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उत्तर प्रदेश में टॉप-5-ओल्डेस्ट लाइब्रेरी का इतिहास

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दुनियाभर में बुक्स के शौक़ीन लोग एक अच्छी लाइब्रेरी की तलाश में रहते हैं। यहां उन्हें एक ही विषय पर कई तरह की बुक्स आसानी से मिल जाती है। ऐसे में अगर जगह बेहद ऐतिहासिक हो तो वहां का माहौल और फील दोनों शानदार हो जाता है। हमारे जीवन में लाइब्रेरी की इम्पोर्टेंस को प्राचीन काल से ही महत्त्व दिया जा रहा है। प्रदेश में कई ऐसी लाइब्रेरी हैं जिनके पास किताबों का एक अच्छा कलेक्शन है लेकिन इसके अलावा वह अपनी दिलचस्प आर्किटेक्चर के लिए भी जाने जाते हैं। तो चलिए आज आपको बताते हैं उत्तर प्रदेश की 5 सबसे पुरानी लाइब्रेरी के बारे में...

सरस्वती भवन लाइब्रेरी
सबसे पहले बात करेंगे वाराणसी की सरस्वती भवन लाइब्रेरी की। यह यूपी समेत पूरे भारत की एक प्रसिद्ध लाइब्रेरी है। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर में स्थित यह लाइब्रेरी भारतीय ज्ञान और विज्ञान का बेहद अनमोल खजाना समेटे हुए हैं। शुरुआत में इस लाइब्रेरी के पास वेद, वेदांग, पुराण ज्योतिष और व्याकरण पर आधारित करीब 1 लाख 11 हज़ार से ज्यादा पांडुलिपियां मौजूद थी लेकिन वर्तमान समय इनकी संख्या लगभग 95 हज़ार है। जानकारी के लिए बता दें कि पांडुलिपि यानी मनुस्क्रिप्ट, उन दस्तावेजों को कहा जाता हैं जो एक या एक से अधिक व्यक्ति द्वारा हाथ से लिखी गई हो। इसे लिटरेचर या किसी अन्य सामग्री के आधार पर तैयार किया जाता था। 

रजा लाइब्रेरी
इस पुस्तकालय की स्थापना नवाब फैजुलाह खान ने 1774 में की थी। रामपुर की रजा लाइब्रेरी में संस्कृत, हिंदी, उर्दू, पश्तो सहित अन्य भाषाओँ में करीब 60 हज़ार पांडुलिपियां मौजूद हैं। यहां करीब 3 हज़ार लिटरेचर की किताबें और पत्रिकाएं अनेक भाषाओँ में मौजूद हैं। 

राजकीय पब्लिक लाइब्रेरी
प्रयागराज की थोर्नहिल मायने मेमोरियल भवन को आज के समय में राजकीय पब्लिक लाइब्रेरी के नाम भी जाना जाता है। 1878 में यह लाइब्रेरी पूरी तरह बनकर तैयार हुई। 8 जनवरी 1887 को इस भवन में उप्र विधानमंडल की पहली बैठक हुई। तब उत्तर प्रदेश को नार्थ वेस्टर्न प्रोविसेंस अवध के नाम से जाना जाता था। यह भवन गोथिक-स्कॉटिश ढंग से आर्किटेक्ट कर बनाया गया है। 

भारती भवन लाइब्रेरी
अब बात करते हैं भारती भवन लाइब्रेरी की। इस लाइब्रेरी को इलाहाबाद के लोकनाथ मोहल्ले में साल 1889 में स्थापित किया गया था। इस लाइब्रेरी को ब्रजमोहन लाल भल्ला ने 1 लाख रूपए की लागत से शुरू किया था। कहा जाता है कि आज़ादी के आंदोलन के दौरान कई बड़े नेता ब्रिटिश हुकूमत के विरोध में यहां बैठकें किया करते थे। 

अमीर-उद-दौला पब्लिक लाइब्रेरी
लखनऊ शहर के कैसरबाग में स्थित अमीर-उद-दौला पब्लिक लाइब्रेरी को अवध इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ ब्रिटिश द्वारा बनवाया गया था। इस लाइब्रेरी में हिंदी, इंग्लिश, संस्कृत, बंगाली, फारसी और अरबी सहित भाषाओँ में बुक्स का अच्छा कलेक्शन है। भारतीय इस्लामिक स्थापत्य पर आधारित यह लाइब्रेरी करीब 3 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस लाइब्रेरी को स्वर्गीय अमीर-उद-दौला की याद में करीब 62 हज़ार रूपए की लागत से बनवाया।

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