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किसानों की ज़मीन छीनने की योजना पर गहराया विवाद...ये है New Noida का स्याह सच!

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न्यू नोएडा परियोजना ने एक बार फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को सड़कों पर उतार दिया है। उनकी गूंजती आवाज़ें, जोश से भरे नारे और उनकी अंतहीन परेशानियाँ महज विरोध नहीं हैं, बल्कि यह उनकी ज़मीन और हक़ की गहरी पुकार हैं। यह आंदोलन किसानों की वह संवेदनशीलता और गहरी पहचान को उजागर करता है, जो उनकी ज़मीन से जुड़ी है। यह सिर्फ एक संपत्ति का सवाल नहीं, बल्कि उनके अस्तित्व और रोज़ी-रोटी की जद्दोजहद है। जमीन ही उनकी पहचान, उनकी यादें और उनके संघर्षों का प्रतीक है, जिसे खोने का दर्द शायद कोई और नहीं समझ सकता।

न्यू नोएडा की योजना: किसानों के लिए चिंता का कारण

उत्तर प्रदेश सरकार ने गौतम बुद्ध नगर, बुलंदशहर, हापुड़ और अलीगढ़ जिलों में न्यू नोएडा परियोजना की घोषणा की है। यह योजना नोएडा और ग्रेटर नोएडा के विस्तार के रूप में प्रस्तावित है, जिसका उद्देश्य औद्योगिक और शहरी केंद्र विकसित करना है। हालांकि, इस परियोजना को लेकर स्थानीय किसानों और निवासियों में चिंता का माहौल है। किसानों का कहना है कि सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में उचित परामर्श नहीं किया गया और उनके जीवन के साथ छेड़छाड़ की जा रही है। 1997 से 2008 तक कई किसानों की ज़मीन को विकास के नाम पर सरकार ने अधिग्रहित कर लिया था, लेकिन इसके बदले उन्हें न तो पर्याप्त मुआवज़ा मिला और न ही उचित पुनर्वास की योजना। अब, न्यू नोएडा की योजना से डर है कि उनकी बाकी ज़मीन भी छीन ली जाएगी।

किसानों की मांगें: मुआवजा और पुनर्वास की योजना

यह आंदोलन 25 नवंबर को नोएडा अथॉरिटी के दफ्तर के सामने शुरू हुआ और अब आठ दिन हो चुके हैं, किसान अपनी मांगों को लेकर लगातार आवाज़ उठा रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा, भारतीय किसान परिषद और किसान मज़दूर मोर्चा जैसे प्रमुख संगठन इस आंदोलन का हिस्सा हैं। किसानों की प्रमुख मांगें निम्नलिखित हैं:

  1. ज़मीन का 10% हिस्सा उनके परिवारों के लिए प्लॉट के रूप में मिले।
  2. मुआवज़े की दर में 64.7% की वृद्धि हो, ताकि वे महंगाई के इस दौर में अपना जीवन फिर से शुरू कर सकें।
  3. विस्थापित परिवारों के बच्चों के लिए स्कूल और कॉलेजों में 10% आरक्षण।
  4. मुफ्त बिजली और पानी की सुविधा।

किसान कई सालों से अपनी मांगों को लेकर छोटे-छोटे प्रदर्शन कर रहे थे, लेकिन 2024 की शुरुआत से उनका गुस्सा और पीड़ा बढ़ गई। फरवरी में किसानों को एक आश्वासन मिला था कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक कमेटी बनाएंगे, लेकिन वह वादा भी अधूरा रह गया।

'दिल्ली चलो' की तैयारी: किसानों का आंदोलन और बढ़ेगा

अब किसानों का गुस्सा और बढ़ गया है। उनका कहना है कि वे सिर्फ वादों के आधार पर नहीं, बल्कि ठोस कदमों के रूप में समाधान चाहते हैं। प्रशासन ने उन्हें एक बार फिर आश्वासन दिया है कि यूपी सरकार के सचिव के साथ उनकी बैठक कराई जाएगी, लेकिन किसान अब और इंतजार नहीं करना चाहते। उनका कहना है कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो वे एक हफ्ते बाद दिल्ली कूच का दूसरा दौर शुरू करेंगे।

राजनीतिक हस्तक्षेप और साजिशों का आरोप

इस बीच, एक दूसरा पक्ष भी है जो इस आंदोलन को राजनीतिक दृष्टिकोण से देखता है। कुछ का आरोप है कि इन आंदोलनों में राजनीतिक दल और बड़े कॉर्पोरेट घराने अपने निजी हित साधने की कोशिश करते हैं। वे सरकार पर दबाव बनाने के लिए सामाजिक असमानताओं, जातिवाद, क्षेत्रवाद और धार्मिक ध्रुवीकरण का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा, कभी-कभी विदेशी ताकतें भी इन आंदोलनों का इस्तेमाल कर देश में अस्थिरता फैलाने की कोशिश करती हैं।

किसानों का संघर्ष: असल मुद्दा क्या है?

हालांकि, इन तमाम साजिशों और राजनीतिक मुद्दों के बीच, किसानों का असल संघर्ष और उनकी पीड़ा सबसे महत्वपूर्ण है। उन्हें अपनी ज़मीन से प्यार है, वह इसे अपनी पहचान मानते हैं और इसे खोने का डर उन्हें कई सालों से सताता आ रहा है। इस संघर्ष को सही मंच मिलना चाहिए ताकि उनकी आवाज़ सुनी जा सके और उनकी समस्याओं का समाधान निकाला जा सके। न्यू नोएडा के निर्माण की योजना सरकार की आर्थिक दृष्टि को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण मानी जा सकती है, लेकिन किसानों के हितों को नजरअंदाज करना एक बड़ा खतरा हो सकता है। सरकार को किसानों के हक़ और उनकी चिंताओं को समझकर समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए ताकि विकास और किसानों का भला दोनों साथ-साथ हो सके।

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