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बिना खून निकाले पता लगाया जा सकता है हीमोग्लोबिन, भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाई ऐसी डिवाइस

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भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने हाल ही में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। भारतीय वैज्ञानिकों ने एक नॉन इनवेसिव हीमोग्लोबिन स्क्रीनिंग डिवाइस तैयार की है, जिससे बिना रक्त नमूना लिए किसी भी व्यक्ति में हीमोग्लोबिन का स्तर पता लगाया जा सकता है। इस तकनीक का मुख्य उद्देश्य रक्त परीक्षण में लगने वाले समय और संसाधनों को कम करना है, जिससे मरीजों को तेज और सटीक परिणाम मिल सके।

6 हजार यूनिट बचाया गया रक्त-

भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा एनीमिया की जांच के लिए नई तकनीक विकसित की है, जिससे 6 हजार यूनिट रक्त को बचाया जा चुका है। आईसीएमआर के मुताबिक, एनीमिया की जांच के लिए सामान्यत: व्यक्ति से सीरिंज के जरिये रक्त निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में लगभग तीन से दस मिलीलीटर रक्त लिया जाता है, जिसे प्रयोगशाला में जांचा जाता है और बचा हुआ रक्त चिकित्सकीय अपशिष्ट के रूप में फेंक दिया जाता है। इस पारंपरिक प्रक्रिया में समय, रक्त और बजट तीनों की काफी खर्च होते हैं।

हीमोग्लोबिन का स्तर जानने में मदद-

नई नॉन इनवेसिव डिवाइस इन सभी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती है। अब बिना रक्त निकाले ही हीमोग्लोबिन का स्तर जानने में मदद मिल सकती है, जिससे यह प्रक्रिया सरल, त्वरित और अधिक किफायती हो जाती है। इस नवाचार से स्वास्थ्य सेवाओं में एक महत्वपूर्ण बदलाव आने की उम्मीद है, जिससे मरीजों को अधिक सुविधाजनक और सटीक जांच मिल सकेगी।

महिलाएं हैं ज्यादा प्रभावित-

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (2019-21) के अनुसार, एनीमिया की व्यापकता पुरुषों (15-49 वर्ष) में 25.0% और महिलाओं (15-49 वर्ष) में 57.0% है। वहीं, किशोरों (15-19 वर्ष) में यह 31.1% और किशोरियों में 59.1% है। इसके अलावा, 15 से 49 वर्ष तक की 52.2% गर्भवती महिलाएं हीमोग्लोबिन के निम्न स्तर से ग्रस्त हैं, जिन्हें एनीमिया की श्रेणी में रखा जा सकता है। इसी तरह, छह से 59 माह तक के लगभग 67.1% बच्चे एनीमिया की चपेट में हैं।

कैसे काम करती है यह तकनीक-

यह तकनीक फोटोमीटर और कम्प्यूटर विजन का उपयोग करती है, जिससे यह रक्त सैंपल का विश्लेषण करके एनीमिया की मौजूदगी का पता लगाती है। इसके अलावा, इसमें इमेज प्रोसेसिंग और मशीन लर्निंग के संयोजन का भी उपयोग किया गया है, जिससे यह परिणामों को और भी अधिक सटीक और विश्वसनीय बनाता है।

कार्बन उत्सर्जन को कम करने का दावा-

आईसीएमआर के अनुसार, नॉन इनवेसिव हीमोग्लोबिन स्क्रीनिंग डिवाइस को जमीनी स्तर पर ले जाने के लिए बॉश और इजेआरएक्स कंपनी के साथ एक समझौता किया गया है। इस पहल के अंतर्गत अब तक 24 लाख से अधिक लोगों में एनीमिया की जांच की जा चुकी है, जिसके परिणामस्वरूप 6,075 यूनिट रक्त की बचत हुई है। कुल 24,49,210 लोगों में से 16.28 लाख महिलाएं और 8.20 लाख पुरुष शामिल हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से लगभग 46 टन कार्बन उत्सर्जन को कम करने का दावा किया गया है।

भविष्य की संभावनाएं-

इस तकनीक का उपयोग भविष्य में बड़े पैमाने पर किया जा सकता है। इसके व्यापक उपयोग से न केवल एनीमिया के निदान में तेजी आएगी, बल्कि इससे रक्त की भी काफी बचत होगी, जो आपातकालीन स्थितियों और अन्य चिकित्सा आवश्यकताओं में महत्वपूर्ण हो सकता है। भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई यह नई तकनीक स्वास्थ्य क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इसके उपयोग से एनीमिया के निदान की प्रक्रिया में न केवल तेजी आएगी, बल्कि इससे लाखों लोगों को समय पर इलाज भी मिल सकेगा। इस तकनीक से भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में एक नई क्रांति की उम्मीद की जा रही है, जो आने वाले समय में और भी अधिक महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।

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