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जब अवध पहुंची 1857 के ग़दर की आग

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यूपी की राजधानी लखनऊ के कुछ अंश में आज भी अंग्रेजों के खिलाफ जंग की यादों ने पनाह ले रखी है। साल 1857 में आजादी की पहली लड़ाई के साक्ष्य आज भी इस शहर में मौजूद है। अंग्रेजों ने भारतीय क्रांतिकारियों पर हमला करने के लिए जिन तोपों का इस्तेमाल किया वो आज भी कैसरबाग की रेजीडेंसी में अंग्रेजों की हार का सबूत बनी हुई है। आज यहां एक नहीं, बल्कि 10 तोपें मौजूद हैं और इसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। लखौरी ईट और सुर्ख चूने से बनी इस दो मंजिला इमारत में बड़े-बड़े बरामदे और एक पोर्टिको भी मौजूद है। इसके साथ ही रेजीडेंसी में एक तहखाना भी है। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जब जंग की शुरुआत हुई तो अंग्रेज औरतों और बच्चों ने इसी तहखाने में शरण ली थी। अंग्रेजों के लिए इस भवन में एक दावत खाना भी बनाया गया था और यहां के मुख्य कक्ष में फाउंटेन भी था। उस समय यह पूरा परिसर यूरोपियन फर्नीचर और चीन के सजावटी सामानों से भरा हुआ था।

जब अवध तक पहुंची ग़दर की आग 
लखनऊ की यह रेजीडेंसी करीब 33 एकड़ में फैली हुई है। रेजीडेंसी का निर्माण साल 1774 में अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने करवाया था। यहीं पर ब्रिटिश रेजिडेंट की मेहमान नवाजी अवध के नवाब किया करते थे। इसी बात का फायदा उठाकर अंग्रेजी रेजिडेंट ने यहां पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया। यहां तक की अंग्रेजों ने यहां के प्रशासनिक कार्यों में दखल देना भी शुरू कर दिया था। आजादी की पहली लड़ाई की क्रांति 10 मई 1857 को मेरठ से शुरू हुई जिसकी आग अवध तक पहुंचने लगी। 

युद्ध में तोप की भूमिका 
कई इतिहासकार बताते हैं कि उस दौर में किसी भी युद्ध में तोप निर्णायक की भूमिका निभाया करती थी। जिसके पास तोप होती थी, उसके लिए युद्ध जीतना आसान हो जाता था। भारतीय क्रांतिकारियों ने भी एक तोप का इस्तेमाल किया था जो बहुत भारी थी। इस तोप को 28 बैलों के जरिए चारबाग से कैसरबाग तक लाया गया था। 

बेहद ख़ास है रेजीडेंसी का आर्किटेक्चर 
रेजीडेंसी की वास्तुकला भी अपने आप में बेहद ख़ास है। यहां की कई इमारतें रेजीडेंसी का ही अहम हिस्सा हुआ करती थी। इसमें बैंक्वेट हॉल, डाकघर, ट्रेजरी, स्कूल, हॉर्स स्क्वायर, सिख स्क्वायर, मस्जिद, कब्रिस्तान, पार्क और ब्रिगेड मेस आदि शामिल है। लेकिन इन सब के अलावा यहां सबसे ज्यादा आकर्षित करने वाले बेली गार्ड गेट, ट्रेजर हाउस, डॉ। फेयरर्स हाउस, बेगम कोठी, इमामबाड़ा और मस्जिद, बैंक्वेटिंग हॉल, म्यूजियम आदि है। रेजीडेंसी में प्रवेश करते ही बेली गार्ड गेट सबसे पहले आता है। इस गेट को उन्नीसवीं शताब्दी में नवाब सादत अली खान से लखनऊ के निवासी जॉन बेली के स्वागत और सम्मान को ध्यान में रखते हुए बनाया था। ट्रेजर हाउस 1851 में पूरा हुआ और 1857 में यह पूरी तरह बर्बाद हो गया। रेजीडेंसी में रेजिडेंट सर्जन को डॉ।  फेयरर्स हाउस समर्पित है। बेहद आकर्षित आर्किटेक्चर से बनाया गया बैंक्वेट हॉल दो मंजिला इमारत थी। नसीरुद्दीन हैदर की रानी विलायती महल मखदारह आलिया की कोठी बेगम कोठी के नाम से मशहूर है। इसके बाद म्यूजियम में उस दौर की कई ज़रूरी चीजें मौजूद हैं। 

दीवारों पर है गोले-बारूद के निशान 
इसी दिन क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश हुकूमत को ख़त्म करने के लिए रेजीडेंसी को चारों तरफ से घेरकर हमला कर दिया। हमले के दौरान कई गोले-बारूद दागे गए, जिसमें कई रेजिडेंट मारे गए। हालांकि, कई क्रांतिकारियों की भी इसमें मौत हो गई। पांच महीने की ऐतिहासिक घेराबंदी में क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश हुकूमत को यहां कैद रखा। इसके बाद 22 नवंबर 1857 को ब्रिटिशर्स यहां से भाग खड़े हुए। रेजीडेंसी की एक-एक दीवार आज भी 1857 की ग़दर की कहानी बयान करती है। यहां आज भी दीवारों पर गोले और बारूद के निशान बने हुए हैं। 

आज की रेजीडेंसी 
अब यह स्थान नवनिर्मित रेजीडेंसी से काफी हद तक अलग है। अब यह स्थान शव, क्षति, मलबे की एक ऐतिहासिक कहानी को दर्शाता है। हालांकि रेजीडेंसी में कुछ हिस्से अभी भी ठीक-ठाक स्थिति में मौजूद है बावजूद इसके वह रेजीडेंसी की असल अहमियत को बयान नहीं करते हैं। रेजीडेंसी में बचे-खुचे अवशेषों और अन्य खासियत को देखने के लिए लोग यहां दूर-दूर से आते हैं। यहां भारतीय पर्यटकों के लिए 25 रुपए टिकट निर्धारित है और विदेशी पर्यटकों के लिए 300 रुपए का टिकट लेना होता है।

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