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यूपी का वो वो शायर जिसने इतिहास में अपनी पहचान अमर कर दी...

"मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया..."

यह शेर मजरूह सुल्तानपुरी की शख्सियत का आईना है। एक ऐसा नाम, जिसकी शायरी और नगमे दिलों में बसते हैं। आइए जानते हैं इस महान शायर की कहानी, जिसमें है जुनून, संघर्ष और बेमिसाल रचनात्मकता।

असली पहचान: असरार उल हसन खान

मजरूह सुल्तानपुरी का असली नाम असरार उल हसन खान था। एक राजपूत परिवार में जन्मे मजरूह का इस्लाम धर्म अपनाने के बावजूद उनकी जिंदगी पर हिंदू परंपराओं का गहरा असर रहा।

जवाहरलाल नेहरू को दी थी चुनौती-

मजरूह का आक्रामक स्वभाव उन्हें एक दिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से भिड़ने पर मजबूर कर देता है। उनकी शायरी सरकार पर तंज कसती थी। यही वजह थी कि उन्हें जेल भी जाना पड़ा।

"तिरे सिवा भी कहीं थी पनाह भूल गए
निकल के हम तिरी महफ़िल से राह भूल गए।"

हकीम से शायर तक का सफर

शायरी का शौक बचपन से था, लेकिन करियर की शुरुआत हकीम के रूप में हुई। जिगर मुरादाबादी से मुलाकात ने उनकी जिंदगी बदल दी और मजरूह सुल्तानपुरी के शायर बनने का सफर शुरू हुआ।

फिल्म इंडस्ट्री का सुनहरा दौर

मजरूह का पहला गाना, "गेसू बिखराए, बादल आए झूम के," संगीतकार नौशाद के लिए था। फिल्म 'शाहजहां' का "जब दिल ही टूट गया" ने उन्हें शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया। इसके बाद, "बाबूजी धीरे चलना," "चाहूंगा मैं तुझे," और "हम हैं राही प्यार के" जैसे सदाबहार गाने उनकी कलम से निकले।

संघर्ष के दिनों में शायरी का सहारा-

राजनीति में अपने विचारों के लिए जेल जाने के दौरान मजरूह की जिंदगी में कठिन दौर आया। राज कपूर ने मदद की पेशकश की, लेकिन मजरूह ने इसे शेरो-शायरी के जरिए स्वीकारा। "एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल" जैसे गाने ने उनकी स्थिति को बदल दिया।

मजरूह की अमर विरासत-

24 मई 2000 को निमोनिया के कारण मजरूह सुल्तानपुरी का निधन हुआ। लेकिन उनके लिखे नगमे और शेर अमर हो गए।

"कोई हमदम न रहा कोई सहारा न रहा
हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा।"

हमारी प्रेरणा, हमारी धरोहर-

मजरूह सुल्तानपुरी की कहानी संघर्ष, जुनून और शायरी की शान का प्रतीक है। उनके जीवन में आए उतार-चढ़ाव और उनके जुझारू स्वभाव ने उन्हें एक अनमोल धरोहर बना दिया है। उनकी रचनाएं आज भी हमारे दिलों में जीवित हैं और हमें प्रेरित करती हैं, चाहे वह उनके गाने हों या शेर। मजरूह की शायरी में एक गहरी सच्चाई और संवेदनशीलता है जो आज भी हमारे अंदर उत्साह और साहस भरती है। उनके शब्दों ने न सिर्फ भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को समृद्ध किया, बल्कि उन्होंने हमें यह भी सिखाया कि जीवन की कठिनाइयों से जूझते हुए भी अपने हुनर को कभी न छोड़ें। मजरूह सुल्तानपुरी के शब्द, उनकी शायरी और उनकी रचनाएं हमेशा हमारी प्रेरणा और धरोहर बनी रहेंगी।

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