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भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला आज (10 जून) अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की अपनी ऐतिहासिक यात्रा के लिए रवाना हो रहे हैं। Axiom-4 मिशन के तहत अंतरिक्ष में जाने वाले शुभांशु दूसरे भारतीय बनेंगे। वे 14 दिन तक ISS पर रहकर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के लिए कई वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे। इनमें सबसे दिलचस्प प्रयोग टार्डिग्रेड्स (Water Bears) से जुड़ा है, जिन्हें वे अपने साथ ले जा रहे हैं।
क्यों खास हैं वाटर बियर?
टार्डिग्रेड्स बेहद छोटे जलीय जीव हैं, जो करीब 600 मिलियन वर्षों से धरती पर मौजूद हैं। ये सूक्ष्म-जीव हर परिस्थिति में जीवित रहने की क्षमता रखते हैं — चाहे वह गहरा समुद्र हो, ऊंचे पहाड़ हों या फिर अंतरिक्ष का कठोर वातावरण। यही वजह है कि वैज्ञानिकों ने इन्हें इस मिशन में शामिल किया है।
कितना सह सकते हैं टार्डिग्रेड्स?
तापमान: माइनस 272.95 डिग्री सेल्सियस से लेकर 150 डिग्री सेल्सियस तक सह सकते हैं।
दबाव: 40,000 किलोपास्कल (समुद्र की सतह के नीचे 4 किमी के बराबर)।
विकिरण: अंतरिक्ष की घातक पराबैंगनी किरणों को भी झेल सकते हैं।
क्यों ले जाए जा रहे हैं अंतरिक्ष में?
वैज्ञानिक समझना चाहते हैं कि ये जीव अंतरिक्ष में किस तरह खुद को जीवित रखते हैं। इससे अंतरिक्ष यात्रियों के लिए नई सुरक्षा रणनीतियां तैयार की जा सकेंगी। इसके अलावा इस अध्ययन से लचीली फसलें, बेहतर सनस्क्रीन और मेडिकल रिसर्च में भी मदद मिल सकती है। टार्डिग्रेड्स कुछ खास प्रोटीन — साइटोप्लाज्मिक प्रोटीन — का उत्पादन करते हैं, जो उन्हें कठोर परिस्थितियों में भी सुरक्षित रखता है। अंतरिक्ष में इस पर और गहराई से रिसर्च की जाएगी।
क्या है इनका इतिहास?
1773 में जर्मन जीवविज्ञानी जोहान अगस्त एफ्रेम गोजे ने इनकी खोज की थी। आज यह माना जाता है कि टार्डिग्रेड्स धरती पर अब तक की सभी पांच प्रमुख विलुप्ति घटनाओं को भी झेल चुके हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि मानव सभ्यता भी समाप्त हो जाए, तब भी ये जीव धरती पर मौजूद रह सकते हैं।
क्यों है यह मिशन अहम?
इस मिशन के जरिए भारतीय वैज्ञानिक वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष बायोलॉजी के क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं। साथ ही, भारत के गगनयान मिशन और भविष्य के अंतरिक्ष स्टेशनों के लिए यह प्रयोग महत्वपूर्ण डेटा उपलब्ध कराएगा।
Baten UP Ki Desk
Published : 10 June, 2025, 6:19 pm
Author Info : Baten UP Ki