शहर की धुंधली होती हवा और गिरती वायु गुणवत्ता पर लगाम लगाने के लिए प्रशासन ने सख्त कदम उठाने का मन बना लिया है। जिलाधिकारी सूर्यपाल गंगवार ने एक समीक्षा बैठक में लखनऊ के प्रदूषण स्तर को सुधारने की दिशा में ठोस रणनीति बनाई, जिसमें तालकटोरा क्षेत्र की औद्योगिक इकाइयों के संचालन का समय अलग-अलग तय करने का आदेश दिया गया। इसके साथ ही, स्कूली छुट्टियों के समय में भी बदलाव किया जाएगा ताकि बच्चों का स्वास्थ्य सुरक्षित रहे। इस बैठक में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, इंडस्ट्रीज एसोसिएशन और विभिन्न सरकारी विभागों के अधिकारियों ने मिलकर हवा को साफ और शुद्ध बनाने की योजनाओं पर चर्चा की।
तालकटोरा क्षेत्र में उद्योगों का अलग-अलग समय पर संचालन-
तालकटोरा क्षेत्र की औद्योगिक इकाइयों को अगले 15 दिनों तक रोटेशन के आधार पर अलग-अलग समय पर चलाने का निर्देश दिया गया है। जिलाधिकारी ने यह निर्णय लिया है कि अगर इससे वायु गुणवत्ता सूचकांक में सुधार होता है, तो इस रोटेशन को अगले तीन महीनों के लिए बढ़ाया जाएगा। वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए यह कदम सर्दियों में धुएं और स्मॉग की समस्या को देखते हुए उठाया गया है। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा तैयार कार्ययोजना के तहत लखनऊ सहित अन्य शहरी क्षेत्रों में प्रदूषण नियंत्रण के प्रयास किए जा रहे हैं।
स्कूलों और अन्य विभागों के लिए भी निर्देश जारी-
प्रशासन ने शिक्षा और नगर निगम विभाग के लिए भी विशेष दिशा-निर्देश दिए हैं:
जिलाधिकारी ने क्षेत्र के स्कूलों की छुट्टियों के समय में बदलाव के आदेश दिए हैं ताकि छात्रों की सेहत पर प्रदूषण का कम असर पड़े।
- निर्माण कार्यों पर नियंत्रण:
कंस्ट्रक्शन साइट्स पर जमा कचरे को नगर निगम के सीएंडडी वेस्ट प्लांट पर पहुंचाने के निर्देश दिए गए हैं।
नगर निगम को कच्ची सड़कों पर फुटपाथ निर्माण और धूल को कम करने के लिए जल छिड़काव का निर्देश दिया गया है। साथ ही, हॉटस्पॉट्स पर एंटी-स्मॉग गन का भी प्रयोग करने को कहा गया है।
उद्यमियों की असहमति: केवल उद्योग ही क्यों निशाने पर?
तालकटोरा औद्योगिक क्षेत्र के उद्योगपतियों ने इन निर्देशों पर अपनी नाराजगी जाहिर की है। इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (IIA) के लखनऊ चैप्टर के चेयरमैन विकास खन्ना ने कहा कि प्रदूषण के लिए सिर्फ औद्योगिक इकाइयों को जिम्मेदार ठहराना न्यायसंगत नहीं है। उनका कहना है कि तालकटोरा क्षेत्र में लगाए गए प्रदूषण मापक यंत्र के अंतर्गत 5 किलोमीटर की परिधि आती है, जिसमें चारबाग, आलमबाग, ऐशबाग, चौक जैसे इलाके शामिल हैं। इन क्षेत्रों में वाहनों के जाम से उत्पन्न प्रदूषण का असर भी इसी मापक पर दिखाई देता है।
"वाहनों का प्रदूषण कम करें, उद्योगों को दोष न दें"
उद्योगपतियों का तर्क है कि दिवाली की छुट्टी में भी औद्योगिक इकाइयाँ बंद थीं, फिर भी प्रदूषण स्तर में कोई कमी नहीं आई। उन्होंने सवाल उठाया कि वाहनों के प्रदूषण और सड़क निर्माण के चलते उड़ती धूल को क्यों नजरअंदाज किया जा रहा है? एसोचैम के आईटी एंड एग्रीकल्चर सेल के चेयरमैन संदीप सक्सेना ने भी इन नियमों को अव्यावहारिक बताते हुए कहा कि अलग-अलग समय पर इंडस्ट्री को चलाने से श्रमिकों को भी दिक्कतें होंगी, जिससे उत्पादन में कमी आ सकती है।
नए नियमों का संभावित प्रभाव: क्या हवा होगी साफ?
प्रशासन द्वारा दिए गए दिशा-निर्देश प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माने जा सकते हैं। हालांकि, इस योजना का सफल होना प्रशासन, उद्योग और जनता के संयुक्त प्रयास पर निर्भर करता है। इंडस्ट्रीज एसोसिएशन का मानना है कि वाहनों के प्रदूषण पर भी ध्यान देना आवश्यक है। नगर निगम द्वारा कच्ची सड़कों पर जल छिड़काव और नियमित सफाई जैसे उपायों से भी कुछ हद तक वायु गुणवत्ता में सुधार की उम्मीद की जा रही है।
क्या लखनऊ में प्रदूषण नियंत्रण के प्रयास होंगे सफल?
लखनऊ में प्रदूषण के खिलाफ उठाए गए ये कदम निश्चित रूप से सकारात्मक पहल हैं, लेकिन अकेले उद्योगों पर निर्भरता से अपेक्षित परिणाम मिलना कठिन हो सकता है। वायु प्रदूषण के इस संकट से निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें वाहन प्रदूषण, सड़क निर्माण की धूल और कूड़ा जलाने पर सख्त कार्रवाई शामिल है।