जलवायु परिवर्तन केवल ग्लेशियरों के पिघलने या समुद्र के बढ़ते स्तर तक सीमित नहीं रहा, अब इसका सीधा असर मानव जीवन की सबसे मूलभूत जरूरत -रक्त की उपलब्धता-पर दिखने लगा है। हाल ही में द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक शोध इस खतरनाक ट्रेंड की ओर इशारा करता है।
बढ़ती गर्मी और बाढ़ ने थमा दिया रक्तदान का प्रवाह
शोध के अनुसार अत्यधिक गर्मी, अनियमित बारिश, तूफान और जंगलों की आग जैसी चरम मौसमीय घटनाएं अब रक्तदान के लिए भी चुनौती बन रही हैं।
इन आपदाओं से:
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रक्तदान शिविर रद्द हो रहे हैं,
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रक्तदाता प्रभावित हो रहे हैं,
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और रक्त वितरण में बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं।
रक्त की शेल्फ लाइफ सीमित होती है, इसलिए समय पर इसका संग्रहण और आपूर्ति अत्यावश्यक है।
मच्छर जनित और अदृश्य बीमारियों से बढ़ी रक्त की मांग
मौसमी बदलावों के कारण डेंगू, मलेरिया, वेस्ट नाइल वायरस जैसी बीमारियां नए क्षेत्रों में फैल रही हैं, जिससे रक्त की मांग में भारी वृद्धि हो रही है।
इसके अलावा:
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हृदय रोग,
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गर्भावस्था संबंधी जटिलताएं,
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सिकल सेल एनीमिया जैसी स्थितियां भी रक्त की अधिक आवश्यकता उत्पन्न कर रही हैं।
उधर, गर्मी से उत्पन्न मानसिक तनाव और शारीरिक कमजोरी ‘जलवायु चिंता’ का कारण बन रही है, जिससे रक्तदान करने वालों की संख्या में गिरावट आ रही है।
बाधित हो रही है रक्त आपूर्ति की चेन
जलवायु आपदाएं न केवल लोगों की आवाजाही को बाधित करती हैं, बल्कि रक्त एकत्र करने, उसे जांचने, भंडारण करने और अस्पतालों तक पहुंचाने की पूरी श्रृंखला को भी संकट में डाल देती हैं। शोधकर्ताओं ने चेताया है कि यह दोहरा संकट — रक्तदाताओं की घटती संख्या और बढ़ती मांग — भविष्य में गंभीर रक्त की किल्लत का कारण बन सकता है।
अब जरूरी है लचीलापन और नवाचार
परंपरागत रक्त आपूर्ति प्रणाली अब इस चुनौती का सामना अकेले नहीं कर सकती। इसके लिए अब ज़रूरत है नई रणनीतियों की:
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आपात चेतावनी प्रणालियों का विकास,
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बीमारियों की सतर्क निगरानी,
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रक्तदान के नियमों में लचीलापन,
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और वैकल्पिक परिवहन साधनों की योजना।
एकजुटता और तैयारी ही है समाधान
रक्त केवल एक द्रव्य नहीं, बल्कि जीवन का आधार है। यदि हमें भविष्य की स्वास्थ्य आपात स्थितियों से बचना है, तो हमें अभी से ही एक जलवायु-संवेदनशील और उत्तरदायी रक्त आपूर्ति प्रणाली की नींव रखनी होगी।