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मथुरा का ऐतिहासिक चुनावी गेट: हार्डिंग गेट से होली गेट तक सफर

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उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव की घोषणा के बाद चारों तरह राजनीतिक चर्चा हो रही है। यूपी के शहर-शहर, गली-नुक्कड़ में चर्चा केवल निकाय चुनाव की ही है। मथुरा में भी एक ऐसी जगह है जो आजादी के समय से ही राजनीति का केंद्र रहा है। जैसे हर जगह का एक ह्रदय स्थल होता है वैसे ही मथुरा का ह्रदय स्थल है होली गेट। जहां धार्मिक दृष्टि से मथुरा में होली गेट की अपनी एक अलग पहचान है तो वहीं यहां हर चुनाव के दौरान समय से ही राजनीतिक चर्चाएं भी शुरू हो जाती है। मथुरा की राजनीति और राजनेताओं को करीब से जानने के लिए एक बार यहां आना तो बनता है। यहां कई लोग इनके बारे में अपनी-अपनी राय देते हुए मिल जाएंगे। फिलहाल यहां मथुरा-वृन्दावन नगर निगम में मेयर पद के लिए किस पार्टी से किसे टिकट मिलने वाला है इस बात की चर्चा तेज़ है। 

अंग्रेज शासनकाल में हुआ दरवाजे का निर्माण 
इसे अंग्रेज शासनकाल में मथुरा के कलेक्टर रहे ब्रड फोर्ड हार्डिंग द्वारा साल 1875 में बनवाया गया था। दरअसल, हार्डिंग ने शहर में चार दरवाजे बनवाने का प्रस्ताव तैयार किया था। इसमें भरतपुर दरवाजा, डीग दरवाजा, वृन्दावन दरवाजा और होली दरवाजा शामिल था। जैसे-जैसे समय बीतता गया भरतपुर, डीग और वृन्दावन दरवाजे केवल नाम के लिए रह गए। लेकिन होली दरवाजा मथुरा की पहचान बनकर उभर आया। 

तीन बार बदला गया नाम 
ब्रड फोर्ड हार्डिंग के सम्मान में इसका नाम हार्डिंग गेट रखा गया था। इसके बाद 15 अगस्त 1947 में इस दरवाजे के नाम को बदलकर लोकमान्य तिलक के नाम पर तिलक दरवाजा रखा गया। मौजूदा समय में यहां शहर की होली जलती है इसलिए अब इसे होली गेट नाम से जाना जाता है। इस तरह दरवाजे के नाम में अब तक तीन बार बदलाव हो चुके हैं। 

इंजीनियर यूसुफ़ ने बनाया था नक्शा 
इस विशाल दरवाजे के ऊपर एक क्युपोला (Cupola) भी स्थित है। क्युपोला इमारतों के ऊपर बनने वाला एक छतरी नुमा गुम्बद होता है। इस होली गेट का नक्शा मथुरा नगर पालिका के एक बेहद योग्य इंजीनियर यूसुफ़ ने बनाया था। जो बेहतरीन सूझबूझ के साथ खूबसूरती को भी दर्शाता है। इसके ऊपर क्युपोला के साथ चार हवादार छोटी छतरी यानी कियोस्क (Kiosques/Kiosk)का भी निर्माण किया गया। 1875 में दरवाजे के साथ दो दुकानों में करीब 13 हज़ार 731 रुपयों का खर्च किया गया था।

क्या कहते हैं जानकार मदन मोहन श्रीवास्तव
पिछले करीब 40 वर्षों से गेट के नीचे एक छोटी दुकान लेकर बैठे हैं समाजसेवी मदन मोहन श्रीवास्तव। वे कहते हैं जब भी कोई चुनाव नज़दीक आते हैं तो यहां राजनीतिक चर्चाओं का दौरा शुरू हो जाता है। क्योकि हर राजनीतिक दल से जुड़ा व्यक्ति यहां से ज़रूर गुजरता है, चाहे वह द्वारिकाधीश के दर्शन के लिए आए, यमुना जी के लिए या फिर चाय पीने ही क्यों न आए। वे कहते हैं कि इन दिनों केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार है इसलिए हर व्यक्ति की दिलचस्पी यह जानने में है कि भाजपा इस बार किसे मेयर पद के लिए प्रत्याशी बना रही है।

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