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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से ऊर्जा खपत के चौंकाने वाले आंकड़े, भारी मात्रा में हो रहा है बिजली-पानी का उपयोग

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कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनती जा रही है। वर्चुअल असिस्टेंट से लेकर स्मार्ट होम तक, हर जगह एआई का उपयोग हो रहा है। चाहे चैट-जीपीटी जैसे एआई जनित प्लेटफॉर्म पर जटिल प्रश्नों के उत्तर जानने हों, या गूगल और एलेक्सा जैसे वर्चुअल असिस्टेंट्स के माध्यम से केवल अपनी आवाज से कोई कार्य कराना हो। एआई की यह तकनीक बेहद अचंभित करने वाली है। इस तेजी से प्रगति कर रही तकनीक के कुछ अन्य पहलू भी हो सकते हैं जो पर्यावरण और मानव सभ्यता के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं। क्या हम इस ओर ध्यान दे रहे हैं?

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से ऊर्जा खपत के चौंकाने वाले आंकड़े-

एआई के अत्यधिक उपयोग से ऊर्जा की खपत, डाटा सेंटरों के बढ़ते कार्बन उत्सर्जन, और गोपनीयता तथा सुरक्षा संबंधित चिंताओं के कारण इसके नकारात्मक प्रभावों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस चमत्कारी तकनीक का भविष्य कैसा होगा, यह हमारे समझदारीपूर्ण उपयोग पर निर्भर करेगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के उपयोग में हो रही तेजी के साथ ही इसके ऊर्जा खपत के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। एआई तकनीक का इस्तेमाल बढ़ने के साथ बिजली और पानी की भारी मात्रा में खपत हो रही है, जो पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है।

गूगल की वार्षिक पर्यावरण रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे-

गूगल की हालिया वार्षिक पर्यावरण रिपोर्ट में 2023 के दौरान कंपनी के डाटा केंद्रों के कार्बन उत्सर्जन में 13% की वृद्धि दर्ज की गई है, जो कि 2022 की तुलना में कहीं अधिक है। यह वृद्धि मुख्य रूप से डाटा केंद्रों और आपूर्ति शृंखलाओं में बिजली की खपत बढ़ने के कारण हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में गूगल के डाटा केंद्रों ने पिछले वर्ष की तुलना में 17% अधिक बिजली का उपयोग किया। विशेषज्ञों का मानना है कि एआई टूल्स के बढ़ते उपयोग से यह आंकड़ा भविष्य में और बढ़ सकता है।

गूगल खोज की तुलना में 10 से 33 गुना अधिक ऊर्जा की खपत-

एआई तकनीक का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में परिवर्तनकारी बदलाव लाने के लिए किया जा रहा है, जिनमें जलवायु परिवर्तन से जुड़े समाधान भी शामिल हैं। हालांकि, एआई तकनीक के विस्तार ने एक नई चुनौती को जन्म दिया है। बढ़ते कार्बन उत्सर्जन का खतरा। अध्ययनों के अनुसार, एआई चैटबॉट जैसे चैट-जीपीटी पर एक साधारण सवाल पूछने में गूगल खोज की तुलना में 10 से 33 गुना अधिक ऊर्जा की खपत होती है। इसके अलावा, इमेज आधारित प्लेटफॉर्म्स पर तो इससे भी अधिक ऊर्जा खर्च होती है। एआई मॉडल सामान्य गूगल खोज की तुलना में अधिक डाटा प्रोसेस और फिल्टर करते हैं, जिससे अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस बढ़ी हुई ऊर्जा खपत के चलते डाटा केंद्रों को ठंडा रखने के लिए अधिक शक्तिशाली एयर कंडीशनिंग और अन्य ठंडे उपायों का सहारा लिया जाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, रिवरसाइड के एक अध्ययन के अनुसार, 2022 में गूगल ने अपने डाटा केंद्रों को ठंडा रखने के लिए लगभग 20 अरब लीटर ताजे पानी का उपयोग किया। वहीं, माइक्रोसॉफ्ट की जल खपत में भी पिछले वर्ष की तुलना में 34% की वृद्धि देखी गई।

बिजली की कुल खपत का लगभग 1 से 1.3 प्रतिशत-

वर्तमान में, डाटा केंद्रों की बिजली खपत वैश्विक बिजली की कुल खपत का लगभग 1 से 1.3 प्रतिशत है। लेकिन जैसे-जैसे एआई टूल्स का उपयोग बढ़ता जा रहा है, यह खपत भी बढ़ने की संभावना है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के अनुसार, यह आंकड़ा बढ़कर तीन प्रतिशत तक पहुंच सकता है। दूसरी ओर, इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या में वृद्धि के बावजूद, ई-वाहनों की वैश्विक बिजली खपत केवल 0.5 प्रतिशत है। कुछ देशों में डाटा केंद्रों की ऊर्जा खपत राष्ट्रीय बिजली मांग के दस प्रतिशत तक पहुंच गई है। उदाहरण के लिए, आयरलैंड जैसे देश, जहां टैक्स में छूट और अन्य प्रोत्साहनों के कारण डाटा केंद्रों की संख्या असामान्य रूप से अधिक हो गई है। आयरलैंड सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, यहां डाटा केंद्रों की बिजली खपत राष्ट्रीय मांग का 18 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है।

ऊर्जा और जल खपत पर चिंता बढ़ी-

भारत में एआई और डाटा केंद्रों का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है, जिससे इनकी ऊर्जा और जल खपत पर चिंता बढ़ रही है। भारत की सिलिकॉन वैली कहे जाने वाले बंगलूरू को पानी की गंभीर कमी का सामना करना पड़ रहा है, और यहां 16 डाटा केंद्र संचालित हैं। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, बंगलूरू के अलावा दिल्ली, चेन्नई, और मुंबई जैसे महानगरों में भी डाटा केंद्रों में पानी की खपत में बढ़ोतरी देखी जा रही है।

भारत में वर्तमान में डाटा केंद्रों की क्षमता 2,000 मेगावाट-

भारत में वर्तमान में डाटा केंद्रों की क्षमता 2,000 मेगावाट है, जो 2029 तक बढ़कर 4,770 मेगावाट तक पहुंचने की उम्मीद है। इससे पानी की कमी से जूझ रहे बंगलूरू की डिजिटल महत्वाकांक्षाओं पर संकट मंडरा सकता है। इस चुनौती का सामना करने के लिए गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां डाटा केंद्रों के शीतलन के लिए अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रण कर रही हैं, जबकि भारतीय डाटा केंद्र अब भी ताजे पानी पर निर्भर हैं।

डेटा केंद्रों में पानी की खपत को लेकर पर्याप्त आंकड़े-

डेटा केंद्रों में पानी की खपत को लेकर अभी भी पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। डेस मोइन्स नदी पर एसोसिएटेड प्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के आयोवा शहर में स्थित ओपनएआई के जीपीटी-4 मॉडल को सेवा देने वाला एक डेटा केंद्र उस जिले की पानी की आपूर्ति का लगभग 6 प्रतिशत उपयोग करता है। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के एक अध्ययन के मुताबिक, एआई के कॉर्पोरेट और औद्योगिक कार्यों में उपयोग से 2030 तक वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में पांच से दस प्रतिशत की कमी हो सकती है, साथ ही 1300 अरब से 2600 अरब डॉलर तक की राजस्व बचत भी संभव है। इन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, हमें एआई के विकास के साथ-साथ इसके पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों पर भी ध्यान देना चाहिए। इससे हम एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए एआई के फायदों का लाभ उठा सकते हैं और इसके पर्यावरणीय असर को कम कर सकते हैं।

सतत विकास की आवश्यकता-

पर्यावरण पर एआई के इस प्रभाव को कम करने के लिए सतत विकास पर जोर देना आवश्यक है। ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का अधिक उपयोग, डेटा सेंटरों की ऊर्जा दक्षता में सुधार, और जल संरक्षण के उपायों को अपनाने की जरूरत है। इसके साथ ही, एआई के उपयोग में संतुलन और जिम्मेदारी की आवश्यकता है ताकि तकनीकी विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखा जा सके। एआई तकनीक के बढ़ते उपयोग के साथ इसके ऊर्जा खपत के आंकड़े चिंताजनक हैं। बिजली और पानी की अत्यधिक खपत से पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में जरूरी है कि एआई के उपयोग के साथ-साथ पर्यावरण पर भी ध्यान दिया जाए और सतत विकास के उपायों को अपनाया जाए।

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