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क्या बदलने वाली है मिल्कीपुर सीट की सियासत? सियासी संघर्ष में आया नया मोड़!

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आज दिल्ली में चुनावी गहमागहमी के बीच, अयोध्या जिले की मिल्कीपुर सीट पर भी सबकी नजरें जमी रहीं। इस बार के उपचुनाव में मतदान के आंकड़े चौंकाने वाले हैं, जो आगामी राजनीति के रुख को प्रभावित कर सकते हैं। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, शाम पांच बजे तक 65% मतदान हो चुका है, जो 2022 के मुकाबले एक नया रिकॉर्ड है। यही नहीं, इस बार की राजनीतिक लड़ाई भी पहले से कहीं ज्यादा दिलचस्प नजर आ रही है।

मिल्कीपुर की सियासत में भूचाल

2022 में समाजवादी पार्टी (सपा) के लिए एकमात्र जीत साबित होने वाली मिल्कीपुर सीट इस बार उपचुनाव में और भी महत्वपूर्ण हो गई है। खासकर तब, जब लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अयोध्या जैसी महत्वपूर्ण सीट पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद यह सीट खाली हुई थी, और अब एक बार फिर यह उपचुनाव प्रदेश की राजनीति के लिए अहम मोड़ बन सकता है।

क्यों खास है यह चुनाव?

मिल्कीपुर के लोग इस उपचुनाव को सिर्फ एक विधायक के चयन के तौर पर नहीं देख रहे हैं। उनके लिए यह चुनाव उनके भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण दिशा तय कर सकता है, खासकर जब उत्तर प्रदेश में 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसलिए, यहां के मतदाताओं में भारी उत्साह देखने को मिल रहा है।

सियासी गणित: कौन किसे पछाड़ेगा?

मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में कुल 3 लाख 70 हजार मतदाता हैं और इस बार यहां कुल 10 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। समाजवादी पार्टी ने अजित प्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि भारतीय जनता पार्टी ने चंद्रभान पासवान को मैदान में उतारा है। हालांकि, बीएसपी ने इस चुनाव में अपनी भूमिका से हाथ खींच लिया है, लेकिन यहां के दलित वोटर्स का झुकाव इस चुनाव में निर्णायक साबित हो सकता है।

दलित वोटर्स का असर: कौन होगा विजेता?

मिल्कीपुर सीट एक आरक्षित सीट है, जहां दलित मतदाता अधिक संख्या में हैं। बीएसपी भले इस बार चुनावी मैदान में नहीं है, लेकिन उसके परंपरागत वोटर्स का झुकाव जिस पार्टी की तरफ होगा, उसका जीतना लगभग तय हो सकता है। यही वजह है कि इस बार का चुनाव सिर्फ मिल्कीपुर की सियासत को ही नहीं, बल्कि यूपी की आगामी राजनीति को भी प्रभावित कर सकता है।

उम्मीदवारों की ताकत: बीजेपी और सपा की जोर-आजमाइश

बीजेपी ने इस उपचुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, और मंत्रियों की एक पूरी टीम उतारी है। वहीं सपा भी अपनी ताकत से पीछे नहीं है, और दोनों दलों के बीच यह मुकाबला कई मायनों में कड़ा हो सकता है। अब देखना यह होगा कि इस मुकाबले में बाजी किसके हाथ लगती है, और मिल्कीपुर की सियासत में आने वाले वक्त में क्या नया मोड़ आता है।

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