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क्या AI ने फीकी कर दी है मेटावर्स की चमक? इसे नज़रअंदाज़ करना हो सकता है एक बड़ी भूल!

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कल्पना कीजिए—आप अपने लिविंग रूम के सोफे पर बैठे हैं, लेकिन एक ही समय में न्यूयॉर्क में एक कॉर्पोरेट मीटिंग में भी मौजूद हैं, टोक्यो की किसी आर्ट गैलरी में घूम रहे हैं और दिल्ली में दोस्तों के साथ गपशप कर रहे हैं। यह कोई साइंस फिक्शन नहीं, बल्कि मेटावर्स की सच्चाई है—एक वर्चुअल दुनिया, जहां अवतार के रूप में लोग डिजिटल रूप से जुड़ सकते हैं।

मेटावर्स: एक बार फिर से चर्चा में

1992 में लेखक नील स्टीफेंसन ने ‘स्नो क्रैश’ में जिस कल्पना को गढ़ा था, वह अब हकीकत बन रही है। मेटावर्स एक आभासी ब्रह्मांड है, जो लोगों को न सिर्फ वर्चुअल रूप से जोड़ता है, बल्कि उन्हें एक नए डिजिटल अनुभव की दुनिया में ले जाता है। रिपोर्टों के अनुसार, वर्ष 2024 में वैश्विक मेटावर्स बाज़ार 105 अरब डॉलर तक पहुंच चुका था और 2030 तक इसके 11 खरब डॉलर के आंकड़े को छूने की संभावना है। मार्क जुकरबर्ग की कंपनी ‘फेसबुक’ ने 2021 में अपने नाम को ‘मेटा’ कर मेटावर्स की ओर झुकाव स्पष्ट किया और इस दिशा में अब तक 10 अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश कर चुकी है।

कहां-कहां मेटावर्स हो रहा है प्रयोग

  • गेमिंग सेक्टर में रोब्लोक्स, एपिक गेम्स जैसी कंपनियों ने वर्चुअल दुनिया में भारी निवेश किया है।

  • शिक्षा क्षेत्र में मेटा और VictoryXR ने यूरोपीय यूनिवर्सिटीज़ के वर्चुअल कैंपस बनाए हैं।

  • हेल्थकेयर में वीआर आधारित टेलीहेल्थ सेवाएं सामने आई हैं।

  • ब्रांडिंग में नाइके, गुच्ची, कोका-कोला जैसे दिग्गजों ने अपने वर्चुअल शोरूम बनाए हैं।

  • भारत में, युग मेटावर्स पर एक कपल की वर्चुअल शादी सुर्खियों में रही थी।

सरकारी स्तर पर भी भारत में XR Startup Program की शुरुआत हो चुकी है, जिसमें अमेरिकी कंपनी मेटा साझेदार बनी है। IIT गुवाहाटी का ‘ज्ञानधारा’ प्रोजेक्ट इसे स्कूली शिक्षा से भी जोड़ रहा है।

लेकिन क्या एआई ने मेटावर्स की चमक छीन ली है?

कोविड-19 के दौरान मेटावर्स को लेकर वैश्विक कंपनियों में जबरदस्त उत्साह था। परन्तु, 2020 से अब तक जुकरबर्ग की ‘रियलिटी लैब्स’ को 60 अरब डॉलर का घाटा झेलना पड़ा है। इसके समानांतर, जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग तकनीकों ने कारोबार, स्वास्थ्य और शिक्षा सहित लगभग हर सेक्टर में तेज़ी से अपने पैर पसार लिए हैं। आज की तारीख में कंपनियां मेटावर्स की तुलना में एआई में अधिक निवेश कर रही हैं। कारण स्पष्ट है—एआई अधिक प्रभावी, किफायती और तुरंत परिणाम देने वाली तकनीक बन चुकी है।

भारत में चुनौतियां भी कम नहीं

  • मेटावर्स की पहुंच अभी भी शहरी भारत तक सीमित है।

  • ग्रामीण क्षेत्रों में हाई-स्पीड इंटरनेट और हार्डवेयर की कमी बड़ी बाधा है।

  • महंगे एआर-वीआर उपकरण, और हाल में सामने आए साइबर उत्पीड़न के मामले, मेटावर्स के लिए एक बड़ा अवरोध हैं।

क्या मेटावर्स खत्म हो गया है?

बिलकुल नहीं। भले ही एआई ने अभी मेटावर्स की लोकप्रियता को कुछ समय के लिए पीछे धकेल दिया हो, लेकिन मेटावर्स एक लंबी रेस का घोड़ा है। जैसे-जैसे हार्डवेयर किफायती होगा और इंटरनेट की पहुंच बढ़ेगी, वैसे-वैसे यह तकनीक फिर से गति पकड़ सकती है।

क्या मेटावर्स को नज़रअंदाज़ करना पड़ेगा भारी?

मेटावर्स को नजरअंदाज करना तकनीकी रणनीति में एक बड़ी चूक साबित हो सकती है। आने वाले दशक में जब एआई और मेटावर्स एक-दूसरे के पूरक बनेंगे, तब एक नए डिजिटल युग की शुरुआत होगी—जहां कल्पना और वास्तविकता के बीच की रेखा धुंधली हो जाएगी। क्या भारत इस डिजिटल रेस में अग्रणी बन पाएगा? या हम एक और तकनीकी क्रांति को सिर्फ देखकर ही संतुष्ट हो जाएंगे? यह वक्त ही बताएगा।

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