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तकनीक ने हमारे जीवन को कितना आसान बना दिया है। ये तकनीक का ही असर है कि हम अपने रोजमर्रा के काम पलक झपकते ही निपटा लेते हैं। हमारे जीवन की रक्षा के लिए अब ड्रोन की सहायता ली जाएगी। मतलब वैक्सीन पहुंचाने के बाद अब ड्रोन से खून की थैली पहुंचाने का ट्रायल भी शुरू हो गया है और ये देश में पहली बार हुआ है ग्रेटर नोएडा में। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के सहयोग से ग्रेटर नोएडा स्थित राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी जिम्स और दिल्ली स्थित लेडी हार्डिंग अस्पताल की टीम ने इस पर अध्यन शुरू किया है। इसके तहत जेपी इंस्टीट्यूट ऑफ इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी के परिसर से दिल्ली के लेडी हार्डिंग अस्पताल मे 10 यूनिट ब्लड पहुंचाया गया। अब टीम इस पर अलग-अलग चरणों में अध्यन करेगी।
ट्रांसपोर्टेशन का ब्लड की गुणवत्ता पर असर- जेपी इंस्टीट्यूट ऑफ इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी के परिसर से दिल्ली के लेडी हार्डिंग अस्पताल मे 10 यूनिट ब्लड पहुंचाने को मेडिकल क्षेत्र में क्रांति के रूप में देखा जा रहा है। अब टीम अध्ययन कर ये पता लगाएगी कि ब्लड को ड्रोन के जरिए एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने में उसकी गुणवत्ता तो नहीं प्रभावित हुई। टीम इस पर अध्ययन कर देखेगी कि ड्रोन के वाइब्रेशन और ऊंचाई पर उड़ने से हवा के दबाव से रेड ब्लड सेल्स, फ्रोजन प्लाज्मा और प्लेटलेट्स पर किस तरह का प्रभाव पड़ेगा है।
ऐसे होगा ब्लड की गुणवत्ता का अध्ययन- सुबह 7 से 8 बजे तक ब्लड बैग के रक्त की गुणवत्ता की जांच कर उसका अध्ययन किया जाएगा। इसके लिए जिम्स और लेडी हार्डिंग से सड़क मार्ग से ब्लड जेपी इंस्टीट्यूट ऑफ इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी के परिसर में भेजा जाएगा। इसके साथ ही जेपी अस्पताल में ब्लड को ड्रोन में रखकर अगल-अगल समय के लिए परिसर के अंदर ही उड़ाया जाएगा। इन तीनों सैंपल में रेड ब्लड सेल्स, फ्रोजन प्लाज्मा और प्लेटलेट्स, व्हाइट ब्लड सेल्स का अध्ययन किया जाएगा। अध्ययन के दौरान रक्त के हर कंपोनेंट की 30-30 यूनिट की गुणवत्ता का परीक्षण किया जाएगा। इस तरफ कुल 120 यूनिट ब्लड के कंपोनेंट पर ये परीक्षण किया जाएगा। आईसीएमआर ने आईआईटी दिल्ली से एक ड्रोन तैयार कराया है जिसके जरिए ये प्रयोग किया जा रहा है। तीन महीने में नीति आयोग के रिपोर्ट भेजी जाएगी।
आईसीएमआर 20 से 80 किलोमीटर तक ड्रोन से ब्लड भेजने को लेकर अध्ययन करने जा रहा है। यदि ब्लड की गुणवत्ता पर कोई असर नहीं हुआ तो फिर अगले चरण में इसे बढ़ाकर 100 किलोमीटर किया जा सकता है।
अगर ये प्रयोग सफल रहा तो दूर-दराज स्थित स्वास्थ्य केंद्रों में समय पर ब्लड पहुंचा कर लोगों की जान बचाई जा सकेगी।
Baten UP Ki Desk
Published : 11 May, 2023, 1:51 pm
Author Info : Baten UP Ki