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दिल्ली-एनसीआर में भूकंप के झटकों से हड़कंप! कितनी बड़ी है खतरे की घंटी?

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17 फरवरी यानी सोमवार सुबह दिल्ली-एनसीआर में अचानक ज़मीन हिली और देखते ही देखते लोग अपने घरों से बाहर निकलने को मजबूर हो गए। अलसुबह आया यह भूकंप भले ही 4.0 तीव्रता का था, लेकिन इसके झटकों ने लोगों को गहरी चिंता में डाल दिया। आखिर इतनी कम तीव्रता के बावजूद झटके इतने तीव्र क्यों महसूस हुए? क्या दिल्ली और आसपास के इलाकों में इससे भी बड़े भूकंप का खतरा मंडरा रहा है?  भारत के नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी (NCS) के अनुसार, भूकंप का केंद्र दिल्ली के धौलाकुआं में था।

भूकंप सिर्फ झटके नहीं देता, बल्कि कई अनसुलझे सवालों को भी जन्म देता है। दुनिया के अन्य देशों, खासकर चीन, ने भूकंप के प्रभाव को कम करने के लिए आधुनिक तकनीक अपनाई है। क्या भारत भी इस दिशा में कोई ठोस कदम उठा सकता है? आइए जानते हैं कि विशेषज्ञ इस विषय में क्या कहते हैं और हम भविष्य में कैसे इस प्राकृतिक आपदा से बेहतर तरीके से निपट सकते हैं।

कम तीव्रता का भूकंप भी क्यों लगा तेज?

भूकंप की तीव्रता कम होने के बावजूद इसे इतना तीव्र क्यों महसूस किया गया? NCS के महानिदेशक ओपी मिश्र के अनुसार भूकंप का प्रभाव तीन कारकों पर निर्भर करता है:

  1. परिमाप (मैग्निट्यूड): जितनी अधिक तीव्रता होगी, उतना अधिक असर होगा।

  2. गहराई (डेप्थ): भूकंप जितनी गहराई में होगा, उसका प्रभाव उतना कम महसूस होगा।

  3. तीव्रता (इंटेंसिटी): सतह के करीब होने वाले भूकंप अधिक शक्तिशाली महसूस होते हैं।

चूंकि यह भूकंप मात्र 5 किमी की गहराई पर था, इसकी ऊर्जा पृथ्वी की सतह तक सीधे पहुंची, जिससे झटके अधिक महसूस किए गए।

क्या दिल्ली में बड़े भूकंप का खतरा है?

दिल्ली सिस्मिक ज़ोन-IV में आता है, जो मध्यम स्तर के भूकंपों के लिए संवेदनशील है। पिछले कुछ दशकों में इस क्षेत्र में 200 से अधिक छोटे भूकंप आए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, बड़े भूकंप की संभावना कम है, लेकिन छोटे भूकंप लगातार आते रहेंगे।

चीन का ‘स्पंज सिटी मॉडल’ – भूकंप से बचाव की अनोखी तकनीक

चीन ने हाल ही में ‘स्पंज सिटी मॉडल’ विकसित किया है, जो न केवल बाढ़ से बचाव करता है, बल्कि भूकंप के प्रभाव को भी कम करने में सहायक साबित हो रहा है।

स्पंज सिटी मॉडल भूकंप के प्रभाव को कैसे कम करता है?

  1. लचीली संरचना: इस मॉडल के तहत ऐसे निर्माण सामग्री का उपयोग किया जाता है, जो झटके सहन करने में सक्षम होती है।

  2. मिट्टी के कटाव को रोकना: पारंपरिक शहरों में भूकंप के दौरान जमीन धंसने और इमारतें गिरने का खतरा रहता है, जबकि स्पंज शहरों में यह प्रभाव कम होता है।

  3. कम प्रदूषण और पुनर्निर्माण में आसानी: इस मॉडल में उपयोग की जाने वाली सामग्री पुनः इस्तेमाल की जा सकती है, जिससे नुकसान कम होता है।

क्या भारत में भी इस तकनीक को अपनाया जा सकता है?

भारत में भी भूकंपरोधी इन्फ्रास्ट्रक्चर पर काम किया जा रहा है। सरकार 5 लाख से अधिक आबादी वाले और सिस्मिक जोन 3, 4, व 5 में आने वाले शहरों के लिए विशेष बिल्डिंग डिजाइन कोड तैयार कर रही है।

अन्य देशों की भूकंप से निपटने की तकनीक

  1. जापान: यहाँ की इमारतें इतनी मजबूत होती हैं कि 9 तीव्रता के भूकंप का भी सामना कर सकती हैं।

  2. ताइवान: सुनामी और भूकंप से निपटने के लिए आधुनिक टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाता है।

  3. अमेरिका: विशेष रूप से कैलिफोर्निया में अत्याधुनिक भूकंप-संवेदी संरचनाएं बनाई गई हैं।

भारत भी अपनी भूकंपरोधी संरचनाओं को और मजबूत करने की दिशा में निरंतर प्रयास कर रहा है, ताकि भविष्य में जान-माल की क्षति को न्यूनतम किया जा सके।

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