कान पर बम लगाकर चल रहे हैं युवा! ट्रेन से कटकर तो कहीं कार से कुचलकर जा रही जान...
आजकल ईयरफोन लगाना जैसे फैशन का एक हिस्सा बन गया है – मानो हर हाथ में स्मार्टफोन और हर कान में संगीत का संसार हो! चाहे किसी के सिर पर हेलमेट हो या कार का स्टीयरिंग थामे हो, ईयरफोन हर जगह अपना सिक्का जमाए हुए हैं। पर इस ट्रेंड के साथ एक और सच्चाई भी छुपी हुई है, जो हम अक्सर नज़रअंदाज कर देते हैं। वो सच्चाई है लगातार हो रहीं दिल दहला देने वाली घटनाएं। बीते कल लखनऊ में हुए दो हादसे ये जाहिर करते हैं कि हमारी जरा सी लापरवाही जान का कितना बड़ा खतरा बन सकती है। यहां एक युवक की ट्रेन से कटकर मौत तो दूसरे की नेकबैंड फटने से जान चली गई।
ईयरफोन के इस्तेमाल से सिर्फ शारीरिक और मानसिक खतरा ही नहीं है बल्कि जान का भी खतरा है। सड़क पर चलते समय कैसे एक छोटी सी लापरवाही जान का खतरा बन जाती है और पता भी नहीं चलता...
1-लखनऊ में ट्रेन ने युवक को रौंदा
4 फरवरी के लखनऊ के मड़ियांव इलाके में ट्रेन की चपेट में आने से युवक की मौत हो गई। युवक अपने घर से खाना खाकर निकला था। कान में ईयर फोन लगाकर पटरी पार कर रहा था। तभी ट्रेन आ गई, जिसकी टक्कर लगने से गंभीर घायल हो गया। वहां मौजूद लोगों ने इलाज के लिए ट्रॉमा सेंटर पहुंचाया, जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।
2-कॉल करते समय नेक बैंड में ब्लास्ट
लखनउ के इंदिरानगर सेक्टर-17 में 4 फरवरी को संदिग्ध हालात में नेकबैंड फटने से 27 साल के एक युवक आशीष की मौत हो गई। पुलिस शव को पीएम के लिए भेजकर घटना की जांच कर रही है। परिजनों के मुताबिक दिन में करीब 11:30 बजे आशीष छत पर नेक बैंड के जरिए किसी के साथ कॉल पर था। इसी दौरान छत पर कुछ गिरने की आवाज आई। मां ऊपर पहुंचीं तो आशीष छत पर पड़ा था। उसका सीना, पेट और दाहिने पैर की खाल उधड़ गई थी।
अब बात करते हैं ईयरफोन के इस्तेमाल से सुनने की क्षमता पर कैसे और कितना गहरा असर पड़ सकता है।
ईयरफोन से सुनने की क्षमता पर असर-
ईयरफोन का बढ़ता इस्तेमाल हमारी सुनने की क्षमता को धीरे-धीरे नष्ट कर सकता है। 50 डेसिबल वॉल्यूम तक सुरक्षित रूप से सुना जा सकता है, लेकिन इससे अधिक वॉल्यूम हमारे कानों के लिए खतरनाक हो सकता है। अगर कोई व्यक्ति हर रोज़ 2 घंटे से ज्यादा ईयरफोन का इस्तेमाल करता है, तो उसकी सुनने की क्षमता में कमी आ सकती है। यह समस्या बच्चों के लिए और भी गंभीर है, क्योंकि उनकी शरीर की विकास प्रक्रिया में ऐसा नुकसान स्थायी हो सकता है। अगर सुनने की क्षमता स्थायी रूप से चली जाए, तो इसे वापस ठीक नहीं किया जा सकता। इसलिए जरूरी है कि हम ईयरफोन का इस्तेमाल समझदारी से करें और खासकर बच्चों को इससे दूर रखें।
ईयरफोन से होने वाली संभावित बीमारियां
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि हेडफोन और ईयरफोन न केवल शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं, बल्कि यह बुरी लत भी बन सकते हैं। इन उपकरणों से आने वाले लाउड म्यूजिक का असर कानों पर स्थायी रूप से पड़ सकता है। पोर्टेबल इयरफोन के बढ़ते उपयोग के कारण कई प्रकार के नकरात्मक प्रभाव सामने आ चुके हैं।
- बहरापन: तेज आवाज़ से सुनने की क्षमता में कमी।
- दिल की बीमारी: हेडफोन का ज्यादा उपयोग दिल की धड़कन और स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है।
- सिर दर्द: इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स से सिर दर्द और माइग्रेन की समस्या।
- कान का इन्फेक्शन: कान में बैक्टीरिया और संक्रमण का जोखिम।
- मानसिक तनाव: मानसिक स्थिति और सोशल लाइफ पर नकरात्मक असर।
क्या कहते हैं WHO के आंकड़े?
पिछले 10 सालों में पोर्टेबल इयरफोन से आने वाले लाउड म्यूजिक के कई इफेक्ट्स देखने को मिले हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, यह लत 100 करोड़ युवाओं के सुनने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है। डब्ल्यूएचओ चेतावनी दे चुका है कि ईयरफोन के अधिक इस्तेमाल से साल 2050 तक 70 करोड़ से ज्यादा लोगों के कान खराब हो सकते हैं।
क्यों करते हैं लोग ईयरफोन का इतना इस्तेमाल?
ऑफिस मीटिंग हो, दोस्तों से बातचीत या मनोरंजन के लिए वीडियो और म्यूजिक सुनना हो, ईयरफोन का इस्तेमाल आज आम हो गया है। लेकिन किसी भी चीज का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल नए खतरे को जन्म देता है। डॉक्टर्स के मुताबिक, इसे दिन में सिर्फ 30 मिनट तक ही इस्तेमाल करना सुरक्षित है। जरूरत पड़ने पर ही इसका प्रयोग करना बेहतर है, ताकि सुनने की क्षमता पर असर न पड़े।
इयरफोन का कानों पर असर: जानें कैसे हो सकता है नुकसान
- ध्वनि की यात्रा और उसके प्रभाव-
ध्वनि कानों के पर्दे से होकर, हड्डियों के जरिए भीतर की ओर यात्रा करती है। यह कंपन कोक्लीअ (आंतरिक कान के उस हिस्से को कहते हैं जहां ध्वनि कंपन पहुंचकर श्रवण तंत्रिका के ज़रिए मस्तिष्क तक जाती है।) तक पहुँचता है, जो तरल से भरा होता है और उसमें छोटे बाल होते हैं। ये बाल ध्वनि के कंपन को महसूस करते हैं।
जब तेज आवाज़ में संगीत सुना जाता है, तो यह बाल कोशिकाओं ( बाल कोशिकाएँ ट्रांसड्यूसर होती हैं जो गति की यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत संकेतों में बदल देती हैं।) को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे अस्थायी रूप से सुनने की क्षमता प्रभावित होती है। बार-बार ऐसा होने पर यह स्थायी नुकसान का कारण बन सकता है।
- सुनने की कोशिकाओं का स्थायी नुकसान-
यह सबसे बड़ी चिंता है, क्योंकि कान में मौजूद सुनने की कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त होने पर दोबारा ठीक नहीं होतीं। परिणामस्वरूप, स्थायी रूप से सुनने में कमी आ सकती है।
इयरफ़ोन कान में वैक्स को और अंदर धकेल सकते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा भी बढ़ सकता है।
इयरफोन से होने वाले नुकसान को कैसे कम करें?
ध्वनि को मापने के लिए डेसिबल (dB) की इकाई का उपयोग किया जाता है। 60 डेसिबल से कम आवाज़ लंबे समय तक सुरक्षित रहती है, लेकिन 85 डेसिबल या उससे अधिक की तेज़ ध्वनि से लगातार संपर्क सुनने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। अपने इयरफोन का वॉल्यूम 50% पर सेट रखें और सुनने के समय को कम करने का प्रयास करें।
- हेडफोन का चुनाव करें, ईयरफोन से बचें
हालांकि हम अक्सर हेडफोन और ईयरफोन को एक जैसा मानते हैं, इनका उपयोग में अंतर है। हेडफोन पूरे कान को ढकते हैं और ध्वनि को कान के पर्दे से दूर रखते हैं, जबकि ईयरफोन सीधे कान में फिट होते हैं, जिससे ध्वनि की तीव्रता अधिक महसूस होती है। हेडफोन का इस्तेमाल करना कानों के लिए सुरक्षित विकल्प हो सकता है।
- सुनने के बीच में ब्रेक लें
तेज आवाज में लंबे समय तक संगीत सुनने से कानों पर भारी दबाव पड़ सकता है। कानों को आराम देने के लिए हर 30 मिनट में 5 मिनट का ब्रेक या हर घंटे में 10 मिनट का ब्रेक लेना सबसे अच्छा है। यह कानों को सुरक्षित रखने में मदद करेगा।
By Ankit Verma