बड़ी खबरें

ट्रंप ने फिर उठाया भारत में चुनावी फंडिंग का मुद्दा; कांग्रेस ने बताया बेतुका, BJP ने कहा- हो जांच 10 घंटे पहले सीएम योगी का दावा- यूपी में छह करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से निकाला गया 10 घंटे पहले लखनऊ में बनेगा देश का पहला एआई सिटी, जमीन के लिए 5 करोड़ का प्रावधान 10 घंटे पहले अब कम जमीन पर भी बन सकेंगे ऊंचे भवन, गाजियाबाद में बसेगी नई टाउनशिप, योगी कैबिनेट ने लिए ये बड़े फैसले 10 घंटे पहले सीड्स फार्म से सस्ते होंगे बीज, आत्मनिर्भरता के साथ उपज भी बढ़ेगी, 250 करोड़ रुपये मंजूर 10 घंटे पहले

क्रिकेट के जरिए अंग्रेजों को मात देने की शुरुआत कैसे हुई?

Blog Image

भारतीय क्रिकेट का इतिहास केवल मैदान में चौकों-छक्कों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, संघर्ष और गर्व की एक अनूठी दास्तान भी है। भारत में क्रिकेट की शुरुआत भले ही अंग्रेजों के जरिए हुई हो, लेकिन इस खेल को पहले राजा-महाराजाओं और नवाबों का समर्थन मिला, और फिर यह पूरे देश का जुनून बन गया।

क्रिकेट और रजवाड़ों का रिश्ता

18वीं सदी में जब अंग्रेज भारत में क्रिकेट लेकर आए, तो इसे आम जनता नहीं बल्कि मुख्य रूप से रजवाड़े और नवाब खेलते थे। इसके पीछे दो बड़ी वजहें थीं –

  1. अंग्रेजों की रणनीति: ब्रिटिश शासन भारतीय राजघरानों को अपने करीब लाने और उनकी संस्कृति में घुलने के लिए क्रिकेट का इस्तेमाल करता था।
  2. रजवाड़ों की प्रतिष्ठा: राजा-महाराजाओं ने क्रिकेट को अंग्रेजों के साथ बराबरी का मंच माना और इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ा।

पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह, पटौदी परिवार और रणजीत सिंह जैसे नाम भारतीय क्रिकेट के शुरुआती दौर में महत्वपूर्ण रहे। इन्होंने न केवल खुद क्रिकेट खेला, बल्कि भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों पर भी पहुंचाया।

महाराजा, जिन्होंने भारतीय क्रिकेट को नया रूप दिया

रणजीत सिंह: भारतीय क्रिकेट के पहले सितारों में से एक, जिन्होंने इंग्लैंड के लिए खेलते हुए भारतीय प्रतिभा का लोहा मनवाया। उनके सम्मान में शुरू हुई रणजी ट्रॉफी आज भी भारतीय घरेलू क्रिकेट की सबसे प्रतिष्ठित प्रतियोगिता है।

महाराजा भूपिंदर सिंह: क्रिकेट को भारत में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए इन्होंने कई बड़े टूर्नामेंट प्रायोजित किए। 1893 में उनके द्वारा बनाया गया चैल क्रिकेट मैदान आज भी दुनिया का सबसे ऊंचा क्रिकेट मैदान माना जाता है।

पटौदी परिवार: नवाब पटौदी और उनके बेटे मंसूर अली खान पटौदी ने भारतीय क्रिकेट को नई दिशा दी और इसे एक प्रतिस्पर्धी खेल के रूप में विकसित किया।

क्रिकेट बना अंग्रेजों को उनकी भाषा में जवाब देने का माध्यम

धीरे-धीरे क्रिकेट केवल रजवाड़ों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह भारत के संघर्ष का प्रतीक भी बन गया। जब भारतीय टीम ने अंग्रेजी टीमों को हराना शुरू किया, तो यह केवल एक खेल की जीत नहीं थी, बल्कि ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक सांस्कृतिक विद्रोह था। 1886 में पारसी समुदाय ने इंग्लैंड का दौरा किया और अंग्रेजों के खिलाफ क्रिकेट खेला। यह भारतीय आत्मविश्वास की पहली बड़ी लहर थी।

आज क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं, एक भावना है

आज भारतीय क्रिकेट दुनिया में सबसे मजबूत टीमों में गिनी जाती है। लेकिन यह केवल खिलाड़ियों की मेहनत नहीं, बल्कि उस ऐतिहासिक सफर का नतीजा भी है जो रजवाड़ों से शुरू हुआ था। क्रिकेट सिर्फ 22 गज की पिच तक सीमित नहीं है, यह हमारी एकता, संघर्ष और गर्व का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि मैदान चाहे कोई भी हो – अगर जज्बा हो, तो जीत हमारी होती है।

अन्य ख़बरें

संबंधित खबरें