षय खन्ना की भूमिका बेहद कमजोर लिखी गई, जिससे उनका औरंगजेब किरदार दमदार नहीं दिखता

तकनीकी पक्ष: क्या सही और क्या गलत?

वीएफएक्स और एक्शन सीक्वेंस शानदार हैं, लेकिन अतिशयोक्ति से भरपूर हैं।
बैकग्राउंड म्यूजिक और एडिटिंग फिल्म के इमोशनल कनेक्ट को कमजोर बना देते हैं।
पटकथा में गहराई नहीं, सिर्फ घटनाओं का बेतरतीब चित्रण है।

क्या फिल्म देखनी चाहिए या नहीं?

अगर आप विक्की कौशल के प्रशंसक हैं या पीरियड ड्रामा पसंद करते हैं, तो यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है। लेकिन कसी हुई कहानी और बेहतर निर्देशन की उम्मीद रखना निराशाजनक हो सकता है। फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ की भव्यता तक नहीं पहुंच पाती, लेकिन ‘सम्राट पृथ्वीराज’ जितनी खराब भी नहीं है।

 

By Ankit Verma 

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