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'फाइलों के जादूगर' जिन्होंने नौकरशाही को दी नई पहचान, जानिए भारत के पहले कैबिनेट सचिव की प्रेरणादायक गाथा

प्रिय पाठकों,

'बातें यूपी की' टीम आपके लिए 'ध्येय टीवी' के सौजन्य से देश के ऐसे 'प्रशासनिक सितारों' की  प्रेरणादायक गाथा ला रही है, जिन्होंने अपने अभूतपूर्व योगदान से भारत को उन्नति के मार्ग पर प्रशस्त किया।

एपिसोड-1 (साभार -'ध्येय टीवी')

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सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय स्थापित करना, सचिवों की स्थायी समितियों के माध्यम से आम सहमति विकसित करना और प्रशासनिक बाधाओं को दूर करना-ये सभी कार्य कैबिनेट सचिवालय की जिम्मेदारी होती है। इस महत्वपूर्ण संगठन के प्रमुख को कैबिनेट सचिव कहा जाता है, जो भारतीय नौकरशाही का सबसे प्रभावशाली पद माना जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आज़ादी के बाद इस प्रशासनिक ढांचे को खड़ा करने में किसका सबसे बड़ा योगदान था? वह शख्स थे भारत के पहले कैबिनेट सचिव एन.आर. पिल्लई—जिन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा को उसकी आत्मा दी।

साधारण शुरुआत से शीर्ष पद तक का सफर

साल था 1898, जगह थी केरल का एलेनकंठ गांव। नारायण राघवन पिल्लई का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ। उनके पिता का सपना था कि उनका बेटा पढ़-लिखकर एक अधिकारी बने, और पिल्लई ने यह सपना न केवल पूरा किया, बल्कि भारत के पहले कैबिनेट सचिव बनकर इतिहास रच दिया।

पढ़ाई में गहरी रुचि रखने वाले पिल्लई ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा केरल में प्राप्त की और फिर मद्रास विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र की पढ़ाई की। उनकी महत्वाकांक्षा उन्हें 1921 में ऑक्सफोर्ड तक ले गई, जहाँ उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस (ICS) परीक्षा उत्तीर्ण की। यह वह दौर था जब ब्रिटिश प्रशासन में भारतीयों की उपस्थिति बेहद सीमित थी, लेकिन पिल्लई ने अपनी काबिलियत से इस मिथक को तोड़ दिया।

भारतीय प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका

1922 में ICS अधिकारी के रूप में उनका सफर शुरू हुआ। उनकी दूरदर्शिता और प्रशासनिक कौशल ने उन्हें 1947 में स्वतंत्रता के बाद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर दिया। भारत को एक मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था की आवश्यकता थी, और पंडित नेहरू तथा सरदार पटेल की निगाहें पिल्लई पर जा टिकीं। 1950 में, उन्हें भारत का पहला कैबिनेट सचिव नियुक्त किया गया।

इस भूमिका में उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय स्थापित किया और सरकारी नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन को दिशा दी। पंचवर्षीय योजनाओं की नींव रखने से लेकर भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति को सुदृढ़ करने तक, उनके कार्यकाल में कई ऐतिहासिक निर्णय लिए गए। 1952 में, उनकी कुशलता को देखते हुए उन्हें फ्रांस में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया, जो उनके बहुआयामी प्रशासनिक कौशल का प्रमाण था।

एक कुशल प्रशासक और दूरदर्शी नेता

पिल्लई अपनी गहरी समझ, तीव्र विश्लेषण क्षमता और त्वरित निर्णय लेने की योग्यता के लिए जाने जाते थे। उनके सहयोगी अक्सर कहते थे कि उनके पास "समस्या का हल ढूढ़ने की छठी इंद्रिय" थी। लेकिन इतने ऊँचे पद पर होने के बावजूद वे बेहद सरल जीवन जीते थे। वे मानते थे कि प्रशासन का अर्थ जनता की सेवा करना है, न कि सत्ता का प्रदर्शन।

उनकी कार्यशैली का एक और महत्वपूर्ण पहलू था उनकी असाधारण स्मरण शक्ति। उन्हें "फाइलों का जादूगर" कहा जाता था, क्योंकि वे किसी भी दस्तावेज़ का सार एक ही नज़र में समझने में सक्षम थे। भारत-चीन सीमा विवाद के दौरान उन्होंने प्रशासनिक समन्वय की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और संकट प्रबंधन में अपने नेतृत्व का प्रदर्शन किया।

एक विरासत जो आज भी प्रासंगिक है

एन.आर. पिल्लई ने भारतीय प्रशासन को जो आधार दिया, वह आज भी सरकारी प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनकी नीतियाँ और मूल्य नई पीढ़ी के प्रशासकों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। 1960 में, उनके अतुलनीय योगदान के लिए उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। यह उनके योगदान का मात्र एक प्रतीक था, जबकि उनकी असली विरासत भारतीय प्रशासन की संरचना में समाहित है। आज भी जब भारतीय प्रशासनिक सेवा की बात होती है, तो एन.आर. पिल्लई का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है। उनकी दृष्टि, नीतियाँ और समर्पण भारतीय नौकरशाही के लिए एक आदर्श हैं।

written by Deepti 




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