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इस सरकारी फरमान के आगे झुके बिजली कर्मी, हड़ताल से पीछे खींच लिए कदम!

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उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल और दक्षिणांचल की बिजली वितरण कंपनियों के निजीकरण के खिलाफ कर्मचारी 29 मई से अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार पर जाने वाले थे, लेकिन प्रशासन की कड़ी कार्रवाई और बर्खास्तगी की चेतावनी के चलते कर्मचारियों ने विरोध प्रदर्शन को स्थगित कर दिया है। प्रदेश के करीब एक लाख संविदा और नियमित कर्मचारी निजीकरण के खिलाफ पिछले 181 दिनों से शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे।

कर्मचारियों ने किया था कार्य बहिष्कार का ऐलान

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने बताया कि 9 अप्रैल को ही कार्य बहिष्कार की नोटिस जारी कर दी गई थी। इस आंदोलन का उद्देश्य सरकार और मुख्यमंत्री का ध्यान निजीकरण की नीतियों की ओर आकर्षित करना था, क्योंकि उनका मानना है कि यह निर्णय गरीब और पिछड़े क्षेत्रों की जनता के हित में नहीं है। दुबे ने कहा, "लगभग 1 लाख कर्मचारी, इंजीनियर और संविदा कर्मी लगातार शांतिपूर्ण विरोध कर रहे हैं।"

सरकार ने किया सख्त रुख अपनाया

प्रदेश सरकार ने 7 दिसंबर 2024 को लागू किए गए एसेंशियल सर्विसेज मेंटेनेंस एक्ट (एस्मा) का सहारा लेकर कार्य बहिष्कार को गंभीर रूप से लिया। 500 से अधिक इंजीनियरों को नोटिस जारी कर कार्रवाई की चेतावनी दी गई। साथ ही, कर्मचारियों को बर्खास्त करने और उनकी व्यक्तिगत फाइलों में नकारात्मक रिकॉर्ड दर्ज करने का भी निर्देश दिया गया है, जो उनकी पदोन्नति और अन्य लाभों को प्रभावित कर सकता है।

प्रशासन की कड़ी कार्रवाई के बाद बिजली कर्मचारी विरोध स्थगित

प्रशासन ने सभी जिलाधिकारियों और पुलिस अधिकारियों को कड़ी निगरानी और कानून व्यवस्था बनाए रखने के निर्देश दिए हैं। बिजली आपूर्ति बाधित करने वालों पर सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया गया। इन कड़े कदमों के चलते कर्मचारी अपने विरोध प्रदर्शन को फिलहाल स्थगित करने पर मजबूर हुए हैं।

प्रबंधन ने वैकल्पिक व्यवस्थाएं कीं तैया

उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) ने कार्य बहिष्कार की स्थिति से निपटने के लिए 7000 आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के अलावा आईटीआई और पॉलिटेक्निक के लगभग 2000 छात्रों को भी प्रशिक्षित किया है, ताकि आपूर्ति में किसी भी तरह की बाधा न आए।

निजीकरण के खिलाफ उपभोक्ता परिषद ने याचिका दायर की

इसी बीच, राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग में निजीकरण की प्रक्रिया को असंवैधानिक बताते हुए रोक लगाने की मांग की है। परिषद ने हरियाणा विद्युत नियामक आयोग के मॉडल का हवाला देते हुए कहा है कि निजीकरण से पहले कंपनियों की वित्तीय स्थिति की स्वतंत्र और निष्पक्ष समीक्षा होनी चाहिए। परिषद का दावा है कि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 131 का दुरुपयोग किया जा रहा है, क्योंकि यह धारा बार-बार निजीकरण के लिए नहीं बनाई गई थी।

कर्मचारियों के प्रमुख आरोप और प्रबंधन का पक्ष

कर्मचारियों का आरोप है कि निजीकरण से उनकी नौकरियां खतरे में हैं और संविदा कर्मचारियों की छंटनी होगी। साथ ही, वे कहते हैं कि निजी कंपनियों के आने से बिजली की दरें बढ़ेंगी, जैसा कि अन्य राज्यों के उदाहरणों में देखा गया है। इसके अलावा, वे पावर कॉरपोरेशन की संपत्तियों को उचित मूल्यांकन के बिना सौंपे जाने का विरोध कर रहे हैं। वहीं, प्रबंधन का कहना है कि निजीकरण से तकनीकी उन्नयन होगा और उपभोक्ताओं को बेहतर और निरंतर बिजली आपूर्ति मिलेगी। उन्होंने कर्मचारियों को भरोसा दिलाया है कि उनके प्रोन्नति, रिटायरमेंट लाभ और रियायती बिजली जैसी सुविधाएं सुरक्षित रहेंगी।

अगला कदम क्या होगा?

इस विवाद की निगरानी अब नियामक आयोग करेगा, जो इस मामले में स्वतंत्र समीक्षा के बाद ही आगे का निर्णय लेगा। कर्मचारी और उपभोक्ता दोनों ही इस प्रक्रिया पर नजर बनाए हुए हैं। यूपी में बिजली निजीकरण को लेकर जारी यह विवाद सामाजिक और आर्थिक दोनों ही स्तरों पर महत्वपूर्ण है। आगे की कार्रवाई और प्रशासन एवं कर्मचारियों के बीच वार्ता से ही इस गतिरोध का समाधान संभव होगा।

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