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लखनऊ से निकली टीबी के इलाज की नई चिंगारी, BBAU ने तोड़ा टीबी बैक्टीरिया का आयरन लॉक!

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बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (BBAU), लखनऊ के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने क्षय रोग (टीबी) के खिलाफ एक ऐतिहासिक वैज्ञानिक सफलता हासिल की है। विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने टीबी के घातक बैक्टीरिया मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस द्वारा रोगी के शरीर से आयरन (लौह तत्व) चुराने की जटिल प्रक्रिया को उजागर किया है। यह शोध न केवल इस जानलेवा रोग की बुनियादी समझ को और पुख्ता करता है, बल्कि नई और प्रभावी दवाओं के विकास की नींव भी रखता है।

शोध का नेतृत्व और वैज्ञानिक समझ

इस शोध कार्य का नेतृत्व जैव प्रौद्योगिकी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. युसुफ अख्तर और उनके शोधार्थी गौरी शंकर ने किया। अध्ययन में यह स्पष्ट किया गया है कि टीबी बैक्टीरिया शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को चकमा देकर आयरन और अन्य पोषक तत्व चुराने में सक्षम होता है। यह प्रक्रिया उसके जीवित रहने और बढ़ने के लिए अनिवार्य है। मानव शरीर संक्रमण के दौरान आयरन को सुरक्षित करने की प्रक्रिया अपनाता है, जिसे "न्यूट्रीशनल इम्युनिटी" कहा जाता है। इस चुनौती का सामना करने के लिए टीबी बैक्टीरिया साइडरोफोर नामक सूक्ष्म अणुओं का प्रयोग करता है जो शरीर से आयरन को छीनकर बैक्टीरिया में ले जाते हैं।

एलआरटीएबी प्रोटीन: बैक्टीरिया की चालाकी

शोध में पाया गया कि एलआरटीएबी (LRTAB) नामक एक प्रोटीन, जो सामान्यतः बैक्टीरिया में दवाओं को बाहर निकालने के लिए जिम्मेदार होता है, टीबी बैक्टीरिया द्वारा आयरन को अंदर खींचने में उपयोग किया जा रहा है। यह बैक्टीरिया की जैविक चतुराई और सर्वाइवल स्ट्रैटजी को दर्शाता है।

नई दवाओं की उम्मीद: पोषण तंत्र पर हमला

शोधकर्ताओं ने इस प्रोटीन में ऐसे “पॉकेट्स” की पहचान की है, जहां संभावित दवा अणु जुड़कर इसकी कार्यप्रणाली को बाधित कर सकते हैं। डॉ. युसुफ अख्तर के अनुसार, यदि इन अणुओं की मदद से एलआरटीएबी प्रोटीन के काम को बाधित किया जाए, तो बैक्टीरिया को आयरन नहीं मिल पाएगा, जिससे वह कमजोर हो जाएगा और मौजूदा दवाएं ज्यादा प्रभावी साबित होंगी। यह तरीका सीधे बैक्टीरिया को मारने की जगह उसके पोषण चक्र को निशाना बनाता है, जिससे दवा प्रतिरोध (Drug Resistance) की संभावना भी कम हो जाएगी।

टीबी – अब भी एक जानलेवा चुनौती

भारत में टीबी अब भी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बना हुआ है। सरकारी प्रयासों और जागरूकता अभियानों के बावजूद, हर साल लगभग 5.5 लाख लोग इस बीमारी से अपनी जान गंवा बैठते हैं। शोधार्थी गौरी शंकर का कहना है कि, "अगर हम टीबी बैक्टीरिया के जीवित रहने की रणनीतियों को गहराई से समझें, तो हम इसे हराने के ज्यादा करीब होंगे। हमारा अध्ययन इसी दिशा में एक ठोस कदम है।"

टीबी उपचार में क्रांतिकारी बदलाव की ओर बढ़ता भारत

BBAU का यह शोध टीबी जैसी गंभीर बीमारी से लड़ने के लिए नई आशा की किरण बनकर उभरा है। जहां एक ओर यह खोज वैज्ञानिक दुनिया में भारत की प्रगति को दर्शाती है, वहीं दूसरी ओर यह आम जनता के लिए बेहतर और टिकाऊ उपचार विकल्पों की दिशा में एक नई शुरुआत है।

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