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रेफरी की तरह सख्त! लेकिन न्यायपूर्ण होती है विधानसभा स्पीकर की भूमिका...जानिए कैसे होता है चुनाव

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हाल ही में आये दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 48 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि आम आदमी पार्टी (आप) को 22 सीटों से संतोष करना पड़ा। चुनाव के बाद विधानसभा की पहली आधिकारिक प्रक्रिया के तहत स्पीकर का चुनाव हुआ, जिसमें विजेंदर गुप्ता को दिल्ली विधानसभा का नया स्पीकर चुना गया।

कैसे चुना जाता है विधानसभा का स्पीकर?

विधानसभा में स्पीकर का चुनाव संविधान के अनुच्छेद 178 के तहत होता है, जिसमें विधानसभा अपने सदस्यों में से एक स्पीकर और एक डिप्टी स्पीकर का चुनाव करती है। यह प्रक्रिया एक औपचारिक वोटिंग के जरिए पूरी की जाती है, जिसमें विधायकों द्वारा बहुमत के आधार पर निर्णय लिया जाता है। स्पीकर का चयन किसी कॉलेज के ग्रुप लीडर की तरह नहीं, बल्कि एक संवैधानिक प्रक्रिया के तहत होता है, जहां विधायकों द्वारा नामांकित उम्मीदवारों में से एक को चुना जाता है।

स्पीकर की भूमिका और शक्तियाँ

विधानसभा का स्पीकर सदन की कार्यवाही का संचालन करता है और अनुशासन बनाए रखने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाता है।

  • अनुच्छेद 179: इसके अनुसार, स्पीकर अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं या सदन द्वारा बहुमत से हटाए जा सकते हैं।

  • अनुच्छेद 180: अगर स्पीकर अनुपस्थित होते हैं, तो डिप्टी स्पीकर उनकी जगह सदन की कार्यवाही संभालते हैं।

  • अनुच्छेद 181: यदि स्वयं स्पीकर के खिलाफ कोई प्रस्ताव आता है, तो उन्हें अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ती है।

  • निर्णायक वोट (Casting Vote): किसी मुद्दे पर यदि वोटिंग के दौरान टाई की स्थिति उत्पन्न होती है, तो स्पीकर के पास निर्णायक वोट का अधिकार होता है।

स्पीकर की भूमिका निष्पक्ष और अनुशासनप्रिय 'रेफरी' की तरह होती है, जो सदन में किसी भी पक्षपात से परे रहकर कार्यवाही को सुचारू रूप से संचालित करता है।

स्पीकर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारत में स्पीकर की परंपरा ब्रिटेन के संसदीय ढांचे से प्रेरित है, जहां ‘Speaker of the House of Commons’ पद की शुरुआत 1377 में हुई थी। भारत में लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पदों की नींव 1921 में भारत सरकार अधिनियम, 1919 (मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार) के तहत रखी गई थी। उस समय इन्हें ‘प्रेसिडेंट’ और ‘डिप्टी प्रेसिडेंट’ कहा जाता था। स्वतंत्र भारत की पहली लोकसभा के स्पीकर जी.वी. मावलंकर थे।

विधानसभा स्पीकर: निष्पक्षता और प्रशासनिक दक्षता की परीक्षा

विधानसभा स्पीकर का पद महज एक औपचारिक पद नहीं है, बल्कि यह संवैधानिक व्यवस्था के सुचारू संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विजेंदर गुप्ता के स्पीकर बनने से दिल्ली विधानसभा में एक नई शुरुआत हुई है, और अब उनकी निष्पक्षता व प्रशासनिक क्षमता पर नजर रहेगी कि वे इस महत्वपूर्ण पद को कैसे संभालते हैं।

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