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एक ऐसा कवि जिसने मरते दम तक हिंसा के खिलाफ आवाज उठाई!

लहू ही है जो रोज धाराओं के होंठ चूमता है

लहू तारीख की दीवारों को उलांघ आता है।।

सपनों के लिए लाज़मी है

झेलनेवाले दिलों का होना

नींद की नज़र होनी लाज़मी है

सपने इसलिए हर किसी को नहीं आते।।

 

ऐसा कवि जिसकी कविताएं शरीर के रोम-रोम में रोमांच भर-कर आगे बढ़ने का हौसला देती हैं। लगभग 35 साल पहले इस दुनिया से रुख़सत हो चुका ये कवि अपनी कविताओं के ज़रिए लोगों के दिलों में आज भी ज़िंदा हैं। उनकी कविताएं न केवल लोगों के दिलों में जोश भरती हैं, बल्कि नई पीढ़ी को आगे बढ़ने का रास्ता भी दिखाती हैं। उनकी रचनाएं आज भी पढ़ी जाती हैं, उन पर गहन चर्चा होती है, और उनकी कविताएं कई पाठ्यक्रमों का हिस्सा भी बन चुकी हैं। उनके जीवन और साहित्य पर शोध किए जाते हैं। एक क्रांतिकारी, साहसी और प्रतिबद्ध कवि के रूप में हमेशा याद किये जाने वाले उस कवि का नाम अवतार सिंह पाश है। उनकी कविताएं लोगों के दिलों में विद्रोह की चिंगारी जलाती हैं। उनका लेखन न सिर्फ़ साहित्यिक दृष्टि से अहम है, बल्कि सामाजिक बदलाव की प्रेरणा देने वाला भी है। पाश की कविताएं नई पीढ़ी के लिए संघर्ष और आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाती हैं। उनमें संजीवनी शक्ति है, जो निराशा में भी आशा का संचार करती है और उनकी कविताएं आज भी युवाओं के दिलों में जोश भर देती हैं। 

 

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती

पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती

ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती

 

बैठे-बिठाए पकड़े जाना – बुरा तो है

सहमी-सी चुप में जकड़े जाना – बुरा तो है

पर सबसे ख़तरनाक नहीं होता

 

कपट के शोर में

सही होते हुए भी दब जाना – बुरा तो है

जुगनुओं की लौ में पढ़ना -बुरा तो है

मुट्ठियां भींचकर बस वक्‍़त निकाल लेना – बुरा तो है

सबसे ख़तरनाक नहीं होता

 

सबसे ख़तरनाक होता है

मुर्दा शांति से भर जाना

तड़प का न होना सब सहन कर जाना

घर से निकलना काम पर

और काम से लौटकर घर जाना

सबसे ख़तरनाक होता है

हमारे सपनों का मर जाना

 

सबसे ख़तरनाक वो घड़ी होती है

आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो

आपकी नज़र में रुकी होती है

 

सबसे ख़तरनाक वो आंख होती है

जो सबकुछ देखती हुई जमी बर्फ होती है

जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्‍बत से चूमना भूल जाती है

जो चीजों से उठती अंधेपन की भाप पर ढुलक जाती है

जो रोज़मर्रा के क्रम को पीती हुई

एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है

 

सबसे ख़तरनाक वो चांद होता है

जो हर हत्‍याकांड के बाद

वीरान हुए आंगन में चढ़ता है

लेकिन आपकी आंखों में मिर्चों की तरह नहीं गड़ता

 

सबसे ख़तरनाक वो गीत होता है

आपके कानो तक पहुंचने के लिए

जो मरसिए पढ़ता है

आतंकित लोगों के दरवाज़ों पर

जो गुंडों की तरह अकड़ता है

 

सबसे खतरनाक वह रात होती है

जो ज़िंदा रूह के आसमानों पर ढलती है

जिसमे सिर्फ उल्लू बोलते और हुआं हुआं करते गीदड़

हमेशा के अंधेरे बंद दरवाजों-चौगाठों पर चिपक जाते है

 

सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है

जिसमें आत्‍मा का सूरज डूब जाए

और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा

आपके जिस्‍म के पूरब में चुभ जाए

 

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती

पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती

ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती।

 

आंखों में सपनों की चमक और इंकलाबी जोश की मशाल थामे, क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह संधू जो, पाश के नाम से प्रसिद्ध इस महान कवि ने न सिर्फ शब्दों की दुनिया में अपनी छाप छोड़ी, बल्कि उन्होंने अपने विचारों से युवाओं के दिलों में भी बगावत की आग भड़काई। 9 सितंबर 1950 को पंजाब के जालंधर जिले के तलवंडी सलेम गांव में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे पाश की कविताएं संघर्ष और उम्मीद की आवाज बनीं। किसान परिवार में जन्म लेने के कारण मेहनत और संघर्ष उनके जीवन का हिस्सा थे। उनके पिता भारतीय सेना में जवान थे, और उनकी कविता लेखन की विरासत भी पाश को मिली। पाश को यह बात बखूबी पता थी कि बिना संघर्ष कुछ भी हासिल नहीं होता। उनका मानना था कि जीवन में लड़ाई केवल भौतिक संघर्ष नहीं, बल्कि विचारों की भी होती है। इसीलिए उनकी कविताएं केवल कागज पर लिखे शब्द नहीं, बल्कि जीने की एक शैली थी।

हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए

हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए

हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े

 

हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर

हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर

यह काम हमारा नहीं बनता है, सवाल नाचता है

सवाल के कन्धों पर चढ़कर

हम लड़ेंगे साथी

 

क़त्ल हुए जज़्बों की क़सम खाकर

बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर

हाथों पर पड़े गाँठों की क़सम खाकर

हम लड़ेंगे साथी

 

 

 

हम लड़ेंगे जब तक

दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है

जब बन्दूक न हुई, तब तलवार होगी

जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी

लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की ज़रूरत होगी।।

 

उनकी रचना “हम लड़ेंगे साथी” जहां संघर्ष का उद्घोष करती है। यह कविताएं हर उस इंसान के लिए प्रेरणा बनती हैं, जो अपने सपनों को जिंदा रखना चाहता है और समाज में बदलाव की उम्मीद करता है। पाश की कविताओं में न केवल सामाजिक न्याय और क्रांति की पुकार है, बल्कि उसमें संघर्ष की अनिवार्यता और सपनों की अहमियत को भी दर्शाया गया है। उनके शब्द आज भी किताबों में, दीवारों पर, और सबसे ज्यादा युवाओं की जुबान पर गूंजते हैं।

 

मैं घास हूं

मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा

बम फेंक दो चाहे विश्‍वविद्यालय पर

बना दो ह़ॉस्‍टल को मलबे का ढेर

सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर

मुझे क्‍या करोगे

मैं तो घास हूं हर चीज़ पर उग आऊंगा

मैं घास हूं, मैं अपना काम करूंगा

मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा।।

ये पंक्तियां उनके जीवन और संघर्ष का प्रतीक बन गईं और लोगों के दिलों पर एक अमिट छाप छोड़ गईं। साल 1985 में पाश को पंजाबी एकेडमी ऑफ लेटर की फैलोशिप से सम्मानित किया गया, जिसके बाद वे इंग्लैंड चले गए। वहां भी उन्होंने अपनी प्रखर विचारधारा को भारतीय समुदाय के बीच मुखरता से प्रस्तुत किया। इंग्लैंड के बाद उनका सफर अमेरिका की ओर हुआ, जहां उन्होंने खालिस्तान आंदोलन और उसके नाम पर हो रही हिंसा के खिलाफ निर्भीकता से आवाज उठाई। अमेरिका से लौटने के बाद, कुछ असामाजिक तत्वों ने पाश की हत्या कर दी। लेकिन उन्हें इस बात का जरा भी अहसास नहीं था कि पाश का शरीर भले ही इस दुनिया से विदा हो जाए, उनकी कविताएं उनके जीवित रहते मिली ख्याति से भी बड़ी उड़ान भरेंगी। 

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