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आधार अधिनियम से जुड़ा यह मामला पहुँचा SC, कानूनों को धन विधेयक के तौर पर पारित कराने के खिलाफ याचिकाओं पर होगी सुनवाई

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सुप्रीम कोर्ट उन याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए तैयार हो गया है, जिनमें विधेयकों को ‘मनी बिल’ के रूप में पारित करने की वैधता को चुनौती दी गई है। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायूमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ से याचिकाओं को सूचीबद्ध करने की अपील की है ताकि उन पर सुनवाई हो सके। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि जब वह संविधान पीठ का गठन करेंगे, तब वो इस पर फैसला सुनाएंगे। 

बिल का मामला क्यों पहुँचा कोर्ट?

बिल का मामला कोर्ट पहुँचा क्यों यह भी जान लेते हैं। दरअसल, विपक्ष का आरोप रहा है कि केंद्र सरकार ने अपने पिछले दो कार्यकालों में कई विधेयकों को कथित तौर पर लोकसभा से जानबूझकर धन विधेयकों यानी की money bill के रूप में पास करवाया। ताकि, राज्यसभा उसपर किसी तरह से अड़ंगा न लगा पाए। राज्यसभा में मोदी सरकार के पास अक्सर बहुमत की कमी रही है। कांग्रेस महासचिव और पार्टी के कम्यूनिकेशन इंचार्ज जयराम रमेश ने इसको लेकर एक्स पर एक पोस्ट लिखकर आरोप लगाया है, 'पिछले दस वर्षों में कई विधेयकों को संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत 'धन विधेयक' घोषित करके संसद से पारित करने के लिए बाध्य किया गया है। 2016 का आधार अधिनियम इसका अच्छा उदाहरण है।' मनी बिल होता क्या है और ये सामान्य यानि साधारण बिल से कैसे अलग होता है?

साधारण बिल होता क्या है?

साधारण बिल को कानून बनाने के लिए दो स्तर पर पास होना होता है। ऐसे बिल को लोकसभा या राज्यसभा किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है। मंत्री के अलावा कोई निजी सदस्य यानि प्राइवेट मेंबर भी इसे पेश कर सकता है। उदाहरण के लिए अगर कोई बिल लोकसभा में किसी मंत्री द्वारा पेश किया जाता है, तो उसे कानून बनाने के लिए लोकसभा और राज्यसभा दोनों में बहुमत हासिल करना होगा। संविधान के अनुच्छेद 107 और अनुच्छेद 108 में साधारण विधेयकों को प्रस्तुत करने और पारित करने के संबंध में प्रावधान हैं। 

मनी बिल होता क्या है?

मनी बिल की बात करें तो मनी बिल और साधारण बिल में सबसे बड़ा अंतर यह है कि मनी बिल को राज्यसभा में बहुमत हासिल करने की जरूरत नहीं होती है। इससे लिए संविधान के अनुच्छेद 109 में प्रावधान दिया गया है। अनुच्छेद 109 (2) के मुताबिक, लोक सभा में धन विधेयक पारित किए जाने के बाद इसे राज्यसभा को सिफारिशों के लिए भेजा जाएगा, लेकिन बहुमत हासिल करना इसमें जरूरी नहीं होता है। बिल मिलने की तारीख से 14 दिनों के अंदर राज्यसभा मनी बिल को वापस कर देगी। इसके बाद यह लोकसभा पर निर्भर है कि वो राज्यसभा की सिफारिशों को बिल में जोड़े या उसके बिना ही बिल को अपना ले। लोकसभा में बिल वापस आने पर मनी बिल को दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाएगा। अगर राज्यसभा 14 दिनों के अंदर बिल वापस नहीं करती, तो उस अवधि के खत्म होने के बाद मनी बिल को दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाएगा और इसी वजह से साधारण बिल की तुलना में मनी बिला काफी जल्दी पास हो जाता है। वहीं गर मनी बिल पास नहीं हो पाता है तो इससे सरकार भी गिर सकती है। 

साधारण बिल कौन पेश करता है?

एक साधारण बिल को किसी भी सदन में पेश करने के लिए किसी की सहमति नहीं चाहिए होती। मंत्री या कोई और सदस्य इसे पेश कर सकता है। लेकिन मनी बिल लाने से पहले राष्ट्रपति की अनुमति लेनी होती है। कोई मंत्री पद का सदस्य ही इसे पेश कर सकता है। जब कोई धन विधेयक राष्ट्रपति के सामने पेश किया जाता है, तो वह या तो बिल पर अपनी सहमति देकर उसे कानून बना सकता है या विधेयक पर अपनी सहमति रोक सकता है। लेकिन राष्ट्रपति के पास विधेयक को फिर से विचार करने के लिए सदन को वापस भेजने का विकल्प नहीं होता। 

मनी बिल में कौन से विधेयक लाये जाते हैं-

मनी बिल में किन-किन चीजों से संबंधित विधेयक लाए जा सकते हैं, इसका जिक्र संविधान के अनुच्छेद 110 में किया गया है। एक विधेयक को मनी बिल माना जाएगा यदि वो किसी तरह के टैक्स को हटाने, लगाने या बदलने से जुड़ा हो। इसके अलावा, कंसोलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया से संबंधित मुद्दों पर भी मनी बिल लाया जा सकता है। बता दें कि विधेयक को केवल इस कारण से मनी बिल नहीं माना जाएगा कि इसमें जुर्माना या कोई आर्थिक दंड लगाने या लाइसेंस के लिए फीस की मांग या भुगतान का प्रावधान है। लोकल अथॉरिटी द्वारा टैक्स लगाने, समाप्त करने, माफ करने या परिवर्तन करने के मामले मनी बिल के तौर पर नहीं पेश किए जा सकते हैं। यदि इस बात पर विवाद होता है कि कोई विधेयक मनी बिल है या नहीं, तो उस पर लोकसभा के स्पीकर का फैसला अंतिम होता है। 

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