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ताजमहल का मून लाइट व्यू देखना हुआ आसान

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दुनिया की सबसे खूबसूरत इमारतों में से एक ताज महल देखने की इच्छा हर किसी की होती है. सूरज की रोशनी हो, या फिर चाँद की चांदनी, ताज महल दोनों ही रोशनी में ख़ूबसूरती के अलग रंग बिखेरता है। यूपी के आगरा में स्थित ताज महल का मून लाइट व्यू देखने की हसरत बहुत से लोग रखते हैं, लेकिन टिकट बुकिंग ऑफलाइन होने के कारण और लंबी लाइन के झंझट के चलते यह हसरत दिल में दबी रह जाती है।
टिकट खरीदने की व्यवस्था ऑनलाइन- अब तक ताज महल का मून लाइट व्यू देखने के लिए टूरिस्ट को टिकट माल रोड स्थित ASI ऑफिस से खरीदना पड़ता था लेकिन टिकट खरीदने की इस प्रक्रिया को अब टूरिस्ट के लिए आसन कर दिया गया है. इससे पर्यटक ताज महल के नाईट व्यू का आसानी से दीदार कर सकेंगे. 
दरअसल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने पर्यटकों को और सहूलियत देते हुए नाइट व्यू के टिकट के बुकिंग की व्यवस्था को अब ऑनलाइन कर दिया है। अब अगर आप ताज महल का नाईट व्यू देखना चाहते हैं तो इसके लिए आपको ज्यादा महनत नहीं करनी पड़ेगी।  इस टिकट की कीमत जहां भारतीयों के लिए 510 रूपए है वहीं विदेशी पर्यटकों के लिए इसकी दर 750 है. आप भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की वेबसाइट asi.paygov.org.in पर जाकर टिकट बुक कर सकते हैं.
एक बैच में 400 लोगों कर सकते हैं ताज का दीदार- टिकट बुकिंग की प्रक्रिया भले ही ऑनलाइन शुरू हो गई हो लेकिन पर्यटकों के लिए ताज को देखने की व्यवस्था पुरानी ही है। ताज के रात्रि दर्शन के लिए 8 बैच बनाए जाते हैं जिसमे 1 बैच में अधिकतम 50 टूरिस्ट ताज महल का रात्रि दीदार करते हैं. इस हिसाब से 1 दिन में 400 लोग ताज महल का रात्रि दीदार कर पाएंगे. यह व्यवस्था रात्रि 8:00 बजे से 12:30 बजे तक उपलब्ध रहती है।
शरद पूर्णिमा पर दोगुनी हो जाती है ताज की चमक- ताज महल की जगमगाहट शरद पूर्णिमा पर देखने के लिए ख़ास तौर से पर्यटक यहां आते हैं. शरद पूर्णिमा पर ताज देखने का कारण चमकी नामक घटना है. सफेद संगमरमर से ताजमहल पर जब शरद पूर्णिमा की चांद की दूधिया रोशनी पड़ती है तो यह और खूबसूरत हो उठता है। ताज की पच्चीकारी में एक ख़ास किस्म के रंगीन पत्थर लगे हैं जो चांद की रोशनी एक खास एंगल पर पड़ने पर चमकते हैं। इन पत्थरों का चमकना ‘चमकी’ के नाम से चर्चित हो गया। 
वर्ष 1984 तक ताजमहल के रात में बंद होने से पहले शरद पूर्णिमा पर पूरी रात चमकी का मेला लगता था, जो पांच नहीं बल्कि सात दिनों तक चलता था। बताया जाता है कि 1960 और 70 के दशक में शरद पूर्णिमा पर यहां मेला लगता था जिसे उस वक्त लक्खी मेला नाम से जाना जाता था। इसमें शरद पूर्णिमा से एक दिन पहले और एक दिन बाद तक इतनी भीड़ रहती थी कि ताज में प्रवेश के लिए घंटों तक इंतजार करना होता था।

 

 

 

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