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चौंकाने वाले आंकड़े, हजार में से 22 शिशु नहीं देख पाते जन्म की रोशनी

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भारत के छह राज्यों में किए गए एक हालिया अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि जन्म से पहले लापरवाही और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण 1000 में से 22 शिशु मौत के शिकार हो रहे हैं। यह शोध हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम, मेघालय और महाराष्ट्र में हुआ है। कुल 216 मृत शिशुओं पर किए गए इस अध्ययन में आयरन और फॉलिक एसिड की कमी, गर्भस्थ शिशु के विकास में बाधाएं, और स्वास्थ्य सेवाओं में कमियां प्रमुख कारणों के रूप में सामने आई हैं।

छह राज्यों के 13 अस्पतालों में हुआ अध्ययन-

इस व्यापक अध्ययन में अक्तूबर 2018 से सितंबर 2023 के बीच गर्भवती महिलाओं को शामिल किया गया। शोध के लिए 13 अस्पतालों में भर्ती 9823 महिलाओं के डेटा का विश्लेषण किया गया, जिन्होंने शिशुओं को जन्म दिया। इनमें से 216 शिशु मृत अवस्था में पाए गए, जिनमें से 48 प्रसव पूर्व और 168 प्रसव के दौरान मौत के शिकार हुए। यह आंकड़ा प्रति 1000 शिशुओं पर 22 की दर से चौंकाने वाला है।

मृत शिशुओं के लिए प्रमुख कारण-

अध्ययन में पाया गया कि मृत शिशुओं की संख्या बढ़ने के पीछे कई जोखिम कारक जिम्मेदार हैं। इनमें प्रमुख रूप से चार से कम प्रसव पूर्व जांच करवाना, गर्भावस्था के दौरान आयरन और फॉलिक एसिड की कमी, तीसरी तिमाही में गंभीर एनीमिया, गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप जैसी जटिलताएं और समय से पहले जन्म शामिल हैं। कम वजन के साथ जन्म लेने वाले शिशु भी इन जोखिमों का सामना कर रहे थे।

शिशु मृत्यु दर में कमी के लिए क्या है जरूरी?

इस अध्ययन का उद्देश्य शिशु मृत्यु दर के कारणों का गहराई से पता लगाना था, ताकि भविष्य में इन कारणों को दूर कर शिशुओं की मौत की दर को कम किया जा सके। उन्होंने कहा कि उचित एहतियात और स्वास्थ्य सेवाओं के बेहतर प्रावधान से इस मृत्यु दर को कम किया जा सकता है। अध्ययन में आगे भी इस पर शोध जारी रहेगा ताकि इस गंभीर समस्या का समाधान निकाला जा सके।

आवश्यक एहतियात से हो सकता है सुधार-

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर प्रसव पूर्व जांचों में लापरवाही न बरती जाए, गर्भवती महिलाओं को आयरन और फॉलिक एसिड की खुराक दी जाए और समय पर चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध कराई जाए, तो शिशु मृत्यु दर में कमी लाई जा सकती है। इसके अलावा, स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता और गर्भवती महिलाओं की नियमित जांच से भी इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है।

गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण-

यह अध्ययन एक बार फिर इस बात की ओर इशारा करता है कि प्रसव पूर्व और प्रसव के दौरान सही देखभाल और चिकित्सा सेवाओं की उपलब्धता कितनी जरूरी है। गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण पर ध्यान देकर और स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाकर शिशु मृत्यु दर को कम किया जा सकता है।

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