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दुनिया भर में छाया सांसों पर संकट! भारत में नौ करोड़ मरीजों की जरूरतें अधूरी...

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कल्पना कीजिए, एक ऐसी दुनिया जहाँ सांस लेना किसी की किस्मत पर निर्भर हो! यह कोई कोरी कल्पना नहीं, बल्कि कड़वी हकीकत है। मेडिकल ऑक्सीजन, जो जीवन की सबसे बुनियादी जरूरतों में से एक है, उसकी वैश्विक मांग तेजी से बढ़ रही है, लेकिन हर साल करीब पांच अरब लोग इसकी पर्याप्त आपूर्ति से वंचित रह जाते हैं। अकेले भारत में नौ करोड़ मरीजों को 5.68 लाख मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, लेकिन इसकी उपलब्धता एक चुनौती बनी हुई है।

लैंसेट मेडिकल आयोग की रिपोर्ट- 

द लैंसेट मेडिकल आयोग की ताज़ा रिपोर्ट ने इस संकट पर गहरी रोशनी डालते हुए दुनिया भर के देशों और निर्माताओं को 52 अहम सिफारिशें दी हैं। इन सुझावों में ऑक्सीजन की उपलब्धता को भविष्य की महामारियों से निपटने की रणनीति में शामिल करने पर ज़ोर दिया गया है। यह सिर्फ एक आंकड़ों की रिपोर्ट नहीं, बल्कि एक अलार्म है—एक चेतावनी कि अगर आज कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाला समय और भी भयावह हो सकता है!

राष्ट्रीय स्तर पर ऑक्सीजन नीति की जरूरत

विशेषज्ञों ने सभी देशों को राष्ट्रीय स्तर पर ऑक्सीजन उत्पादन और वितरण की प्रभावी नीति अपनाने की सलाह दी है। मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत न केवल सर्जरी और आपातकालीन स्थितियों में होती है, बल्कि अस्थमा, गंभीर चोटों और मातृ-शिशु देखभाल के लिए भी आवश्यक होती है।

गरीब देशों में मेडिकल ऑक्सीजन की भारी कमी-

लैंसेट की रिपोर्ट में बताया गया कि दुनिया के निम्न और मध्यम आय वाले देशों में मेडिकल ऑक्सीजन की उपलब्धता गंभीर रूप से प्रभावित है। ऐसे देशों में 82% मरीजों को मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत होती है, लेकिन उनमें से केवल तीन में से एक व्यक्ति को ही यह जीवन रक्षक गैस मिल पाती है।

भारत में दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन संकट-

2021 में भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर (डेल्टा वेरिएंट) के दौरान ऑक्सीजन की भारी कमी देखी गई, जिसके कारण कई लोगों की जान चली गई। विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि भविष्य में ऐसी स्थितियों को रोकने के लिए मेडिकल ऑक्सीजन की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी।

मेडिकल ऑक्सीजन की असमान आपूर्ति-

लैंसेट ग्लोबल हेल्थ कमीशन की यह रिपोर्ट पहली बार मेडिकल ऑक्सीजन की असमान आपूर्ति पर प्रकाश डालती है। रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में मेडिकल ऑक्सीजन की उपलब्धता में भारी असमानता है, जिससे गरीब और विकासशील देशों के मरीजों को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ता है।

संक्रामक बीमारियों के बढ़ते खतरे के प्रति सतर्कता आवश्यक-

विशेषज्ञों के अनुसार, कई वायरस महामारी फैलाने की क्षमता रखते हैं, जिससे भविष्य में वैश्विक स्वास्थ्य संकट पैदा हो सकता है। ऐसे में, मेडिकल ऑक्सीजन और अन्य जीवन रक्षक संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने की दिशा में पहले से तैयारी करना अनिवार्य है।

वैश्विक सहयोग और सरकारों की भूमिका-

रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि सरकारें, उद्योग, और वैश्विक स्वास्थ्य एजेंसियां मिलकर काम करें ताकि मेडिकल ऑक्सीजन की उपलब्धता बढ़ाई जा सके और स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत किया जा सके।

सतत विकास लक्ष्यों की दिशा में कदम-

विशेषज्ञों का मानना है कि 2030 तक स्वास्थ्य के सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals - SDG) को पूरा करने में मेडिकल ऑक्सीजन की प्रमुख भूमिका होगी। इससे न केवल स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूती मिलेगी, बल्कि अगली महामारी से निपटने में भी मदद मिलेगी।

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